Sunday 21 February 2016

आतंकवादी और आरक्षण मांग रहे जाट आंदोलनकारी कुछ तो सोचें।



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हरियाणा के जींद में रहने वाले कैप्टन पवन कुमार अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे। कश्मीर के पंपोर में एक सरकारी भवन में घुसे आतंकियों ने पवन कुमार को शहीद कर दिया। आतंकियों ने यह भी नहीं सोचा कि पवन के नहीं रहने पर बुजुर्ग माता-पिता की सेवा कौन करेगा? आतंकियों ने एक बार फिर साबित किया है कि उनके मन में कोई भावनाएं नहीं होती और उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनकी बंदूक से निकलने वाली गोली से कौन मर रहा है। आतंकियों को तो सिर्फ अपने आकाओं को खुश करना होता है इसीलिए पाकिस्तान से आकर कश्मीर में निर्दोष लोगों की हत्या करते हैं। 20 फरवरी को आतंकियों ने पवन कुमार को शहीद किया तो 21 फरवरी को जाट आरक्षण आंदोलन की वजह से कैप्टन पवन का शव सड़क मार्ग से जिंद नहीं पहुंच सका। जब आंदोलनकारी सेना के जिंदा जवानों को ही आगे नहीं बढऩे दे रहे हैं तो कैप्टन के शव का तो सवाल ही नहीं उठता। किसी ने भी इस बात के प्रयास नहीं किए, जिस कैप्टन ने अपने देश के नागरिकों की हिफाजत के लिए आतंकियों से गोली खाई है, कम से कम उस कैप्टन के शव को तो सम्मान मिले। कल्पना कीजिए यदि कैप्टन पवन अपने सीने में गोली खाकर आतंकवादियों को नहीं रोकता तो न जाने कितने नागरिक आतंकवादियों की गोली के शिकार होते। आतंकवादियों ने 20 फरवरी को पंपोर जिस सरकारी भवन में प्रवेश किया, उस समय इस भवन में कोई डेढ़ सौ नागरिक मौजूद थे। कैप्टन पवन और सीआपीएफ के दो जवानों की शहादत से ही डेढ़ सौ नागरिकों को सुरक्षित बचाया जा सका। जाट आंदोलनकारी चाहे कुछ भी मांग कर रहे हों। लेकिन जींद के कैप्टन पवन को तो सम्मान मिलना ही चाहिए। भले ही पूरा हरियाणा आंदोलन की चपेट में हो और दिल्ली के लोग प्यासे रहे, लेकिन शहीद कैप्टन के सम्मान में कोई कमी नहीं होनी चाहिए और फिर शहीद कैप्टन तो हरियाणा के ही रहने वाले हैं। हो सकता है कि कैप्टन के माता-पिता भी आंदोलनकारियों के साथ हों लेकिन वे भी कभी नहीं चाहेंगे कि उनके बेटे का शव जींद तक नहीं पहुंच पाए। 
सेना की मार्मिक अपील:
हरियाणा में जाट आंदोलन को देखते हुए सेना के अधिकारियों ने मार्मिक अपील की है। अधिकारियों ने आंदोलनकारियों से कहा है कि वे कैप्टन पवन कुमार के शव का अंतिम संस्कार करने में सहयोग करें। चूंकि आंदोलन की वजह से ट्रेन और सड़क यातायात बंद है इसीलिए सेना के सामने भी शव को जींद तक ले जाने में परेशानी हो रही है। इससे ज्यादा संवेदना की बात और क्या हो सकती है कि जिस जवान ने देश की रक्षा के लिए सीने में गोली खाई, उसी जवान के अंतिम संस्कार के लिए भी अपील करनी पड़ रही है।
(एस.पी. मित्तल)  (21-02-2016)
(spmittal.blogspot.in) M-09829071511

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