Thursday 13 October 2016

#1846
राजस्थान के राजस्व मंत्री अमराराम चौधरी को बर्खास्त करने के लिए मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को और क्या सबूत चाहिए? तहसीलदारों के तबादलों से हुई सरकार की बदनामी। बेटे ने खिलाए गुल।
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राजस्थान की भाजपा सरकार और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे में जरा सी भी नैतिकता और ईमानदारी है तो प्रदेश के स्वतंत्र प्रभार वाले राजस्व मंत्री अमराराम चौधरी को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त कर देना चाहिए। 12 अक्टूबर को जिस तरह 134 तहसीलदारों की तबादला सूची जारी की गई, उसके बाद बर्खास्तगी के लिए और किसी सबूत की जरूरत नहीं है। मैंने 12 अक्टूबर के अपने ब्लॉग में संपूर्ण मीडिया क्षेत्र में सबसे पहले लिखा था कि राजस्व मंडल में 12 अक्टूबर को सायं 4 बजे मजबूरी में 134 तहसीलदारों की तबादला सूची वेबसाइट पर अपलोड की है। राजस्व मंत्री अमराराम चौधरी और राजस्व मंडल के अध्यक्ष अशोक शेखर को यह बताना चाहिए कि 10 अक्टूबर की डेट वाली तबादला सूची 12 अक्टूबर को सायं 4 बजे वेबसाइट पर अपलोड क्यों की गई? मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे माने या नहीं, लेकिन यह सच है कि एक तबादले में 2 लाख से लेकर 10 लाख तक का कारोबार हुआ है। इस कारोबार की पोल तब खुली जब 12 अक्टूबर की दोपहर को सोशल मीडिया पर 120 तहसीलदारों की तबादला सूची वायरल हो गई। यह सूची राजस्व मंत्री अमराराम चौधरी के नाम से जारी की गई। कारोबार का सबसे बड़ा सबूत यही है कि सोशल मीडिया और राजस्व  मंडल वाली सूची में 114 नाम समान हैं। आरोप है कि बेटे द्वारा अपने पिता के नाम वाली सूची को दिखा-दिखा कर बक्से भरे जा रहे थे, इसलिए राजस्व मंडल ने अधिकृत सूची को रोके रखा गया। यदि 12 अक्टूबर को सोशल मीडिया पर कारोबार वाली सूची वायरल नहीं होती तो राजस्व मंडल 10 अक्टूबर वाली सूची को अभी 2-3 दिन और अपलोड नहीं करता। असल में राजस्व विभाग के साथ-साथ राजस्व मंडल में भी कारोबार के ठेले और खोमचे चल रहे हैं। यानि बहती गंगा में सब डुबकी लगा रहे हैं।
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे माने या नहीं, लेकिन दो-दो तबादला सूची उजागर होने से भाजपा सरकार की बदनामी हो रही है। ये माना कि बहती गंगा में मुख्यमंत्री ने डुबकी नहीं लगाई, लेकिन यदि डुबकी लगाने वालों का पता चल जाए और फिर कार्यवाही न हो तो मुख्यमंत्री की ओर भी अंगुली उठेगी। मुख्यमंत्री को यदि और सबूत चाहिए तो गत अप्रैल माह में जारी तबादला सूची की जांच करवाले। अप्रैल में जिन तहसीलदारों के तबादले हुए उनमें से अनेक के नाम 12 अक्टूबर वाली सूची में भी हैं। उदाहरण के लिए बनवारी लाल शर्मा का नाम लिखा जा रहा है। अप्रैल में शर्मा को जयपुर जिले से बांसवाड़ा के आभापुर में लगाया गया, लेकिन 12 अक्टूबर वाली सूची में शर्मा वापस जयपुर जिले में नियुक्त हो गए। अब शर्मा जयपुर शहर की सीमा से लगे गांवों की भूमि की देखरेख करेंगे। करोड़ों नहीं अरबों का खेल है।  ऐसे में 10 लाख कोई मायने नहीं रखते। कारोबार का ही खेल है कि चित्तौड़ के निम्बाहेड़ा में गोपाल लाल कुम्हार साढ़े तीन वर्ष से तहसीलदारी कर रहे हैं। तहसीलदार प्रभुलाल जैन के खिलाफ एसीबी में जांच होने के बाद भी मलाईदार पोस्ट बार-बार दी जा रही है। तहसीलदारों के हितों के लिए तहसीलदार सेवा परिषद और राजस्व सेवा परिषद बनी हुई है, लेकिन इसके पदाधिकारी भी अपने स्वार्थ पूरे करने में लगे हुए हैं। यदि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को कारोबार के खेल की और जानकारी करनी है तो उदयपुर की यूआईटी के तहसीलदार गोरधनसिंह झाला, जोधपुर के सब रजिस्ट्रार से सोजत में लगे सत्यनारायण वर्मा, उदयपुर के सब रजिस्ट्रार शांतिलाल जैन आदि से ली जा सकती है। सीएम चाहे तो बांसवाड़ा के तहसीलदार सोहन लाल शर्मा के मामले की भी जांच करवा सकती हैं। शर्मा को बांसवाड़ा लगाए जाने के लिए सीएम सचिवालय से भी राजस्व मंत्री को पत्र भेजा था। राजस्व मंत्री के बेटे ने सीएम सचिवालय के पत्र को रद्दी की टोकरी में फेंक दिया। इससे नाथद्वारा के भाजपा विधायक राजपुरोहित बेहद नाराज है।
(एस.पी. मित्तल)  (13-10-2016)
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