Monday 15 February 2016

तो क्या कांग्रेस देशद्रोहियों के साथ है। एक ही दिन में दो ऐसे फैसले।



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13 फरवरी को कांग्रेस ने दो बड़े फैसले किए। एक फैसले में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी दिल्ली में जेएनयू कैम्पस में गए और उन छात्रों नेताओं के प्रति हमदर्दी जताई, जिनके विरुद्ध पुलिस ने देशद्रोही का मुकदमा दर्ज किया। 13 फरवरी को दो राज्यसभा सांसद व कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद और तमिलनाडु के प्रभारी मुकुल वासनिक चैन्नई में डीएमके के प्रमुख एम. करुणानिधि से मिले। इस मुलाकात के बाद कांग्रेस ने कहा हम आगामी विधानसभा का चुनाव डीएमके के साथ मिलकर लड़ेंगे। इस मुलाकात के बाद से पहले राहुल गांधी की समझ में नहीं आता कि राहुल गांधी का राजनीतिक सलाहकार कौन है? जब यह जगजाहिर हो गया कि 9 फरवरी को जेएनयू में कुछ छात्रों द्वारा खुलेआम भारत की बर्बादी और पाकिस्तान की खुशहाली के नारे लगाए थे। फिर भी राहुल गांधी देशद्रोहियों के प्रति हमदर्दी जताने पहुंचे गए। जेएनयू के कुछ छात्रों ने आतंकी अफजल गुरु को भी समर्थन किया। यह वही अफजल गुरु हैं, जिस पर संसद पर हमला करने का आरोप है। कांग्रेस की सरकार ने ही अफजल गुरु को आतंकवादी मानते हुए अदालत से फांसी की गुहार की थी और फिर जब सुप्रीम कोर्ट तक से फांसी तय हो गई तो गत लोकसभा के चुनाव से पहले-पहले अफजल गुरु को फांसी भी दे दी गई। अब अफजल गुरु के समर्थक छात्रों के प्रति हमदर्दी जताकर राहुल गांधी क्या संदेश देना चाहते हैं? क्या राहलु गांधी अफजल गुरु को फांसी दिए जाने के खिलाफ हैं? जब राहुल गांधी के इशारे पर नाचने वाली मनमोहन सिंह सरकार ने ही अफजल गुरु को फांसी देने का काम किया था तो अब राहुल गांधी अफजल गुरु के समर्थकों के प्रति हमदर्दी क्यों जता रहे हैं?  राहुल गांधी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करते हैं। क्या अपने ही देश के खिलाफ जहर उगलवाना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है? यह तो अच्छा हुआ राहुल गांधी वामपंथी नेता सीताराम येचुरी और ए.राजा की तरह गृहमंत्री राजनाथ सिंह से नहीं मिले। येचुरी और राजा का कहना है कि जेएनयू के कुछ छात्रों को गिरफ्तार कर सरकार ने आपातकाल की स्थिति उत्पन्न कर दी है। ए.राजा इसलिए परेशान है, क्योंकि पुलिस ने जिन बीस छात्रों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है, उसमें राजा की बेटी अपराजिता का नाम भी शामिल है। 
डीएमके से समझौता:
तमिलनाडू विधानसभा के चुनाव इसी वर्ष होने हैं। 234 सदस्य वाले सदन में डीएमके के 23, कांग्रेस के मात्र 5 विधायक हैं। इसे कांग्रेस की राजनीतिक मजबूरी ही कहा जाएगा कि राहुल गांधी को उस डीएमके के साथ हाथ मिलना पड़ा है, जिस डीएमके पर उनके पिता राजीव गांधी की हत्या करवाने के आरोप लगे थे। बाद में जिस तरह करुणानिधि और डीएमके के नेताओं ने राजीव गांधी हत्याकांड के आरोपियों की पैरवी की उसे पूरा देश जनता है। इतना ही नहीं मनमोहन सिंह की सरकार में डीएमके के कोटे से संचार मंत्री बने दयानिधि मारन और ए.राजा ने जिस तरह लूट मचाई इसे भी पूरा देश जनता है। डीएमके के इन दोनों मंत्री की वजह से मन मोहन सिंह के दामन पर भी दाग लगे हुए हैं।  क्या कांग्रेस राजनीतिक दृष्टि से इतनी कमजोर और लाचार हो गई है कि इसे देश द्रोहियों का समर्थन करने में भी कोई हिचक नहीं होती?

(एस.पी. मित्तल)  (14-02-2016)
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