Wednesday 11 May 2016

आखिर सुप्रीम कोर्ट मोबाइल ऑपरेटर कंपनियों के साथ क्यों खड़ा नजर आ रहा है? कॉल ड्राप पर उपभोक्ताओं के हितों का ख्याल क्यों नहीं।



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माना तो यही जाता है कि सुप्रीम कोर्ट देश के आम नागरिकों के हितों का ख्याल रखकर निर्णय देता है, लेकिन 11 मई को सुप्रीम कोर्ट ने कॉल ड्रॉप के मामले में जो फैसला दिया है, उससे प्रतीत होता है कि सुप्रीम कोर्ट मोबाइल ऑपरेट कंपनियों के साथ खड़ा है। ट्राई ने गत वर्ष उपभोक्ताओं की परेशानियों को देखते हुए यह निर्णय १िदया था कि कॉल ड्रॉप होने पर संबंधित ऑपरेटर कंपनी उपभोक्ता को एक रुपया जुर्माने का देगी। लेकिन एयरटेल, रिलायंस, वोडफोन, आईडिया, टाटा डोकोमो, एयरसेल आदि कंपनियों ने संयुक्त रूप से सुप्रीम कोर्ट में ट्राई के निर्णय को चुनौती दी। इन ऑपरेटर कंपनियों के वकील और कांग्रेस के शासन में दूर संचार मंत्री रहे कपिल सिब्बल ने कहा कि ट्राई का यह फैसला गैर कानूनी है। कॉल ड्रॉप होने पर उपभोक्ता को एक रुपए का हर्जाना नहीं दिया जा सकता है। हालाकि टाई की ओर से सुप्रीम कोर्ट में कहा गया हर उपभोक्ता को कॉल ड्रॉप की शिकायत है और कंपनियां अपने नेटवर्क में सुधार नहीं कर रही हैं। इसलिए हर्जाना दिया ही जाना चाहिए। कॉल ड्रॉप होने से आम उपभोक्ता को बेवजह कंपनियों को भुगतना करना पड़ता है। अधिकांश उपभोक्ता प्रीपेड हैं। इसलिए कॉलड्रॉप होते ही राशि की कटौती हो जाती है। ट्राई ने यह भी कहा कि नेटवर्क में सुधार के लिए इन ऑपरेटर कंपनियों को बार-बार निर्देश दिए गए हैं। लेकिन इसके बाद भी उपभोक्ताओं की समस्याओं का समाधान नहीं हुआ है। दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने ट्राई के हर्जाने के फैसले को रद्द कर दिया। यानि अब मोबाइल ऑपरेटर कंपनियां कॉलड्रॉप होने पर उपभोक्ता को हर्जाना नहीं देंगी। यानि मोबाइल ऑपरेटर कंपनियों की सेवाएं चाहे कैसी भी हों, उपभोक्ताओं को स्वीकार करनी होगी। अच्छा होता कि सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले में उपभोक्ताओं की समस्याओं का भी ख्याल रखता। देश में जो लोग मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें पता है कि ऑपरेटर कंपनियां किसी प्रकार से परेशान करती हैं। शर्मनाक बात तो यह है कि इन कंपनियों में उपभोक्ताओं की सुनने वाला कोई नहीं है। अब कॉल ड्रॉप की बात तो बहुत पीछे रह गई है। अब तो इंटरनेट की सुविधा देने के नाम पर लूट ही लूट हो रही है। 2जी से 4जी तक की नेट सुविधा के नाम पर उपभोक्ताओं को जमकर लूटा जा रहा है। उपभोक्ता न्यूनतम यूज करता है, लेकिन ऑपरेटर कंपनियां अधिकतम यूज बताकर उपभोक्ता की राशि को काटती रहती है। जो उपभोक्ता नेट का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें दो हजार रुपए प्रतिमाह तक का बिल चुकाना पड़ रहा है। सबसे ज्यादा परेशानी विद्यार्थियों को हो रही है। अपने शहर से बाहर पढऩे वाले विद्यार्थी दो हजार रुपए से ज्यादा प्रतिमाह का भुगतान इन ऑपरेटर कंपनियों को कर रहे हैं। सबसे बड़ी समस्या तो ये है कि जब कोई उपभोक्ता नेट को लेकर शिकायत करता है तो इन कंपनियों में कोई सुनवाई नहीं होती। सुप्रीम कोर्ट को आम उपभोक्ता बनकर इन बेईमान और चोर कंपनियों के बारे कोई निर्णय लेना चाहिए। 

नोट- फोटोज मेरे ब्लॉग spmittal.blogspot.in तथा फेसबुक अकाउंट पर देखें। 

(एस.पी. मित्तल)  (11-05-2016)
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