Sunday 30 April 2017

#2519
एक साल से नहीं बनी कार्यकारिणी। अजमेर में कैसे चलेगा कांग्रेस का सदस्यता अभियान। आखिर अजमेर के लिए क्यों  नहीं मिल रही सचिन पायलट को फुर्सत।
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विजय जैन को अजमेर शहर कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बने एक साल से भी ज्यादा का समय हो गया है। लेकिन 30 अप्रैल तक भी शहर कांग्रेस की कार्यकारिणी की घोषणा नहीं हो सकी है। हालांकि इस एक वर्ष की अवधि में जैन ने कांग्रेस संगठन को सक्रिय बनाए रखने के भरसक प्रयास किए, लेकिन जैन के सामने अब सबसे बड़ी मुसीबत कांग्रेस के सदस्यता अभियान की है। आगामी 15 मई तक लक्ष्य के मुताबिक शहर भर में 30 हजार सदस्य बनाने है। संगठन के नाम पर जैन अकेले पदाधिकारी हैं। अंदाजा लगाया जा सकता है कि जैन अकेले दम पर तीस हजार सदस्यों को कैसे बनाएंगे। संगठनात्मक दृष्टि से शहर में कांग्रेस की स्थिति पहले से ही कमजोर है। कार्यकारिणी का गठन नहीं होने से हालात और खराब है।
पायलट का है निर्वाचन क्षेत्र : 
शहर कांग्रेस कार्यकारिणी का गठन नहीं होने का महत्व इसलिए भी है कि अजमेर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के  अध्यक्ष सचिन पायलट का चुनाव क्षेत्र है। पायलट वर्ष 2009 से 2014 तक अजमेर से ही सांसद थे। गत चुनावों में पायलट को हार का सामना करना पड़ा। सूत्रों के अनुसार चुनाव क्षेत्र होने की वजह से पायलट अजमेर के हर निर्णय पर सर्तकता बरतते है। शहर अध्यक्ष जैन ने अपनी ओर से प्रस्तावित कार्यकारिणी पायलट को सौंप दी है। पायलट ने जैन के अलावा महेन्द्र सिंह रलावता, हेमन्त भाटी, कमल बाकोलिया आदि नेताओं से भी नाम मंगवा लिए थे, लेकिन इसके बावजूद भी पायलट की ओर से कार्यकारिणी की घोषणा नहीं की गई है। इस संबंध में शहर अध्यक्ष विजय जैन का कहना है कि पायलट की व्यस्तता के चलते कार्यकारिणी की घोषणा नहीं हो पा रही है। उन्होंने माना कि यदि पदाधिकारी घोषित हो जाएं तो सदस्यता अभियान को और प्रभावी तरीके से चलाया जा सकता है। सवाल उठता है कि आखिर पायलट को अजमेर के लिए कब फुर्सत मिलेगी? पायलट की व्यस्तता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि अभी तक शहर के चारों ब्लॉकों की नई कार्यकारिणी नहीं बनी है। यहां  तक कि वार्ड कार्यकारणियां भी पायलट के पास अटकी पड़ी हैं। बताया जाता है कि अजमेर शहर में नेताओं के बीच जो आपसी खीचतान है, उसी की वजह से पायलट कोई जोखिम नहीं लेना चाहते है।
एस.पी.मित्तल) (30-04-17)
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#2518
क्या ले. कर्नल मंसूर अली अब भी दरगाह नाजिम के पद पर टिके रहना चाहते हैं? 
