Tuesday 15 March 2016

आरक्षण पर संघ के बयान पर बवाल क्यों? क्या गरीब को अमीर नहीं बनना चाहिए।


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राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की प्रतिनिधि सभा की बैठक 13 मार्च को राजस्थान के नागौर में सम्पन्न हुई। बैठक के बाद परंपरा के अनुरूप संघ ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक बार फिर संघ की ओर से कहा गया कि आरक्षण का लाभ हर गरीब परिवार को मिलना चाहिए। संघ के इस बयान पर एक बार फिर देश भर में बवेला मचा हुआ है। टीवी चैनलों के स्टूडियो में बैठकर बेवजह की बहस की जा रही है। अपने एजेंडे के तहत कहा जा रहा है कि देश में वर्तमान में आरक्षण की जो व्यवस्था है, उसे संघ बदलना चाहता है। संघ का यह विचार गरीब और दलितों के खिलाफ है। आरक्षण से माला माल हुए दलित नेता और स्टूडियो में बैठकर बेवजह की बहस करने वाले एकंर चाहे कुछ भी कहें, लेकिन  यह पहला अवसर नहीं है, जब संघ ने आरक्षण पर अपनी नीति जाहिर की हो। समय-समय पर संघ इस तरह के विचार रखता रहा है। गत वर्ष जब बिहार के चुनाव हो रहे थे, तब भी नितीश कुमार से लेकर सोनिया गांधी तक ने पिछड़े वर्ग के सामने संघ का बयान रखा और डराया कि यदि भाजपा की सरकार बन गई तो संघ वाले बिहार में दलितों का आरक्षण समाप्त करवा देंगे। चुनाव परिणाम के बाद लालू प्रसाद यादव से लेकर शरद यादव तक ने कहा कि बिहार में भाजपा संघ के आरक्षण वाले बयान से ही हारी है। तब सभी का यह कहना रहा कि अब संघ वाले कभी भी आरक्षण व्यवस्था की समीक्षा की बात नहीं कहेंगे। लेकिन 13 मार्च को एक बार फिर संघ ने वो ही विचार रखा जो बिहार चुनाव से पहले देश के सामने रखा था। इसलिए जो लोग यह समझते हैं कि चुनाव परिणाम का असर संघ के विचार पर पड़ता है, उन्हें अपनी समझ को सुधार लेना चाहिए। 
असल में सघ ने यह कभी नहीं कहा कि जरुरतमंद को आरक्षण का जो लाभ दिया जा रहा है, उसे बंद कर दिया जाए। बिहार के चुनाव के बाद भी संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने साफ कहा कि संघ कभी भी आरक्षण व्यवस्था के खिलाफ नहीं है। असल में संघ का उद्देश्य हर गरीब परिवार को आरक्षण का लाभ दिलवाना है। इसलिए आरक्षण व्यवस्था की समीक्षा की बात कही जाती है। संविधान में आरक्षण की व्यवस्था इसलिए की गई थी ताकि पिछड़े और गरीब वर्ग को भी सरकारी नौकरियां प्राथमिकता के आधार पर मिल जाए। आरक्षण का उद्देश्य यह कभी नहीं था कि अमीर व्यक्ति को और अमीर बना दिया जाएं। आज यही हो रहा है कि आरक्षण के नाम पर अमीर परिवार अमीर होता जा रहा है और गरीब परिवार गरीब ही है। यहां समीक्षा का मतलब यह है कि उस परिवार को आरक्षित सूची से बाहर निकाला जाए, जिसके सदस्य आईएएस, आईपीएस जैसे उच्च पदों पर विराजमान हो गए है। इसके बजाए उन परिवारों को शामिल किया जाए, जिन्हें एक बार भी आरक्षण का लाभ नहीं मिला है। पिछड़े और दलित वर्ग के लोग भी अब यह महसूस करते हैं कि हमारे बीच ही अमीर और गरीब की खाई बन गई है। जिस परिवार ने एक बार आरक्षण का लाभ लेकर आसमान की ऊंचाई प्राप्त की है फिर उसी परिवार के सदस्य लाभ लेते रहते हैं। सवाल उठता है कि आरक्षण का लाभ लेकर जो व्यक्ति विधायक, सांसद, मंत्री, प्रशासनिक अधिकारी, बड़ा उद्योगपति बन गया है, क्या उसके बच्चे स्कूल कॉलेज की फीस भी जमा करवाने में असमर्थ हैं? वहीं समाज में ऐसे परिवार भी मिल जाएंगे जो गरीबी की वजह से दो वक्त की रोटी का जुगाड़ भी नहीं कर पा रहे हैं। सवाल उठता है कि क्या ऐसे गरीब परिवारों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए? जब हम आरक्षण का उद्देश्य समाज में समानता लाना बताते हैं तो फिर आरक्षण की वजह से ही इतनी असमानता क्यों हो रही है? आज किसी भी राजनीतिक दल में इतनी हिम्मत नहीं है कि वर्तमान आरक्षण व्यवस्था में बदलाव का निर्णय ले। ऐसे में संघ का विचार कितना मायने रखता है, यह आने वाला समय ही बताएगा। संघ परिवार से जुड़े भाजपा के विधायक सांसद और मंत्री भी वर्तमान व्यवस्था को बदलने के पक्ष में नहीं है। अच्छा हो कि उन दलित परिवारों को प्राथमिकता के आधार पर आरक्षण का लाभ मिले,जिन्हें एक बार भी लाभ नहीं मिला। आरक्षण व्यवस्था में समीक्षा की बात भले ही संघ ने रखी हो, लेकिन इस विचार को पिछड़े वर्ग के लागों को ही आगे बढ़ाना चाहिए। यदि संघ यह मांग करता है कि हर गरीब परिवार को आरक्षण का लाभ मिले तो इसमें गलत बात क्या हैं?

(एस.पी. मित्तल)  (15-03-2016)
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