Wednesday 16 March 2016

सरकारी यूनिवर्सिटीज और कॉलेजों के शिक्षकों का प्राइवेट कोचिंग सेंटरों में पढ़ाना कानून विरुद्ध है।


सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला।
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देश के चीफ जस्टिस टी.एस. ठाकुर और जस्टिस यू.यू.ललित ने गत 8 मार्च को प्राइवेट कोचिंग सेंटरों को आवासीय कॉलोनियों से हटाने के ही आदेश नहीं दिए, बल्कि इन प्राइवेट कोचिंग सेंटरों में काम करने वाले सरकारी प्रोफेसर और लेक्चरार पर भी टिप्पणी की है। देश की सर्वोच्च अदालत की यह टिप्पणी वाकई खास महत्त्व रखती है। जस्टिस ठाकुर और ललित ने कहा कि सरकारी संस्थाओं में काम करने वाले प्रोफेसर और लेक्चरार प्राइवेट कोचिंग सेंटरों में जाकर पढ़ाते हैं। इसलिए 95 प्रतिशत विद्यार्थी कोचिंग करते हैं। सरकारी संस्थाओं के शिक्षकों का प्राइवेट कोचिंग सेंटरों में पढ़ाना कानून के विरुद्ध है। जस्टिस ठाकुर और ललित ने कहा कि अब शिक्षा का व्यवसायिकरण हो गया है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने दोषी प्रोफेसरों और लेक्चरारों के खिलाफ कोई कार्यवाही करने के आदेश तो नहीं दिए, लेकिन क्या सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के मद्देनजर प्रोफेसरों और लेक्चर्स को अपने गिरेबान में झांकना नहीं चाहिए? यूनिवर्सिटीज और कॉलेजों में पढ़ाने वालों को एक लाख से लेकर 2 लाख रुपए तक का मासिक वेतन मिलता है, इतना मोटा वेतन लेने के बाद भी यदि ऐसे शिक्षक कोचिंग सेंटरों में पढ़ाने जाते हैं तो यह बेहद ही शर्मनाक बात है। 
सवाल उठता है कि जो शिक्षक कोचिंग सेंटरों में मेहनत के साथ पढ़ाते हैं, वे सरकारी संस्थानों में ऐसा क्यों नहीं करते? यदि प्रोफेसर और लेक्चरार ईमानदारी के साथ अपने संस्थान में ही विद्यार्थियों को पढ़ाए तो फिर ऐसे विद्यार्थी कोचिंग सेंटरों में नहीं जाएंगे। अंदाजा लगाया जा सकता है कि एक और दो-दो लाख रुपए तक का वेतन लेते हैं तो दूसरी और प्राइवेट कोचिंग सेंटर में जाकर भी कई लाख रुपए वसूलते हैं। लालची और शिक्षा के सौदागर प्रोफेसर व लेक्चरार माने या नहीं, लेकिन यह सही है कि प्राइवेट कोचिंग सेंटर का मालिक इसलिए मोटी रकम देता है, क्योंकि ऐसे लोग प्रतिष्ठित सरकारी यूनिवर्सिटीज और कॉलेज में नौकरी करते हैं। घटिया बात तो यह है कि ऐसे शिक्षकों की रूचि अपने संस्थान में पढ़ाने के बजाए कोचिंग सेंटर में पढ़ाने की होती है। कई कोचिंग सेंटरों के मालिक तो स्वयं अनपढ़ हैं, लेकिन सरकारी शिक्षकों के दम पर अपने सेंटर चला रहे हैं। 
रिहायशी इलाको से हटे कोचिंग सेंटर:
जस्टिस ठाकुर और ललित ने राजस्थान हाईकोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा है, जिसमें जयपुर के रिहायशी लालकोठी इलाके से प्राइवेट कोचिंग सेंटरों को हटाने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट के इस आदेश के विरुद्ध राजस्थान कॉमर्शियल इंंस्टीट्यूट ऐसोसिएशन की ओर से एडवोकेट कपिल सिब्बल ने अपील दायर की थी। इस अपील में हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त करने और अंतरिम स्टे देने की मांग की गई थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने न तो अंतरिम स्टे दिया और न ही हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त किया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब जयपुर के लालकोठी क्षेत्र में ही नहीं बल्कि देशभर के रिहायशी इलाकों से प्राइवेट कोचिंग सेंटरों को हटाया जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि प्राइवेट कोचिंग सेंटर व्यावसायिक गतिविधियों की श्रेणी में आते है। इसलिए रिहायशी इलाकों  से संचालित नहीं हो सकती। जस्टिस ठाकुर और ललित ने अपने आठ मार्च के आदेश में लिखा कि रिहायशी इलाकों में रहने वाली महिलाएं और वृद्ध नागरिक सुबह-शाम घूमने निकलते हैं, ऐसे में कोचिंग सेंटरों पर न्यूसेंस होता है। आदेश में कहा गया कि कोचिंग सेंटर व्यावसायिक क्षेत्रों में ही चलने चाहिए। 
अजमेर से भी हटने चाहिए सेंटर:
अजमेर नगर निगम की सीमा में अधिकांश रिहायशी इलाकों में प्राइवेट कोचिंग सेंटर धड़ल्ले से चल रहे हैं। अजमेर विकास प्राधिकरण की हरेक आवासीय कॉलोनी में ऐसे कोचिंग सेंटर संचालित है। सुप्रीम कोर्ट के 8 मार्च के आदेश के मद्देनजर अजमेर नगर निगम और विकास प्राधिकरण की यह ड्यूटी है कि वह रिहायशी इलाकों से प्राइवेट कोचिंग सेंटर तत्काल प्रभाव से हटाए। अवैध निर्माण नहीं तोडऩे के मामले में नगर निगम पहले ही हाईकोर्ट की अवमानना का सामना कर रहा है। उम्मीद है कि नगर निगम और विकास प्राधिकरण सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना का सामना नहीं करेगा। अच्छा हो कि दोनों संस्थाएं रिहायशी इलाकों में नागरिकों को खासकर वृद्ध और महिलाओं को शांति के साथ रहने दे। यदि रिहायशी इलाकों से कोचिंग सेंटरों को नहीं हटाया जाता है तो अजमेर की दोनों संस्थाएं सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना की दोषी होंगी। सुप्रीम कोर्ट का 8 मार्च का ऐतिहासिक फैसला मेरे ब्लॉग spmittal.blogspot.in पर पढ़ा जा सकता है। 

एस.पी. मित्तल)  (16-03-2016)
(spmittal.blogspot.inM-09829071511

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