Monday 28 March 2016

ईस्टर पर पोप ने मुस्लिम युवक के पैर धोए तो वहीं पाकिस्तान के लाहौर में ईस्टर का जश्न मना रहे अनेक ईसाइयों को मौत के घाट उतारा। ----------------------------------------


माना जाता है कि ईस्टर पर प्रभु यीशु का पुनर्जन्म हुआ था, इसलिए ईस्टर पर ईसाई समुदाय के लोग जश्न मनाते हैं। परंपरा के अनुरूप ही ईसाइयों के सर्वोच्च धर्मगुरु पोप आम व्यक्ति के पैर धो कर चूमते हैं। इस बार ईस्टर पर पोप ने एक मुस्लिम युवक के भी पैर धोए। इसके पीछे दुनिया भर में सद्भावना का संदेश देना रहा। पोप ने इस मौके पर कहा भी कि आतंकवाद को छोड़कर सद्भावना और भाईचारे के साथ ही रहना चाहिए। उधर वैटिकन सिटी में जब पोप मुस्लिम युवक के पैर धोकर भाईचारे का संदेश दे रहे थे, तो इधर पाकिस्तान के लाहौर शहर के गुलशन-ए-इकबाल पार्क में आत्मघाती युवक ने विस्फोट कर अनेक ईसाइयों को मौत के घाट उतार दिया। 26 मार्च को ईस्टर के दिन चर्च में प्रार्थना करने के बाद लाहौर के इसी पार्क में ईसाई समुदाय के लोग एकत्रित होकर जश्न मनाते है। इस मौके पर बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग भी होते हैं, लेकिन आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, इसलिए तहरीक-ए-तालीबान से जुड़े एक युवक ने जो विस्फोट किया उसमें कोई 70 ईसाई-मुसलमानों की मौत हो गई और 300 से भी ज्यादा व्यक्ति बुरी तरह जख्मी हुए। सवाल उठता है कि जब भाईचारे के लिए ईसाइयों के सर्वोच्च धर्मगुरु मुस्लिम युवक के पैर धो रहे हैं तो फिर लाहौर में बेकसूर लोगों को क्यों मारा जा रहा है। माना कि ईसाई और मुस्लिम समुदाय में पुरानी दुश्मनी है, जो आज तक जारी है। लेकिन सवाल यह भी है कि जब पोप ने मुस्लिम युवक के पैर धोकर सकारात्मक पहल की थी तो फिर मुस्लिम समुदाय के धर्मगुरुओं ने स्वागत क्यों नहीं किया? सब जानते हैं कि पाकिस्तान अब आतंकवादियों का अड्डा बन गया है। पाकिस्तान में कोई एक आतंकी गुट नहीं है, बल्कि अनेक गुट है। जो आए दिन आतंकी वारदात करते हैं। भारत के लिए सबसे खतरनाक बात यह है कि आतंकवादी पाकिस्तान की सीमा से ही भारत में प्रवेश करते हैं। पाकिस्तान में आए दिन आत्मघाती विस्फोट होते हैं, जबकि भारत में पाकिस्तान की सीमा से लगे जम्मू-कश्मीर में रोजाना आतंकवादियों से सेना की मुठभेड़ होती है। पाकिस्तान यह कह सकता है कि आतंकवाद से वह स्वयं पीडि़त है, लेकिन पाकिस्तान की सरकार आतंकवादियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही भी नहीं करती है। ऐसे में जिस प्रकार ईसाइयों के धर्मगुरु ने पहल की है, उसी प्रकार मुस्लिम धर्मगुरुओं को भी सकारात्मक पहल करनी चाहिए। पिछले दिनों दिल्ली में वल्र्ड सूफी कॉन्फ्रेंस हुई थी। इस कॉन्फ्रेंस में कहा गया कि सूफी वाद से ही आतंकवाद का मुकाबला किया जा सकता है कि लेकिन इस कॉन्फ्रेंस के बाद मुस्लिम धर्मगुरु आतंकवाद के मुद्दे पर एक जुट नहीं हुए। अब उम्मीद की जानी चाहिए कि पोप की पहल को देखते हुए मुस्लिम धर्मगुरु भी आगे आएंगे।
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(एस.पी. मित्तल)  (28-03-2016)
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