Friday 31 March 2017

#2405
गुरमीत सिंह छाबड़ा जैसे हों सरकारी कार्मिक। 31 मार्च को है छाबड़ा की सेवानिवृत्ति। 
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अजमेर के बीएसएनएल के एजीएम के पद से गुरमीत सिंह छाबड़ा 31 मार्च को सेवानिवृत्त हो जाएंगे। छाबड़ा ने 36 वर्ष तक इस विभाग में काम किया है। अधिकांश समय छाबड़ा अजमेर में ही नियुक्त रहे। आज भले ही बीएसएनएल के फोन की कोई वक्त नहीं हो, लेकिन एक समय था जब आम नागरिक बीएसएनएल पर ही निर्भर था। यदि एक घंटे भी फोन खराब हो गए तो लोगों को परेशानी होती थी। सरकारी संस्था होने के कारण बीएसएनएल का ढर्रा शुरू से ही बिगड़ा रहा। बीएसएनएल का उपभोक्ता कभी भी सेवाओं से सन्तुष्ट नहीं रहा। ऐसे नकारात्मक माहौल में छाबड़ा ने काम कर अपनी कार्य कुशलता सिद्ध की। अजमेर के जिन लोगों का छाबड़ा से संवाद हुआ, उन्हें पता है कि समस्या का समाधान किस तेज गति से हुआ। आमतौर पर सरकारी कार्मिक समस्याओं के समाधान में रूचि नहीं रखता है। समस्या को एक-दूसरे पर टालने की कोशिश की जाती है। ऐसे में छाबड़ा जैसे अधिकारी अपनी अलग पहचान बना लेते हैं। छाबड़ा जब जेटीओ थे, तब दूसरे जेटीओ के क्षेत्र की समस्या का समाधान भी करवाने में तत्पर रहते थे। धार्मिक प्रवृत्ति के होने के कारण छाबड़ा पर कभी ऊपरी कमाई का भी आरोप नहीं लगा। सवाल छाबड़ा की सेवानिवृत्ति का नहीं है। सवाल यह है कि सरकारी दफ्तरों में छाबड़ा जैसी प्रवृत्ति के कार्मिकों का अभाव है। मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि छाबड़ा सेवानिवृत्ति के बाद भी जनसेवा का काम करते रहें और बीएसएनएल में छाबड़ा जैसी प्रवृत्ति के अधिकारियों की संख्या में वृद्धि हो। ताकि बीएसएनएल के डूबते जहाज को बचाया जा सके। बीएसएनएल के कार्मिक यह अच्छी तरह समझ लें कि उपभोक्ता की संतुष्टि होने पर ही उनकी नौकरी सलामत है। 
(एस.पी.मित्तल) (30-03-17)
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