Tuesday 22 March 2016

ऐसी होली का क्या फायदा। लगातार घट रहा है भाईचारा।



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हर साल की तरह वर्ष 2016 में भी 24 मार्च को होली का पर्व देशभर में मनाया जा रहा है। आमतौर पर यह माना जाता है कि यह पर्व उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है। कुछ लोग होली के पर्व को सद्भावना का पर्व भी मानते है। रंगों के इस पर्व को मनाने के पीछे आपसी भाईचारे का ही उद्देश्य है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या देश के वर्तमान हालातों में होली का पर्व उत्साह, उमंग और भाईचारे के साथ मनाया जा रहा है। हम सब जानते हैं कि आज छोटी-छोटी बातों को लेकर साम्प्रदायिक तनाव और फसाद हो रहे हैं। नेताओं के मुंह से तो जहर वाले शब्द निकल रहे हैं। नेताओं के सभी बयानों को एक साथ जोड़कर देखा जाए तो साफ प्रतीत हो रहा है कि देश की एकता और अखंडता खतरे में है। जिस कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग माना जाता है, उसके बारे में अब कहा जा रहा है कि हमने जबरन कब्जा कर रखा है। देश के ताजा हालातों का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान की क्रिकेट टीम को उत्तराखंड में खतरा है, लेकिन पश्चिम बंगाल में नहीं। पाकिस्तान की टीम का उत्तराखंड के बजाए कोलकाता में खेलना कोई मामूली घटना नहीं है। पैसे की लालची बीसीसीआई की बात छोडि़ए, लेकिन कोई यह बताए कि जब पश्चिम बंगाल में पाकिस्तान के खिलाड़ी सुरक्षित हैं तो फिर उत्तराखंड में क्यों नहीं है, क्या उत्तराखंड भारत का हिस्सा नहीं है? पाकिस्तान की चाल देखिए कि जब उत्तराखंड में मैच होना था, तब कहा गया कि भारत सरकार सुरक्षा की लिखित में गारंटी दे, लेकिन दो दिन बाद जब पश्चिम बंगाल में मैच की बात कही गई तो पाकिस्तानी खिलाड़ी चुपचाप मैच खेलने के लिए कोलकाता आ गए। ऐसा नहीं कि पश्चिम बंगाल में भाजपा की सरकार है, बल्कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तो नरेन्द्र मोदी के प्रति ज्यादा राजनीतिक नाराजगी रखती हैं।
अपनी तीसरी-चौथी बीबी के कत्ल के मामले में शक के घेरे में आए कांग्रेस के सांसद शशि थरूर ने तो बोलने की आजादी की हद ही कर दी। जेएनयू के छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया पर जहां देशद्रोह का मामला दर्ज है, वहीं थरूर ने कन्हैया की तुलना शहीद भगत सिंह से कर दी है। समझ में नहीं आता कि थरूर कन्हैया का सम्मान कर रहे है या भगत सिंह का अपमान। भगत सिंह ने तो देश की आजादी के लिए फांसी का फंदा चुना, जबकि कन्हैया तो उन तत्वों के समर्थक है जो कश्मीर को भारत से अलग करना चाहता है। अब थरूर की बात करें, जब कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ही कन्हैया से मिलकर स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। 22 मार्च की राहुल-कन्हैया की मुलाकात के बाद तो प्रतीत होता है कि अब कन्हैया ही कांग्रेस का पोस्टर बॉय है। कांग्रेस को अब यह बताना चाहिए कि क्या वह कन्हैया के विचारों से भी सहमत है? कन्हैया का कहना है कि भारतीय सैनिक कश्मीर में महिलाओं के साथ बलात्कार करते हैं।
एक ओर साम्प्रदायिक मुद्दे पर जहां देश के हालात बिगड़े हुए है वहीं आम व्यक्ति भी कोई राहत महसूस नहीं कर रहा है। सवाल सर्राफा व्यापारियों की बेमियादी हड़ताल का ही नहीं है, आम व्यक्ति भी होली के इस पर्व पर उत्साह और उमंग से नहीं है। महंगाई की वजह से आम आदमी की कमर टूटी हुई है तो किसी भी सरकारी विभाग में रिश्वत के बिना कोई काम नहीं होता। सरकारी दफ्तरों में हर कदम पर भ्रष्टाचार है। बेशर्मी की बात तो यह है कि रिश्वत लेने के बाद भी अधिकारी सीधे मुंह बात नहीं करते हैं। खुद भ्रष्ट और बेईमान है, लेकिन सामने वालों को भी अपना जैसा समझते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी माने या नहीं, लेकिन देश में अभी अच्छे दिनों की शुरुआत नहीं हुई है। कुछ लोग कहते हैँ कि मोदी दूरदृष्टि वाले हैं। अच्छा हो कि नरेन्द्र मोदी ऐसा चश्मा लगाए जिससे दूर और पास दोनों की स्थिति नजर आए। ऐसा न हो कि दूर दृष्टि के चक्कर में पास की दृष्टि ही चली जाए। 
(एस.पी. मित्तल)  (22-03-2016)
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