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इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि केन्द्रीय अल्पसंख्यक मामलात मंत्रालय को मात्र 6 माह की अवधि में अजमेर स्थित विश्व विख्यात ख्वाजा साहब की दरगाह के लिए नए नाजिम की तलाश करनी पड़ रही है। मंत्रालय ने नाजिम की योग्यता रखने वाले सुन्नी हनफी मुसलमानों से आगामी 15 जून तक आवेदन मांगे हैं। मंत्रालय ने वर्तमान नाजिम ले. कर्नल मंसूर अली को गत वर्ष 17 अक्टूबर को नियुक्त किया था। तब यह उम्मीद जताई गई कि सेना के अनुशासन और सख्त रूख के अन्तर्गत मंसूर अली दरगाह में नाजिम के पद की जिम्मेदारी को निभाएंगे। लेकिन मंसूर अली ने विपरीत परिस्थितियों का मुकाबला करने के बजाए, नियुक्ति के चार माह बाद ही इस्तीफा दे दिया। मंसूर अली ने नाजिम के पद से तब इस्तीफा दिया, जब 25 मार्च से ख्वाजा साहब का सालाना उर्स शुरू हो रहा था। उर्स के आयोजन में दरगाह कमेटी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसीलिए मंत्रालय ने मंसूर अली से आग्रह किया कि वह अगले आदेशों तक नाजिम के पद पर बने रहे। इधर मंत्रालय ने इस्तीफे को तत्काल स्वीकार नहीं किया और उधर मंसूर अली का मन भी बदलने लग गया। बताया जा रहा है कि अब मंसूर अली दरगाह के नाजिम के पद पर बने रहना चाहते हैं। इसके लिए बाकायदा लाबिंग की जा रही है। अपने रसूखातों से मंत्रालय में यह सूचना भिजवाई जा रही है कि मंसूर अली पूरी जिम्मेदारी के साथ नाजिम का काम कर रहे हैं। जिला प्रशासन के अधिकारियों को भी नाजिम के व्यवहार में आए बदलाव पर आश्चर्य है। नाजिम का पद संभालने के बाद जो मंसूर अली प्रशासनिक अधिकारियों से सीधे मुंह बात नहीं करते थे, वे अब आगे होकर छोटे से छोटे अधिकारी को भी फोन कर रहे हैं। मंसूर अली के मन बदलने का अन्दाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि दरगाह के कुछ खादिमों ने केन्द्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी को पत्र लिख कर मंसूर अली को नाजिम बनाए रखने का आग्रह किया है। मंसूर अली ने भी अब खादिम समुदाय के प्रति बेहद ही नरम रूख अपना लिया है। नाजिम का पद संभालते ही दरगाह के अंदर के इन्तेजाम सुधारने के लिए मंसूर अली ने खादिमों द्वारा तैयार की जाने वाली तर्बरूक की देगों को दरगाह के अन्दर लाने पर रोक लगा दी थी। अपने मेहमान के कहने पर खादिम अपने घरों पर छोटी देग पकवाते हैं और फिर दरगाह के अंदर लाकर संबंधित मेहमान की मन्नत पूरी होने के लिए दुआ करते हैं। इस धार्मिक रस्म को खादिम दरगाह के अन्दर बनी अपनी गद्दी पर करते हैं। लेकिन अब इस परम्परा पर नाजिम की ओर से कोई रोक नहीं है। 
रूक सकती है नए नाजिम की तलाश :
जानकारों की माने तो मंत्रालय ने नए नाजिम की तलाश का जो काम शुरू किया है, वह रूक सकता है। हो सकता है कि खादिमों का एक शिष्टमंडल शीघ्र ही दिल्ली जाकर केन्द्रीय मंत्री नकवी से मुलाकात करें और मंसूर अली को ही नाजिम बनाए रखने का दबाव बनाए। इसके लिए मंंसूर अली की ओर से भी प्रभावी प्रयास किए जा सकते हैं। 
एस.पी.मित्तल) (30-04-17)
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#2517
500 लड़कों के मुकाबले मात्र 250 लड़कियां। अजमेर में हुआ अग्रवाल समाज का वैवाहिक परिचय सम्मेलन।
