Sunday 13 March 2016

लोक अदालत के नाम पर राजस्व मंडल में मजाक। राज्य सरकार और हाईकोर्ट की मंशा के साथ भी खिलवाड़


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अजमेर स्थित राजस्थान राजस्व मंडल में लोक अदालत लगाने के नाम पर पक्षकार के साथ मजाक किया जा रहा है। गंभीर बात तो यह है कि मंडल प्रशासन राज्य सरकार और हाईकोर्ट की मंशा के विपरित काम कर रहा है। राज्य सरकार और हाईकोर्ट की पहल है कि आपसी सहमति से विवादों को निपटाया जाए। अदालतों में ऐसे हजारों मुकदमे लम्बित हैं जिनके पक्षकार समझौता करना चाहते है या फिर किसी अधिकारी के द्वेषतापूर्ण निर्णय के खिलाफ मामला अदालत में आया है। सरकार और हाईकोर्ट की मंशा है कि ऐसी प्रवृत्ति के सभी विवाद लोक अदालत में निपटाए जाएं। सरकार ने न्यायिक अदालतों के साथ-साथ राजस्व मंडल को भी लोक अदालतें लगाने के निर्देश दिए हैं। सरकार की इस मंशा के अनुरुप राजस्व मंडल में 12 मार्च को लोक अदालत के समक्ष 58 मामले रखे गए। लोक अदालत के बाद मंडल प्रशासन ने एक बयान जारी कर यह दावा किया कि 58 में से 45 मामलों में आपसी समझौता करवाकर मुकदमे का निपटारा करवा दिया गया है। मंडल प्रशासन का यह दावा पूरी तरह झूठा है। असल में 58 में से 40 मुकदमे निचली अदालतों में सुनवाई बदलने के थे। जिला और उपखण्ड स्तर पर राजस्व मामलों की सुनवाई तहसीलदार, उपखण्ड अधिकारी, कलेक्टर आदि करते हैं। अभी हाल ही में राजस्व मंडल ने बड़ी संख्या में तहसीलदारों के तबादले किए हैं और सरकार ने भी उपखण्ड अधिकारी तथा कलेक्टर को बदला है। स्थानान्तरित हुए अधिकारियों में वे भी शामिल हैं जिनके खिलाफ राजस्व मंडल में मुकदमे की सुनवाई को लेकर वाद दायर किया गया था। अब जब संबंधित अधिकारी का तबादला ही हो गया तो राजस्व मंडल में दायर ट्रांसफर का प्रार्थना पत्र अपने आप खारिज हो गया। इस पर प्रार्थना पत्र दायर करने वाले पक्षकार को भी कोई ऐतराज नहीं है। राजस्व मंडल की लोक अदालत में ऐसे मुकदमों को निपटाने की बात कही गई। ऐसे में लोक अदालत का लगना और न लगना बराबर है। 12 मार्च को लगी इस लोक अदालत में राजस्व मंडल के सदस्य संजय कुमार, सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी हरिसिंह असनानी तथा एडवोकेट मदनलाल गुर्जर ने सदस्य के रूप में भूमिका निभाई थी।
सदस्यों का अभाव :
यूं तो राज्य सरकार प्रदेश के काश्तकारों को राहत देने के दावे करती है, लेकिन राजस्व मामलों की सबसे बड़ी इस अदालत में सदस्यों का अभाव है। सदस्यों की नियुक्त करने में सरकार की कोई रूचि नजर नहीं आती है। गंभीर बात तो यह है कि वर्तमान में जो सदस्य नियुक्त हैं उनमें से अधिकांश बे-मन से काम कर रहे हैं। मंडल में आईएएस कोटे से पांच सदस्यों का प्रावधान है, लेकिन वर्तमान में तीन सदस्य मोहम्मद हनीफ, अशफाक हुसैन और मोडाराम देथा ही नियुक्त हैं। यह तीनों सदस्य भी वे हैं जिन्हें गत वर्ष आरएएस से आईएएस में पदोन्नत किया गया है। यह तीनों सदस्य आईएएस बनाने के बाद एक दिन भी राजस्व मंडल में रहने को इच्छुक नहीं हैं इसलिए यह तीनों सदस्य न्यायिक कार्य में कोई रूचि नहीं दिखाते हैं। इसी प्रकार आरएएस कोटे से 11 सदस्यों का प्रावधान है, लेकिन सिर्फ तीन सदस्य एल.डी. यादव, महावीर सिंह और बी.एस. गर्ग ही नियुक्त हैं। इनमें से दो सदस्य इसी वर्ष रिटायर होने वाले हैं। वकील कोटे से दो सदस्यों की बजाय सिर्फ एक विजय सोनी ही कार्यरत है। जहां तक राजस्व मंडल के अध्यक्ष अशोक शेखर का सवाल है कि उनके  मन में काम करने की इच्छा तो है, लेकिन राजस्व मंडल के बिगड़े हुए ढर्रे में वे कुछ भी नहीं कर पा रहे है। मंडल में नए सदस्यों की नियुक्ति के लिए शेखर ने कई बार राज्य सरकार का ध्यान आकर्षित किया है, लेकिन सरकार में शेखर की कोई सुनने वाला नहीं है। प्रशासनिक क्षेत्र में माना जाता है कि राजधानी जयपुर में मुख्य सचिव स्तर के जिन आईएएस अधिकारियों से सरकार नाराज होती है उसे राजस्व मंडल का अध्यक्ष बनाकर अजमेर भेज दिया जाता है।
50 मुकदमों का आदेश :
अध्यक्ष अशोक शेखर ने निर्देश दिए कि राजस्व मंडल की अदालतों में एक दिन में पचास मुकदमें ही सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किए जाएं। शेष सभी मुकदमों में अपने-आप तारीख दे दी जाए। इसके पीछे शेखर की यह भावना है कि कम से कम पचास मुकदमों में तो सुनवाई हो, लेकिन इन पचास मुकदमों की सुनवाई भी संबंधित अदालतों में नहीं हो पाती है। मंडल में वर्तमान में 66 हजार मुकदमें लम्बित हैं।
10 से 5 बजे तक नहीं होता काम :
हाईकोर्ट ने सख्त आदेश दे रखे हैं कि राजस्व मंडल की अदालतों में भी हाईकोर्ट की तरह प्रात: 10 बजे से सायं 5 बजे तक काम हो, लेकिन हाईकोर्ट के इन आदेशों पर आज तक भी प्रभावी तरीके से अमल नहीं हुआ है। अधिकांश सदस्य प्रात: 11:30 तक अदालत में आकर बैठते हैं और फिर 1:30 लंच अवकाश पर चले जाते है और दोपहर 2 बजे अधिकांश सदस्य अदालत में नहीं बैठते हैं। एक-आध सदस्य अपने चेम्बर में वकीलों को बुलाकर खानापूर्ति कर लेते हैं। कुल मिलाकर राजस्व मंडल का ढर्रा पूरी तरह से बिगड़ा हुआ है। जिसका सबसे ज्यादा खामियाजा प्रदेश की गरीब काश्तकार को उठाना पड़ रहा है।
(एस.पी. मित्तल)  (13-03-2016)
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