Sunday 24 April 2016

देश की न्यायिक व्यवस्था पर आखिर रोना पड़ा सीजेआई को।



पीएम मोदी ने कहा रोने से काम नहीं चलेगा।
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24 अप्रैल को दिल्ली में ऑल इंडिया जज कॉन्फ्रेंस हुई। इस कॉन्फ्रेंस में देश के चीफ जस्टिस टी.एस.ठाकुर जब न्यायिक व्यवस्था की दुर्दशा बता रहे थे, तब उनकी आंखों में आसंू और नाक में पानी आ गया। भावुक होते हुए सीजेआई ठाकुर ने राज्य सरकारों और पीएम नरेन्द्र मोदी को समझाने के लिए पांवी कक्षा के गणित के एक सवाल का सहारा लिया। सवाल था कि एक सड़क पांच श्रमिक बीस दिनों में बनाते हैं तो सड़क को एक दिन में बनाने के लिए कितने श्रमिक चाहिए? सीजेआई ने जब यह सवाल रखा तो उनकी आंखों में आंसू और नाक से पानी निकला आया। जेब से रुमाल निकालकर सीजेआई ने आंख का आंसू और नाक का पानी साफ किया। जस्टिस ठाकुर ने कहा कि अमरीका में 9 जज एक वर्ष में 81 केस सुनते हैं, जबकि भारत में एक जज 2006 केस सुनता है। निचली अदालतों में 3 करोड़ केस लम्बित हैं,लेकिन कोई यह नहीं कहता 20 हजार जजेज हर साल दो करोड़ केस की सुनवाई पूरी करते हंै। लाखों लोग जेल में। ऐसे लोगों की सुनवाई नहीं होने के लिए जजों को दोष मत दीजिए। देश के हाईकोर्ट में 38 लाख से ज्यादा केस पेंडिंग हंै,जबकि 434 जजों की वेकेंसी है। केन्द्र सरकार कहती है कि यह राज्यों का मामला है और राज्य सरकार केन्द्र से फंड नहीं मिलने की बात कहती है। 1950 में सुप्रीम कोर्ट में जब 8 जज पे तब एक हजार केस थे। आज 31 जज हैं तो सुप्रीम कोर्ट में 81 हजार से ज्यादा केस लम्बित हंै। इस साल चार महीने में ही 12 हजार केस दाखिल हुए हैं। केन्द्र सरकार के कारपोरेट पर कॉमर्शियल कोर्ट बनाने के प्रस्ताव पर निशाना साधते हुए जस्टिस ठाकुर ने कहा कि यह पुरानी बोतल में नई शराब है। जस्टिस ठाकुर ने अपनी आंख के आंसू और अपने नाक में पानी का हवाला देते हुए कहा कि मेरी इस स्थिति का कुछ तो असर होगा। 
जज कॉन्फ्रेंस में पीएम मोदी को नहीं बोलना था, लेकिन जिस तरह से सीजेआई ने केन्द्र सरकार पर हमला किया, उसे देखते हुए मोदी को बोलना पड़ा। रोने से काम नहीं चलेगा, कुछ इसी अंदाज में मोदी ने कहा कि इतनी बात सुनकर मैं चुपचाप चला जाऊं, उनमें से नहीं हंू। सरकार न्यायिक व्यवस्था की दुर्दशा सुधारने के लिए तैयार हैं। दोनों को बैठाकर समाधान निकालना चाहिए। मोदी ने कहा कि जस्टिस ठाकुर और सरकार की टीम मिलकर बैठक करें। इस मौके पर मोदी ने भी न्यायपालिका से उम्मीद जताई पुराने कानूनों को खत्म करने में सहयोग देने की बात कही।
मुव्वकिल की कौन सुने:
देश की न्यायपालिका की दुर्दशा पर सीजेआई को रोना पड़ा तो इससे मुव्वकिलों की पीड़ा का अंदाजा लगाया जा सकता है। दुर्दशा पर जब सीजेआई और पीएम ही आमने-सामने हैं तो फिर बेचारे मुव्वकिल का तो भगवान ही मालिक है। जब सीजेआई और पीएम ही व्यवस्था को सुधारने में लाचार है तो फिर मुव्वकिल को कोई राहत मिलने की उम्मीद नजर नहीं आती। न तो जज और सरकार के प्रतिनिधि की संयुक्त बैठक होगी न ही सुनवाई के अभाव में जेलों में सड़ रहे लोग बाहार आ पाएंगे। 
नोट- फोटोज मेरे ब्लॉग spmittal.blogspot.in तथा फेसबुक अकाउंट पर देखें। 

(एस.पी. मित्तल)  (24-04-2016)
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