Thursday 21 April 2016

अजमेर जिला परिषद की 20 दिनों से सफाई नहीं होने पर शर्म आनी चाहिए राजनेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों को।


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राजस्थान पत्रिका के 21 अप्रैल के अजमेर संस्करण में जिला परिषद के कार्यालय में गत 20 दिनों से सफाई नहीं होने को लेकर एक खबर प्रकाशित हुई। इस खबर में कहा गया है कि कमरों में झाडू नहीं लगाने और शौचालयों में सफाई नहीं होने की वजह से जिला परिषद एक बदबू घर में तब्दील हो गया है। पत्रिका की खबर में यह भी बताया गया कि जिस सफाई कर्मचारी को नरेगा के कोष से 1000 रुपए प्रति माह पारिश्रमिक मिलता है,उस भुगतान पर जिला कलेक्टर डॉ. आरुषि मलिक ने रोक लगा दी है। चूंकि सफाई कर्मी को पारिश्रमिक नहीं मिला तो उसने भी गत 1 अप्रैल से सफाई का काम करना बंद कर दिया। पत्रिका की इस खोजपूर्ण खबर पर सत्तारुढ़ भाजपा के नेताओं और अजमेर के प्रशासनिक अधिकारियों को शर्म महसूस करनी चाहिए, जिस जिला परिषद का बजट एक हजार करोड़ रुपए का है, वह जिला परिषद सफाई कर्मचारी को एक हजार रुपए पारिश्रमिक नहीं दे पा रही है। इस समय जिला प्रमुख के पद पर भाजपा की युवा नेत्री वंदना नोगिया विराजमान हैं। नोगिया का कहना है कि उन्हें जिला परिषद में सफाई नहीं होने की जानकारी ही नहीं मिली। समझ में नहीं आता कि वंदना नोगिया कैसी जिला प्रमुख हंै। यदि सफाई नहीं होने की जानकारी भी नहीं मिली तो फिर वंदना नोगिया जिला प्रमुख का कार्य किस तरह से कर रही है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। इससे यह भी जाहिर होता है कि वंदना नोगिया गत 1 अप्रैल से जिला परिषद कार्यालय गई ही नहीं, और उनकी इतनी पकड़ नहीं कि कोई कर्मचारी कार्यालय की जानकारी दे। माना वंदना नोगिया राजनीति में नई-नई हैं,लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि  वे सिर्फ लाल बत्ती की एसी कार में घूमती रहें, यदि जिला परिषद का कार्यालय बदबू के घर में बदल गया है तो सबसे पहले जिम्मेदारी उन्हीं की बनती है। जानकारी नहीं मिलने की बात कहकर नोगिया अपने दायित्व से बच नहीं सकती। जहां तक जिला कलेक्टर डॉ. आरुषि मलिक का सवाल है तो उनकी कार्यशैली पर जिला प्रमुख को क्या, प्रभारी मंत्री वासुदेव देवनानी, महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री श्रीमती अनिता भदेल, संसदीय सचिव सुरेश सिंह रावत जैसे राजनेताओं भी कोई ऐतराज नहीं जता सकते। भाजपा के यह ताकतवर नेता भी जानते हैं कि कलेक्टर की कार्यशैली की वजह से ही अजमेर में कोई भी  प्रशासनिक अधिकारी नियुक्त नहीं होना चाहता है। इस समय जिला परिषद के सीईओ और एसीईओ दोनों के पद खाली पड़े हैं। कलेक्टर ने एडीएम प्रथम किशोर कुमार को जिला परिषद अतिरिक्त कार्यभार सौंप रखा है, लेकिन किशोर कुमार की कलम में इतनी ताकत नहीं है कि वे सफाई कर्मचारी को एक हजार रुपए का भुगतान करवा सके। खुद जिला प्रशासन ने एडीएम द्वितीय, सिटी मजिस्ट्रेट, प्रोटोकॉल अधिकारी आदि के महत्त्वपूर्ण पद पिछले कई माह से खाली पड़े हैं। यूं कहने को तो अजमेर के सांसद और केन्द्रीय जल संसाधन राज्यमंत्री सांवरलाल जाट, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव व राज्यसभा सांसद भूपेन्द्र यादव, राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण के अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत, मेयर धर्मेन्द्र गहलोत,एडीए अध्यक्ष शिव शंकर हेड़ा, विधायक भागीरथ चौधरी, शत्रुघ्न गौतम, श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा, शंकर सिंह रावत के साथ-साथ भाजपा के देहात अध्यक्ष बी.पी.सारस्वत, शहर अध्यक्ष अरविंद यादव, आदि भी स्वयं को ताकतवर राजनेता मानते हैं, लेकिन इनमें से एक भी नेता में इतनी हिम्मत नहीं कि वे कलेक्टर की कार्यशैली की शिकायत मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से कर सके। उल्टे इन ताकतवर नेताओं को यह डर रहता है कि कहीं कलेक्टर उनकी शिकायत मुख्यमंत्री से न कर दें। राजनेताओं की इस कमजोर स्थिति के कारण ही कलेक्टर सफाई कर्मचारी के भुगतान पर रोक लगा देती है। मजे की बात तो यह है कि इतनी दुदर्शा के बाद भी स्वच्छता अभियान को सफल बनाने के लिए राष्ट्रपति अवार्ड का ख्वाब देखा जा रहा है। 
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(एस.पी. मित्तल)  (21-04-2016)
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