Wednesday 7 September 2016

राजनेताओं की वजह से नहीं हो सका अलगाववादियों के खिलाफ सख्ती का फैसला। पाकिस्तान ने फिर कहा - भारत को तोडऩे वालों को करते रहेंगे मदद।

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राजनेताओं की वजह से नहीं हो सका अलगाववादियों के खिलाफ सख्ती का फैसला। पाकिस्तान ने फिर कहा - भारत को तोडऩे वालों को करते रहेंगे मदद। 
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कश्मीर के अलगाववादियों के हाथों अपमानित होकर लौटे राजनीतिक दलों के नेता 7 सितम्बर को भी अलगाववादियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करने को लेकर कोई फैसला नहीं कर सके। लेकिन वहीं पाकिस्तान के आर्मी चीफ राहिल राफेल ने कहा है कि कश्मीर में जो अलगाववादी भारत को तोडऩा चाहते हैं, उन्हें पूरा समर्थन दिया जाएगा। इतना ही नहीं 6 सितम्बर को ही घाटी में एक बार फिर अलगाववादियों ने सुरक्षा बलों के काफिले पर हमला किया, जिससे दो जवान बुरी तरह जख्मी हो गए। राजनीतिक दलों के जो नेता चार और पांच सितम्बर को कश्मीर गए थे, उन्होंने 7 सितम्बर को दिल्ली में केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह की उपस्थिति में विचार विमर्श किया। केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर चाहते थे कि अलगाववादियों को आतंकवादी मानकर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया जाए और अलगाववादियों को केन्द्र और राज्य की सरकारों की ओर से जो सुविधाएं मिल रही हैं उन पर भी रोक लगाई जाए। लेकिन सर्वदलीय बैठक में वोट बैंक की राजनीति के चलते कुछ दलों के नेताओं ने अलगाववादियों के खिलाफ सख्ती नहीं करने पर जोर दिया। इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि जो अलगाववादी पाकिस्तान की मदद से कश्मीर को भारत से अलग करना चाहते हैं, उनके विरुद्ध भी कार्यवाही करने में हमारे राजनीतिक दल एकमत नहीं हो रहे हैं। सवाल उठता है कि क्या कश्मीर के अलगाववादियों के खिलाफ कार्यवाही करने से भारत के दूसरे राज्यों में कोई नाराजगी होगी? यदि ऐसा है तो फिर भारत की एकता और अखण्डता के लिए इसे शुभ नहीं माना जा सकता। आखिर कुछ राजनीतिक दल अलगाववादियों के खिलाफ कार्यवाही करवाने में क्यों झिझक रहे हैं? भारत के लिये इससे अफसोस की बात और क्या हो सकती है कि अलगाववादियों को जेड श्रेणी की सुरक्षा तथा  घूमने फिरने के लिए हवाई यात्राओं तक का खर्चा सरकार देती है। खर्च का 90 प्रतिशत  केन्द्र और मात्र 10 प्रतिशत राज्य सरकार वहन करती है। जो अलगाववादी हमारे ही सुरक्षा बलों पर जानलेवा हमले करवा रहे हैं उन्हीं अलगाववादियों की सुरक्षा भी हमारे ही जवान कर रहे हैं। अंदाजा लगाया जा सकता है कि कश्मीर घाटी में तैनात सुरक्षा बलों की मानसिक स्थिति कैसी होगी। अपने सीने पर गोली खाकर भी देश के दुश्मनों की सुरक्षा करनी पड़ रही है। यदि राजनीतिक दल वाकई देश की एकता और अखण्डता बनाए रखना चाहते हैं तो उन्हें अलगाववादियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करने की छूट सरकार को देनी होगी। 

(एस.पी. मित्तल)  (07-09-2016)
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