Thursday 7 April 2016

ईकोलॉजी, टेक्नोलॉजी और सोशल इंजीनियरिंग से ही बच सकता है आनासागर। पहले रोकें 12 नालों का गंदा पानी।


------------------------------------
अजमेर विकास प्राधिकरण के नए-नए अध्यक्ष बने शिवशंकर हेड़ा के जहन में अजमेर के काया पलट की तमन्ना है। उम्मीद की जानी चाहिए कि लाख बाधाओं के बाद भी उनके मन में काया पलट की तमन्ना बनी रहे। इसी क्रम में अजमेर के ऐतिहासिक आनासागर की कायापलट करने का फैसला हेड़ा ने किया है। हेड़ा चाहते हैं कि मल-मूत्र वाली आनासागर झील आसमान की तरह नीले रंग की नजर आने लगे। हेड़ा आनासागर के बीचों-बीच अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की आदमकद की प्रतिमा भी स्थापित करना चाहते हैं। हेड़ा चाहते है कि 3 वर्ष बाद जब उनका कार्यकाल समाप्त हो जाए तब अगले 100 वर्षों तक अजमेर की जनता याद करती रहे। 
यदि हेड़ा आनासागर को आसमान की तरह साफ कर देते है तो यह उनकी बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। 7 अप्रैल को भी झील विशेषज्ञों को बुलाकर हेड़ा ने आनासागर का दौरा करवाया है। ऐसा नहीं कि हेड़ा पहले व्यक्ति है, जिन्होंने आनासागर के संरक्षण का बीड़ा उठाया है। आनासागर के संरक्षण के नाम पर अब तक कई करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। यह पैसा कहां चला गया, इसकी जानकारी संबंधित व्यक्ति ही बता सकते हैं, लेकिन अजमेर की जनता तो यह जानती है कि आनासागर झील एक मलमूत्र के कुंड में तब्दील हो गई है। हेड़ा को इस सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए कि अजमेर शहर की करीब 40 प्रतिशत आबादी के घरों और शौचालयों का गंदा पानी 12 नालों के जरिए इसी आनासागर झील में गिरता है। इससे ज्यादा बेशर्मी की बात क्या हो सकती है कि झील के किनारों जितने भी निजी अस्पताल बने हुए हैं, उन सबका कीटाणु युक्त जहरीला पानी भी इसी आनासागर में गिरता है हेड़ा यह कर सकते हैं कि आने वाले दिनों में सीवरेज सिस्टम के शुरू हो जाने से नालों का गंदा पानी गिरना बंद हो जाएगा और आनासागर के किनारे लगे ट्रीटमेंट प्लांट के शुरू होने पर शुद्ध पानी आनासागर में आएगा। हेड़ा के लिए भले ही यह हकीकत है, लेकिन अजमेर की जनता के लिए तो यह ख्वाब ही है। सीवरेज सिस्टम के शुरू होने में कितना समय लगेगा यह भगवान या शिवशंकर हेड़ा ही जानते हैं। और यदि शुरू हो भी गया तो कितना सफल होगा, इसकी फिलहाज कोईजानकारी नहीं है जो ट्रीटमेंट प्लांट लगा है, वह क्या चालीस प्रतिशत आबादी के पानी को शुद्ध कर सकता है? यह सवाल भी अपने आप में महत्त्वपूर्ण है। 
मानसी के शोध में महत्त्वपूर्ण तथ्य:
झीलों की विशेषज्ञ डॉ. मानसी बाल भार्गव ने जापान के आर्थिक सहयोग से अजेमर की आनासागर झील पर शोध किया। इससे पहले भी डॉ. भार्गव ने देश की अनेकझीलों पर शोध किए हैं और उनके शोध के निष्कर्षों को सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वीकार किया है। डॉ. भार्गव ने गत दिनों मुझसे मुलाकात की और अपने शोध के बारे में जानकारी दी। डॉ. भार्गव का कहना रहा कि विदेशों में भी इस तरह की झील है। लेकिन आबादी क्षेत्र का गंदा पानी अपने आप बहता हुआ ट्रीटमेंट प्लांट तक जाता है, यानि ट्रीटमेंट प्लांट नीचे की ओर होता है, जबकि आनासागर में जो ट्रीटमेट प्लांट है, वह ऊपर की ओर है। यानि पानी को लिफ्ट कर प्लांट में डाला जाएगा और फिर पानी का शुद्धीकरण होगा। 
जिन इंजीनियरों ने इस प्लांट को बनाया है, उन्होंने एक बड़ी खामी रखी है। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस तकनीकी खामी के बाद भी ट्रीटमेंट प्लांट सफल होगा। डॉ. मानसी भार्गव ने कहा कि मैं आनासागर के दोष नहीं निकालना चाहती, लेकिन मेरा मानना है कि शहरवासियों की जागरुकता से इस झील को सुंदर और सुरक्षित बनाया जा सकता है। इसके लिए इकोलॉजी, टेक्नोलॉजी और सोशल इंजीनियरिंग का संयुक्त रूप से उपयोग होना चाहिए। आनासागर झील के शोध के समय यह तथ्य सामने आया कि आनासागर में हरियाली के लिए एक विशेष अभियान चलाया जाए, किसी भी झील को सुरक्षित रखने के लिए झील के अंदर हरियाली होना जरूरी है। काफी हद तक यह अभियान सफल भी हुआ। हरियाली न केवल गंदगी को अपनी ओर खींचती है, बल्कि पानी को भी साफ करने का काम करती है, लेकिन यह हरियाली तब खत्म हो गई, जब आनासागर में मछली पालन का निर्णय लिया गया। नासमझ लोगों ने ऐसे बीज डाल दिए, जिनसे उत्पन्न होने वाली मछलियां सबसे पहले हरियाली का ही नुकसान करती है। अंतरराष्ट्रीय मानको में यह बात सामने आई है कि जिन झीलों में वर्ष भर पानी भरा रहता है, उनमें मछली पालन होता है तो उसके लिए अलग किस्म के बीज डाले जाते हैं जो हरियाली को नुकसान नहीं करते। मानसी का मानना रहा कि इस झील के प्रति लोगों में जागरुकता होना बेहद जरूरी है। 
(एस.पी. मित्तल)  (07-04-2016)
(spmittal.blogspot.inM-09829071511

No comments:

Post a Comment