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तो वसुंधरा सरकार को परवाह नहीं है संघ परिवार के मजदूर संगठन की। अजमेर की बिजली व्यवस्था प्राइवेट कम्पनी को देने का मामला।
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राजस्थान सरकार के ऊर्जा सलाहकार आर.जी. गुप्ता और गोयनका समूह की पावर कम्पनी के बीच अच्छी डील हो गई तो अजमेर की बिजली व्यवस्था फरवरी माह में ही निजी हाथों में चली जाएगी। 20 और 21 फरवरी को ऑनलाईन टेंडर होने हैं। ये वही आर.जी. गुप्ता हैं, जो प्रदेश की तीनों बिजली कम्पनियों के अध्यक्ष रह चुके हैं और इनके कार्यकाल में घाटा एक लाख करोड़ रुपए तक का हो गया था। अब इन्हीं आर.जी. गुप्ता के पास राजस्थान की बिजली व्यवस्था को निजी हाथों में देने की जिम्मेदारी है। अब तक कोटा और भरतपुर की बिजली व्यवस्था गोयनका समूह को दी जा चुकी है तथा बीकानेर में टेंडर फाइनल हो चुके हैं। अजमेर का मामला सिर्फ बिजली के खरीद मूल्य पर अटका हुआ है। गोयनका समूह चाहता है कि सरकार चार रुपए प्रति यूनिट की दर पर बिजली दे, जबकि वसुंधरा सरकार चार रुपए पैंसठ पैसे प्रति यूनिट मांग रही है। यदि डील सफल हो जाती है तो यह मामला चार रुपए पच्चीस पैसे प्रति यूनिट तक निपट सकता है। इसे वसुंधरा सरकार का करिश्मा ही कहा जाएगा कि प्राइवेट कम्पनी करीब 4 रुपए प्रति यूनिट की बिजली खरीद कर 8 रुपए 80 पैसे तक बेचेगी। राजस्थान में बिजली उपभोक्ता का विभाजन चार श्रेणियों में कर रखा है। घरेलू उपभोक्ता से 3 रुपए 85 पैसे से लेकर 7 रुपए 15 पैसे, व्यवसायिक उपभोक्ता से 7 रुपए 55 पैसे से 8 रुपए 80 पैसे, औद्योगिक उपभोक्ता से 6 रुपए से लेकर 7 रुपए प्रति यूनिट तक वसूले जाते हैं। यही दर प्राइवेट कम्पनी को भी लेने का अधिकार होगा। मीटर शुल्क, स्थायी शुल्क, सर्विस चार्ज आदि तो वसूले ही जाएंगे। अंदाजा लगाया जा सकता है कि 4 रुपए यूनिट की बिजली खरीद कर 9 रुपए तक बेचने पर कम्पनी को कितना फायदा होगा। विद्युत निगम के अधिकारी बार-बार यह दावा कर रहे हैं कि इससे छीजत और बिजली चोरी बंद हो जाएगी। अजमेर निगम में जो 13 जिले आते हैं, उसमें अजमेर शहर की छीजत मात्र 11.5 प्रतिशत की है। जबकि नागौर में 37 प्रतिशत, चित्तौड़ में 20 प्रतिशत, झुंझनूं में 23 प्रतिशत तथा सीकर में 24 प्रतिशत की छीजत और चोरी है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के घर माने जाने वाले झालावाड़ में 45 प्रतिशत और धौलपुर में 42 प्रतिशत की छीजत चोरी है। चूंकि अजमेर के भाजपा नेता बेहद ही कमजोर है, इसलिए बिजली व्यवस्था निजी हाथों में सौंपी जा रही है। अजमेर के किसी भी भाजपा नेता में इतनी भी हिम्मत नहीं कि वह मुख्यमंत्री से इस मुद्दे पर कोई सवाल कर सके। अजमेर के भाजपा नेताओं को यह पता है कि जब वसुंधरा सरकार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ परिवार के सदस्य भारतीय मजदूर संघ की ही परवाह नहीं कर रही है तो फिर उनकी क्या बिसात है। बिजली के निजीकरण के विरोध में संघ से जुड़े श्रमिक संगठन लगातार विरोध कर रहे हैं। अजमेर में न केवल चोरी और छीजत कम है बल्कि भूमिगत केबल का काम भी पूरा हो गया है। इस पर कोई 300 करोड़ रुपए सरकार के खर्च हुए हैं। यानि प्राइवेट कम्पनी को हर वो सहुलियत दी जा रही है, जिससे वह अधिक से अधिक मुनाफा कमा सके। कोटा में निजीकरण के बाद गोयनका समूह ने जिस तरह से बिजली कर्मचारियों से काम करवाया, उससे 75 प्रतिशत कर्मचारी काम छोड़ कर चले गए। संघ परिवार के भारतीय मजदूर संघ का बार-बार यह कहना है कि निजीकरण जनविरोधी फैसला है, लेकिन वसुंधरा सरकार पर इसका कोई असर नहीं हो रहा।
(एस.पी.मित्तल) (19-02-17)
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