Wednesday 24 February 2016

तो संसद में भी गूंजी राष्ट्रदोहियों के पक्ष में आवाज।


पर अफजल आतंकी था या नहीं के सवाल का जवाब नहीं दे सकी कांग्रेस।
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24 फरवरी को भारत की संसद के दोनों सदनों में 9 फरवरी की जेएनयू की घटना को लेकर बहस हुई। हो सकता है कि बहस के पीछे हमारे सांसदों का राजनीतिक नजरिया रहा हो, लेकिन संसद में जो कुछ भी हुआ उसमें सबसे ज्यादा शुकून अफजल गुरु की रूह को मिला होगा। पूरा देश जनता है कि कांग्रेस की गठबंधन सरकार ने ही संसद पर हमले के आरोप में अफजल गुरु को फांसी दिलवाई थी। लेकिन 24 फरवरी को कांग्रेस के नेताओं ने जेएनयू के उन छात्रों को निर्दोष माना, जिन्होंने अफजल गुरु के समर्थन में नारे लगाए थे। इतना ही नहीं अफजल को जो फांसी दी गई, उस पर भी जेएनयू के छात्रों ने ऐतराज जताया था। खुलेआम भारत की बर्बादी,पाकिस्तान की खुशहाली और कश्मीर की आजादी के नारे लगाए। अफजल हम शर्मिंदा हैं तेरे कातिल जिंदा है तक के नारे लगाए। इतना सब कुछ होने के बाद भी 24 फरवरी को संसद में कांग्रेस का पक्ष रखते हुए युवा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि जेएनयू में जो नारे लगाए गए, वो देशद्रोह की श्रेणी में नहीं आते। नारों की तुलना ज्योतिरादित्य ने साक्षी के महाराज के एक बयान से की। ज्योतिरादित्य ने कहा कि साक्षी महाराज नाथूराम गौडसे को देशभक्त बताते हैं और हम महात्मा गांधी के हत्यारे को देशद्रोही मानते हैं। यानी साक्षी महाराज के बयान और जेएनयू में लगे राष्ट्रद्रोह के नारे को कांग्रेस ने समान कर दिया। 
इस समानता के पीछे कांग्रेस की अपनी राजनीतिक सोच रही होगी, लेकिन जब भाजपा के सांसद अनुराग ठाकुर ने अपने जवाब में सवाल पूछा कि क्या कांग्रेस अफजल गुरु को आतंकी मानती है या नहीं? इस सवाल का जवाब शायद सोनिया गांधी भी न दे सकें, क्योंकि एक ओर उन्हीं की सरकार ने अफजल गुरु को फांसी पर चढ़ाने का काम किया तो दूसरी ओर उनके पुत्र राहुल गांधी खुलेआम उन छात्रों का समर्थन कर रहे हैं, जिन्होंने अफजल गुरु  के पक्ष में नारे लगाए हैं। पूरी दुनिया में भारत ही ऐसा लोकतांत्रिक देश होगा, जहां संसद भवन के हमलावर के पक्ष में ही माहौल बनाने का प्रयास किया जा रहा है। कांग्रेस इस बात की कल्पना करें कि यदि अफजल गुरु की योजना के मुताबिक आतंकवादी संसद में घुस जाते तो क्या हालात होते। यह तो हमारे सुरक्षा जवानों ने आतंकवादियों की गोलियां खाकर देश के राजनेताओं को मौत के मुंह में जाने से बचा लिया। असल में चर्चा तो देश के उन जवानों की होनी चाहिए थी, जिन्होंने अपने सीने में गोली खाकर आतंकवादियों को संसद में नहीं घुसने दिया। लेकिन अफसोस की चर्चा उस अफजल गुरु को लेकर हो रही है, जो आतंकियों को संसद में जबरन घुसेडऩा चाहता था। 
गत लोक सभा चुनाव से पहले जब कांग्रेस सरकार ने अफजल गुरु को फांसी पर लटकाया तो पूरे देश में कांग्रेस की वाह-वाही हुई। विपक्षी नेताओं ने भी कांग्रेस के इस कदम का स्वागत किया। कांग्रेस ने तब यह जाहिर किया कि वह आतंकवाद से सख्ती से निपटेगी, लेकिन समझ में नहीं आता कि अब जब कांग्रेस को विपक्षी की भूमिका निभानी पड़ रही है तो कांग्रेस अपने पूर्व के स्टैंड में बदलाव क्यों कर रही है? और जब जेएनयू की घटना देशद्रोह से जुड़ी है, तो फिर कांग्रेस को ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिसकी वजह से देश की एकता और अखंडता को खतरा उत्पन्न होता हो। संसद में भाजपा भी भले ही जेएनयू की घटना को लेकर कुछ भी कहे, लेकिन यह भी सच है कि कश्मीर में भाजपा पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने के लिए उतावली है। यह वही पीडीपी है, जिसने अलगाववादियों का खुला समर्थन किया है और आज भी कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान से वार्ता की पक्षधर है। यदि अनुराग ठाकुर संसद में राष्ट्रभक्ति का दावा करते हैं तो उन्हें संसद के बाहर यह भी बताना चाहिए कि आखिर पीडीपी के साथ सरकार बनाने की भाजपा की क्या मजबूरी है। 

 (एस.पी. मित्तल)  (24-02-2016)
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