Wednesday 31 August 2016

राजस्व मंडल के फैसले के खिलाफ वसुंधरा सरकार ने हाईकोर्ट में रिट क्यों नहीं की? धौलपुर राजपरिवार के इस फैसले को देने वाले अशफाक हुसैन आज दौसा के कलेक्टर हैं। ब्लॉक से मच गई खलबली।

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राजस्व मंडल के फैसले के खिलाफ वसुंधरा सरकार ने हाईकोर्ट में रिट क्यों नहीं की?
धौलपुर राजपरिवार के इस फैसले को देने वाले अशफाक हुसैन आज दौसा के कलेक्टर हैं। ब्लॉक से मच गई खलबली।
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राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से जुड़े धौलपुर राज परिवार की करोड़ों की जमीन का जो मामला प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में उजागर नहीं हुआ, उसे पहली बार 30 अगस्त को ब्लॉग के जरिए मैंने उजागर किया। मुझे इस बात का संतोष है कि ब्लॉग से राजस्थान की राजनीति में खलबली मच गई। अब यह सवाल पूछा जा रहा है कि जब मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने जयपुर राजपरिवार की जमीन को लेकर सख्त कार्यवाही करवाई तो फिर वैसी ही कार्यवाही धौलपुर राजपरिवार की जमीन को लेकर क्यों नहीं की? धौलपुर के तत्कालीन एसडीएम ने राजघराने की कोई 800 बीघा  जमीन को सीलिंग कानून के दायरे में माना। इस फैसले के खिलाफ धौलपुर राजपरिवार के प्रमुख राणा हेमंत सिंह ने वर्ष 1996 में राजस्व मंडल में अपील की। इस अपील का निस्तारण मंडल के सदस्य असफाक हुसैन ने 4 सितम्बर 2015 को धौलपुर राजपरिवार के पक्ष में किया। हुसैन ने धौलपुर के एसडीएम के आदेश को निरस्त कर मामले को रिमांड के लिए भरतपुर के कलेक्टर को भिजवा दिया। 
चूंकि यह मामला करोड़ों रुपए की भूमि का था इसलिए सरकार को राजस्व मंडल के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में रिट करनी चाहिए थी। फैसले को हुए एक वर्ष हो गया, लेकिन आज तक भी हाईकोर्ट में रिट करने का कोई निर्णय नहीं लिया गया है। प्रशासनिक क्षेत्रों में यह चर्चा आम है कि मंडल के जिन सदस्य अशफाक हुसैन ने फैसला दिया, उन्हें दौसा का जिला कलेक्टर नियुक्त किया गया है। यह माना कि अशफाक हुसैन ने किसी दबाव में यह फैसला नहीं दिया होगा, लेकिन यह भी सही है कि धौलपुर राजपरिवार का यह मामला अशफाक हुसैन की बेंच से पहले एक अन्य सदस्य प्रियवृत्त पांड्या की बेंच में सुनवाई के लिए लगा था। इस मुकदमे में पांड्या का क्या रुख रहा। यह तो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के ताकतवर सचिव तन्मय कुमार ही जाने, लेकिन इतना जरूर है कि प्रियवृत्त पांड्या आज अजमेर नगर निगम के आयुक्त जैसे छोटे से पद पर काम कर रहे हंै। जबकि पांड्या आईएएस बनने से दस वर्ष पहले जोधपुर में आयुक्त का काम कर चुके हैं। पांड्या की भी पदोन्नति अशफाक हुसैन के साथ ही हुई थी। किस अधिकारी की कहां नियुक्ति की जाए, यह विशेषाधिकार धौलपुर घराने से जुड़ी मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का ही है। 
हाल ही में जयपुर राजपरिवार के होटल राजमहल पैलेस  की 500 करोड़ रुपए की जमीन पर कब्जा लेने के लिए जयपुर विकास प्राधिकरण ने जो डंडा मार कार्यवाही की उसमें यह बता सामने आई है कि सीलिंग में आई जमीन को बचाने के लिए जो तर्क जयपुर ने दिए वो ही तर्क धौलपुर राजपरिवार ने दिए। सरकार ने जयपुर की जमीन को लेकर तो सुप्रीम कोर्ट तक में लड़ाई लड़ी। जबकि धौलपुर राजपरिवार के मामले को पिछले एक वर्ष से दबाए रखा गया है। अब तो हाईकोर्ट में रिट दायर करने की मयाद भी निकल गई है। जयपुर राजपरिवार को यह समझना चाहिए कि उनके खानदान का कोई मुख्यमंत्री नहीं है। जबकि धौलपुर राजपरिवार की सदस्य वसुंधरा राजे राजस्थान की मुख्यमंत्री हैं। इस राज में सरकार के किसी अधिकारी की इतनी हिम्मत है कि वह धौलपुर राजपरिवार के मामले में हाईकोर्ट में रिट दायर करवा दे? सरकार की नाराजगी कैसी होती है इसके बारे में आईएएस प्रियवृत्त पांड्या से पूछा जा सकता है। लेकिन पांड्या को इस बात का गर्व है कि उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा का उपयोग किसी राजपरिवार को खुश करने के लिए नहीं किया। जयपुर राजपरिवार को यह सवाल पूछने का पूरा हक है कि धौलपुर के मामले में हाईकोर्ट में रिट क्यों नहीं की गई? 
एक सितम्बर को जयपुर में सभा:
वसुंधरा सरकार ने जयपुर राजपरविार के खिलाफ जो कार्यवाही की है, उसके विरोध में एक सितम्बर को प्रात: सवा ग्यारह बजे जयपुर में त्रिपोलिया गेट पर एकसभा रखी गई है। इस सभा में अधिक से अधिक लोगों को एकत्रित करने के लिए राजपरिवार की प्रमुख राजमाता पद्मनी देवी ने भी अपील की है। इस सभा में भी धौलपुर राजपरिवार की जमीन के मामले को प्रमुखता के साथ रखा जाएगा। 

(एस.पी. मित्तल)  (31-08-2016)
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