Sunday 21 February 2016

तो दरगाह में जियारत क्यों नहीं की आईएएस उमराव खान ने



------------------------------
राजस्थान का मुख्य सचिव नहीं बनाए जाने से खफा होकर हिन्दू से मुसलमान बने आईएएस उमराव सालोदिया उर्फ उमराव खान 20 फरवरी को एक विवाह समारोह में शामिल होने अजमेर आए। उमराव ने अपने दौरे को सरकारी बनाने के लिए रोडवेज बस स्टेण्ड का निरीक्षण भी किया। उमराव वर्तमान में रोडवेज के अध्यक्ष हैं। अजमेर में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है। दरगाह में जियारत के लिए भारत से ही नहीं, पूरी दुनिया से मुसलमान आते हैं। शायद ही कोई मुसलमान हो जो अजमेर आने के बाद दरगाह में जियारत नहीं करे। बल्कि जियारत के लिए जो भी असुविधा झेली जा सकती है उसे हंसते-हंसते स्वीकार किया जाता है। लेकिन नये-नये मुसलमान बने उमराव ने 20 फरवरी को अजमेर आने के बाद भी जियारत नहीं की। उमराव दरगाह में जाकर जियारत करें या ना करें, यह उनका निजी मामला है। लेकिन गत दिसम्बर माह में जब उमराव ने इस्लाम धर्म स्वीकार किया तब प्रेस कांफ्रेंस कर कहा था हिन्दू धर्म में दलितों के साथ भेदभाव किया जाता है। जबकि मुस्लिम धर्म में सभी को समान माना जाता है। चूंकि वे दलित वर्ग से हैं इसीलिए राजस्थान की भाजपा सरकार ने उन्हें मुख्य सचिव नहीं बनाया है। इस भेदभाव की वजह से ही अब उन्होंने इस्लाम धर्म स्वीकार कर अपना नाम उमराव खान रख लिया है। इसके साथ ही उमराव ने आईएएस की नौकरी से इस्तीफा भी दे दिया है। इस्तीफे के नियमों के मुताबिक उमराव के तीन माह आगामी मार्च में पूरे हो रहे हैं। यानी मार्च के अन्त में उमराव की स्वैच्छिक सेवानिवृति हो जाएगी। दिसम्बर में जब धर्म बदलने की घोषणा की थी तब भी उमराव पर आरोप लगे कि वे अपने निजी स्वार्थ के खातिर भेदभाव के आरोप लगा रहे हैं। यदि ईमानदारी के साथ उमराव इस्लाम धर्म स्वीकार करते तो 20 फरवरी को अजमेर दौरे में सबसे पहले दरगाह में जियारत करते।
(एस.पी. मित्तल)  (21-02-2016)
(spmittal.blogspot.in) M-09829071511

No comments:

Post a Comment