Saturday 20 February 2016

हरियाणा के जाटों के सामने सेना भी बेबस। हर हाल में चाहिए आरक्षण।



-----------------------------
20 फरवरी को हरियाणा में उपद्रवी वाले जिलों में सेना भी पहुंच गई है, लेकिन इसके बावजूद भी जाट आरक्षण आंदोलन कमजोर नहीं पड़ा है। बल्कि जाट समुदाय की एकजुटता और ताकत के आगे सेना भी बेबस है। कई जिलों में तो सेना को प्रवेश ही नहीं करने दिया गया है। बाजार की दुकान से लेकर रेलवे स्टेशन तक जलाए जा रहे हैं और पुलिस मूकदर्शक बनी हुई है। हरियाणा की पुलिस तो कहीं भी नजर नहीं आ रही है। 21 में से 10 जिले ऐसे हैं जहां पूरी तरह जनजीवन ठप हो गया है। यदि अगले दो-तीन दिन में कोई समझौता नहीं हुआ तो जाट आरक्षण आंदोलन दिल्ली में घुस आएगा। जाट समुदाय की मांग है कि जिस प्रकार राजस्थान में जाटों को ओबीसी वर्ग का मानकर आरक्षण का लाभ दिया गया है, उसी प्रकार हरियाणा के जाट समुदाय को भी ओबीसी वर्ग में शामिल कर आरक्षण का लाभ दिया जाए। सेना को बेबस करने वाले जाट समुदाय के प्रतिनिधियों का कहना है कि हरियाणा में जाट समुदाय दयनीय स्थिति में है और इस समुदाय के युवा बेरोजगार घूम रहे हैं जबकि अनेक सम्पन्न जातियां आरक्षण का लाभ ले रही हैं। ऐसा नहीं कि हरियाणा के जीएम मनोहरलाल खट्टर जाटों को आरक्षण नहीं देना चाहते। लेकिन खट्टर के सामने संवैधानिक मजबूरियां हैं। मनमोहन सिंह के नेतृत्व में चलने वाली कांग्रेस की गठबंधन सरकार ने अपने अंतिम दिनों में वर्ष 2014 में हरियाणा सहित देश के 7 राज्यों के जाट समुदाय को ओबीसी की दर्जा देने की घोषणा कर दी थी। लेकिन एक जनहित याचिका पर वर्ष 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने यूपीए सरकार के आदेश को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मद्देनजर ही सीएम खट्टर बार-बार समझौते की बात कर रहे हैं, लेकिन हरियाणा का जाट समुदाय राजी नहीं है। ऐसा भी नहीं कि हरियाणा के जाट समुदाय ने पहली बार आंदोलन किया है। हरियाणा राज्य के गठन के बाद से ही अधिकांश समय हरियाणा के सीएम के पद पर जाट समुदाय के नेता ही बैठे हैं। चौधरी देवीलाल हो या भजनलाल या फिर भूपेन्द्र सिंह हुड्डा। सभी के कार्यकाल में जाटों को आरक्षण देने की मांग उठती रही। लेकिन यह पहला अवसर है कि जब आरक्षण को लेकर जाट समुदाय ने इतनी नाराजगी जताई है। चूंकि खट्टर गैर जाट हैं इसीलिए आंदोलनकारियों से वो तालमेल नहीं बैठ रहा जो देवीलाल, भजनलाल, हुड्डा आदि के समय बैठता था। आरक्षण के लिए सभी राजनीतिक दलों के जाट नेता एकजुट हो गए हैं। हरियाणा के जाटों के सामने पड़ौसी राज्य राजस्थान का सुनहरा उदाहरण है। राजस्थान में जब से जाट समुदाय को ओबीसी वर्ग में शामिल किया गया, तब से ही सरकारी नौकरियों में जाट समुदाय के युवाओं का दखल बढ़ गया। राजस्थान में ओबीसी वर्ग की जातियों को 21 प्रतिशत आरक्षण की सुविधा है। ओबीसी वर्ग में जितनी भी जातियां हैं, उन सबके मुकाबले आरक्षण का लाभ जाट समुदाय के युवाओं को ज्यादा मिलता है। इसका कारण यह है कि ओबीसी वर्ग की अन्य जातियों के मुकाबले जाट समुदाय के युवा ज्यादा पढ़े लिखे, मेहनती और समझदार होते हैं। राजस्थान लोकसेवा आयोग के माध्यम से होने वाली भर्तियों का रिकॉर्ड देखा जाए तो ओबीसी वर्ग में चयनित सबसे ज्यादा अभ्यर्थी जाट समुदाय के ही होते हैं। राजस्थान के मुकाबले हरियाणा में राजनीति पर जाट समुदाय की पकड़ ज्यादा मजबूत है। इसीलिए हरियाणा के जाट समुदाय के युवा चाहते हैं कि उन्हें ओबीसी वर्ग में शामिल कर आरक्षण का लाभ दिया जाए। आज हरियाणा के जो हालात हो गए हैं उसमें खट्टर सरकार को कुछ ना कुछ ठोस निर्णय लेना ही पड़ेगा। हालांकि सीएम खट्टर लोकतंत्र की दुहाई देकर शांति की अपील कर रहे हैं लेकिन हरियाणा के जाट समुदाय को प्रतीत होता है कि मनोहरलाल खट्टर जैसी कमजोर सरकार हरियाणा में फिर कभी नहीं आएगी। ऐसे में अरक्षण की मांग को पूरा करवाने के लिए यही सबसे उपयुक्त समय है।
देश की राजधानी से लगे हरियाणा प्रांत में हो रही हिंसक वारदातों को लेकर नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्र की भाजपा सरकार भी चिंतित है। दिल्ली में जेएनयू में देशद्रोह की आग अभी सुलग ही रही है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आने वाले हरियाणा में तो आग सड़कों पर देखने को मिल रही है। देखना होगा कि नरेन्द्र मोदी और मनोहरलाल खट्टर की सरकार ताजा आंदोलन से किस प्रकार निपटती है।
ताजा हालात:
हरियाणा के जाट आंदोलन की वजह से 580 से भी ज्यादा ट्रेनें रद्द करनी पड़ी हैं तथा अब तक आगजनी से कोई तीन सौ करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है। रेल और सड़क मार्ग जाम होने से सेना भी उपद्रवी इलाकों में नहीं पहुंच पा रही है। हो सकता है कि अब सेना को हेलीकॉप्टर के जरिए अशांत क्षेत्रों में पहुंचाया जाएगा।
(एस.पी. मित्तल)  (20-02-2016)
(spmittal.blogspot.in) M-09829071511

No comments:

Post a Comment