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30 अप्रेल को अजमेर के जनकपुरी समारोह स्थल पर अग्रवाल समाज के एक धड़े का वैवाहिक परिचय सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में समाज की प्रतिष्ठा के अनुरूप शान-ओ-शौकत तो पूरी थी, लेकिन इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि स्मारिका में 500 लड़कों के मुकाबले 250 लड़कियों के नाम ही दर्ज थे। युवक-युवतियों के बायोडेटा देखने से भी जाहिर था कि बेटियां बहुत आगे हैं। इस वैवाहिक स्मारिका से पता चल रहा था कि अन्य समाजों की तरह अग्रवाल समाज का भी बुरा हाल है। सवाल उठता है कि स्मारिका में 500 लड़कों के मुकाबले 250 लड़कियों के नाम ही क्यों दर्ज हैं? असल में लड़कियों के ज्यादा पढ़-लिख जाने और अच्छे पैकेज की नौकरी मिल जाने की वजह से समय पर लड़कियों का विवाह आसानी से हो जाता है। जबकि ना पढ़ाई करने और ना रोजगार मिलने की वजह से कुंआरे लड़कों की संख्या लगातार बढ़ती जाती है। ऐसे कई कुंआरे हैं, जो अपने समाज के हर सम्मेलन में अपना नाम दर्ज करवाते हैं। लेकिन फिर भी विवाह नहीं हो पाता। जो लोग समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं, उन्हें इस गंभीर समस्या पर विचार करना होगा, नहीं तो आने वाले समय में स्मारिकाओं में लड़कियों की संख्या और कम हो जाएगी।
पदाधिकारी भी कराएं अपने बच्चों के विवाह :
वैवाहिक परिचय और सामूहिक विवाह के सम्मेलन सभी समाजों में होने लगे हैं, इसमें कोई दो राय नहीं कि इससे आर्थिक दृष्टि से कमजोर परिवारों को लाभ मिलता है। लेकिन ऐसे सम्मेलनों का महत्व तभी होगा, जब समाज के पदाधिकारी भी अपने बेटे-बेटियों का विवाह अथवा परिचय ऐसे सम्मेलनों में कराएं। आम तौर पर होता यह है कि समाज के प्रतिनिधि अपने बच्चों के विवाह के समारोह पर तो 50 लाख से लेकर 1 करोड़ रुपए तक का खर्च करते हैं और फिर ऐसे सम्मेलनों में आकर दहेज और फिजूलखर्ची पर भाषण देते हैं। ऐसे पदाधिकारी भाषण इसलिए दे पाते हैं कि सम्मेलन को करवाने में हजारों रुपयों का चन्दा देते हैं। यदि ऐसा नेता चन्दा देने के बजाए अपने बेटे-बेटियों का विवाह व परिचय सम्मेलन में कराएं तो ऐसे सम्मेलनों की ज्यादा सार्थकता होगी। जो लोग समाज का सुधार करने के प्रवचन देते हैं, उन्हें सुधार की शुरूआत अपने घर से करनी चाहिए। 
शिक्षा जरूरी - कलेक्टर :
अखिल भारतीय अग्रवाल संगठन की अजमेर शाखा की ओर से आयोजित वैवाहिक परिचय सम्मेलन में जिला कलेक्टर गौरव गोयल ने कहा कि अग्रवाल समाज में जो लोग परम्परागत तौर पर व्यवसाय कर रहे हैं, उन्हें भी उच्च शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। अब व्यापार शहर, प्रदेश और देश तक सीमित नहीं रहा है। समाज के युवाओं को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर कारोबार के गुण सीखने चाहिए। मेरा मानना है कि हमारे समाज के युवा योग्यता में किसी से कम नहीं है। उन्होंने कहा कि बेटियों को भी खूब पढ़ाया जाना चाहिए। 
सम्मेलन को सफल बनाने में गिरधारी मंगल, मुकेश डाणी, दीपचंद श्रीया, रमेश मित्तल, शैलेन्द्र अग्रवाल, अशोक गोयल, ललित डिडवानियां, नवल किशोर गोयल, रमेश चन्द्र अग्रवाल, चांदकरण अग्रवाल, एस.एन.मोदी, अविनाश गुप्ता, प्रवीण अग्रवाल आदि का सहयोग रहा। 
(एस.पी.मित्तल) (30-04-17)
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Saturday 29 April 2017

#2516
बुजुर्ग सास को तंग नहीं करने के लिए बहु को किया पाबन्द। अजमेर की अदालत का घरेलू हिंसा पर खास फैसला।
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आम तौर पर घरेलू हिंसा के प्रकरणों में सास, ससुर, ननद आदि को ही दोषी मानकर जेल भेजा जाता है, लेकिन इसी घरेलू हिंसा अधिनियम के अन्तर्गत स्त्री संरक्षण में बहू को पाबन्द किया गया है।  