Thursday 19 May 2016

5 राज्यों के चुनाव परिणाम। क्या कांग्रेस और वामपंथी सबक लेंगे?

#1362

दीदी बनी दादा तो अम्मा बनी दादी।
असम में खिला कमल तो कांग्रेस पांडिचेरी के भरोसे।
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19 मई को देश के पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आ गए। इन परिणामों से सबसे बड़ा झटका सोनिया और राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को लगा है।  असम में कांग्रेस 15 वर्ष के शासन का अंत हो गया। तो पश्चिम बंगाल में कांग्रेस का खाता खुलना भी मुश्किल हो रहा है। तमिलनाडु में भी कांग्रेस कहीं नजर नहीं आ रही। केरल में जरूर कांग्रेस ने संयुक्त मोर्चे के साथ अपनी साख को बचाया है। वहीं पांडिचेरी में कांग्रेस डीएमके सरकार बनाने की स्थिति में है। लेकिन सम्पूर्ण परिणाम को देखा जाए तो यह कांग्रेस के लिए बहुत बुरा है। कांग्रेस माने या नहीं लेकिन देश कांग्रेस मुक्त भारत की ओर बढ़ रहा है। अब देखना होगा कि क्या कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन की मांग फिर जोर पकड़ती है?
गत लोकसभा चुनाव के बाद भी अनेक वरिष्ठ कांग्रेसियों ने नेतृत्व बदलाव का मुद्दा उठाया था, लेकिन सोनिया और राहुल के इर्द-गिर्द जमा चाटुकारों ने विरोधियों का मुंह बंद कर दिया। अब एक बार फिर कांग्रेस में बगावत के स्वर उठने लगे हैं, देखना है कि कांग्रेस में किस तरह से बदलाव होता है या फिर अभी भी कांग्रेस सोनिया और राहुल पर ही टिकी रहगी। इन परिणामों में जो गत कांग्रेस की हुई है, उसमें भी बुरी गत वामदलों की हुई है। जिस पश्चिम बंगाल में लेफ्ट का डंका बजता था, उसी बंगाल में ममता दीदी ने लेफ्ट का बैंड बजा दिया है। 294 में से करीब 215 सीटों पर टीएमसी की जीत बताती है कि ममता दीदी अब ममता दादा बन गई है। एक तरह से देखा जाए तो लेफ्ट विचार धारा भी अंत की ओर है। सवाल कांग्रेस और लेफ्ट की हार का नहीं है। सवाल इन दोनों के सबक लेने का है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जिस तेजी से बदलाव हो रहे हैं, उसमें सीता राम येचूरी को यह सोचना होगा कि क्या अब लेफ्ट विचारधारा को आगे बढ़ाया जा सकता है। जानकारों की माने तो पश्चिम बंगाल में येचूरी की जिद्द की वजह से ही पार्टी की इतनी बुरी दशा हुई है। करेल में संयुक्त मोर्चे के साथ लेफ्ट की इज्जत इसलिए बची है कि वहां येचूरी का फार्मूला लागू नहीं हो सका। उदारवादी वामपंथी चाहते थे कि बंगाल में कांग्रेस और अन्य दलों के साथ मिलकर संयुक्त मोर्चा बनाया जाए। लेकिन येचूरी ने ऐसा नहीं होने दिया। जिसका खामियाजा सम्पूर्ण पार्टी को उठाना पड़ा। जबकि केरल में मोर्चा बनाकर चुनाव लड़ा तो परिणाम बेहतर आए।
मतदान के बाद सभी टीवी चैनलों के सर्वे में कहा गया कि तमिलनाडु में करुणानिधि के डीएमके की सरकार बनेगी। कहा गया कि तमिलनाडु में हर पांच साल में सरकार बदलने की परंपरा है, लेकिन अम्मा यानि जयललिता की एआईडीएमके ने इस परंपरा को तोड़ दिया। अब अम्मा दादी बनकर लगातार दूसरी बार सीएम पद की शपथ लेंगी। हालाकि 232 में से 106 सीटे डीएमके को मिली है, लेकिन 122 सीटों की जीत का बहुमत अम्मा के साथ है। अम्मा ने यहां कांग्रेस को भी मिट्टी में मिलाया है। तो वहीं भाजपा का तो खाता भी नहीं खुला। पांच राज्यों के चुनाव परिणाम में भाजपा की सबसे बड़ी सफलता यही है कि असम में पूर्ण बहुमत के साथ जीत हो गई है। असम में भाजपा की सरकार बनने से उत्तर पूर्व राज्यों की हालत बदलने की उम्मीद जताई जा रही है। कहा जा रहा है कि असम में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की रणनीति के तहत भाजपा को जीत मिली है। संघ के कार्यकर्ताओं ने विपरीत परिस्थितियों में भी असम में जमीनी स्तर पर कार्य किया। बांग्लादेश से आए नागरिकों का मुद्दा असम के हर चुनाव में रहता है, लेकिन इन चुनावों में लोगों ने इस बात पर भरोसा किया कि यदि भाजपा की सरकार बनती है तो स्थानीय नागरिकता का मुद्दा भी सुलझ जाएगा। जानकारों के अनुसार असम में बड़ी संख्या में मुसलमानों के वोट भी भाजपा को मिले हैं। 19 मई को जिन पांच राज्यों के परिणाम सामने आए, उनकी अगले वर्ष उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनाव में तुलना नहीं की जा सकती। यूपी की अपनी समस्याएं हैं और यूपी में भाजपा मजबूत स्थिति में है। पांच राज्यों के चुनाव परिणाम वैसे ही आए हैं जैसे गत लोकसभा के चुनाव में भाजपा और क्षेत्रीय दलों को सफलता मिली थी। यदि मतदाताओं का ऐसा ही रुख रहता है तो फिर यह भाजपा के लिए फायदेमंद होगा। यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से भाजपा ने 72 पर जीत हासिल की। भाजपा का तो प्रयास होगा कि मतदाताओं का मूड पांच राज्यों की तरह यूपी में भी बना रहे। 

(एस.पी. मित्तल)  (19-05-2016)
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