अजमेर के चन्दबरदाई नगर में बी ब्लॉक में रहने वाली श्रीमती गीता देवी ने एक वाद घरेलू हिंसा अधिनियम के अन्तर्गत ही न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम की अदालत में प्रस्तुत किया। इस वाद में कहा गया कि उसके बेटे का विवाह जयपुर निवासी राजेश कुमार की पुत्री शालिनी से वर्ष 2011 में हुआ था। विवाह के बाद से ही शालिनी हमारे पास अजमेर में नहीं रही। लेकिन अब धमकी दे रही है कि दहेज प्रताडऩा के झूठे मामले में फंसवा दूंगी। शालिनी हमारे चन्द्रवरदाई नगर वाले मकान पर आकर तंग कर रही है। इसमें शालिनी के पिता, भाई, रिश्तेदार आदि भी शामिल हैं। हालांकि इस वाद पर शालिनी की ओर से एतराज किया गया। लेकिन बुजुर्ग गीता देवी के वकील जिनेश सोनी ने तर्क दिया कि घरेलू हिंसा का अधिनियम सभी स्त्रियों को संरक्षण प्रदान करता है। चूंकि इस मामले में सास गीता देवी बहु की हिंसा से शिकार है, इसलिए अदालत से न्याय मिलना चाहिए। दोनों पक्षों के तर्क सुनने के बाद न्यायिक मजिस्ट्रेट कृष्णा गुप्ता ने शालिनी शर्मा को पाबन्द किया कि वह श्रीमती गीता देवी पर किसी भी प्रकार से घरेलू हिंसा न करे और न ही गीता देवी को उसके मकान से बेदखल किया जाए। अदालत ने इस सम्बन्ध में सम्बन्धित पुलिस स्टेशन को भी सूचित किया है। इस प्रकरण की और अधिक जानकारी मोबाइल नम्बर 9461276899 पर एडवोकेट जिनेश सोनी से ली जा सकती है।  
(एस.पी.मित्तल) (29-04-17)
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#2515
सूफी मुसलमान और हिन्दुओं को बसाने पर ही होगा कश्मीर का समाधान। 
अच्छा हो सुप्रीम कोर्ट के जज घाटी का दौरा करें।
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जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की याचिका पर कश्मीर समस्या अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। सुप्रीम कोर्ट इस समस्या का समाधान कैसे करेगा, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। लेकिन किसी भी प्रकार की सुनवाई से पहले सुप्रीम कोर्ट के संबंधित जजों को कश्मीर घाटी का दौरा कर लेना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की वातानुकूलित बिल्डिंग में बैठकर कोई भी जज घाटी के हालातों को समझ नहीं सकता। जजों को यह देखना चाहिए कि आतंकवादियों की गोलियों और अलगाववादियों के पत्थरों के बीच हमारे सुरक्षा बलों के जवान किस प्रकार काम करते हैं। आजादी के बाद से ही घाटी के हालात बिगड़ते रहे। संभवता यह पहला अवसर है, जब केंद्र सरकार ने अलगाववादियों से किसी भी प्रकार से वार्ता करने से इंकार कर दिया है। इससे उन नेताओं के अहम को चोट लगी है, जो पाकिस्तान के इस्लामाबाद और हमारी दिल्ली में सरकारी बिरयानी खा रहे थे। अलगाववादी अब यह साबित करने में लगे हुए हैं कि जब तक हम से वार्ता नहीं की जाएगी, तब तक घाटी में अशांति बनी रहेगी और पाकिस्तान से आतंकवादी आते रहेंगे व सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंके जाते रहेंगे। मुझे नहीं पता कि सुप्रीम कोर्ट समस्या के समाधान का क्या रास्ता निकालेगा, लेकिन मेरा मानना है कि कश्मीर घाटी में सूफी मुसलमानों और हिंदुओं को बसाया जाना चाहिए। जब तक घाटी में देशभक्त नहीं रहेंगे तब तक शांति नहीं हो सकती है। मेरा यह भी मानना है कि सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के प्रति अकीदत रखने वाले किसी भी मुसलमान को हिंदुओं के साथ रहने में कोई आपत्ति नहीं है। वैसे भी ख्वाजा साहब का सूफीवाद भाईचारे का पैगाम देता है। असल में घाटी में उन तत्वों का बोलबाला है, जो कश्मीरियों को हिंदुओं के साथ रहने नहीं देना चाहते। यही वजह रही कि 4 लाख हिन्दुओं को पीट-पीटकर घाटी से भगा दिया गया। कश्मीर में अमन-चैन के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को भी हटाना पड़ेगा। समझ में नहीं आता कि जो कश्मीरी खुलेआम हमारे सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंककर आजादी की मांग करते हैं, उन्हें अनुच्छेद 370 का विशेष लाभ क्यों दिया जा रहा है? पूरी दुनिया में भारत ऐसा मुल्क होगा, जो देश के विभाजन की मांग करने वालों को ही विशेष सुविधाएं दे रहा है जबकि अनुच्छेद 370 का लाभ कश्मीर को छोड़कर देश में रहने वाले किसी भी मुसलमान को नहीं मिल रहा। जो अलगाववादी हमारे कश्मीर के हालात बिगड़ रहे हैं, उन्हें पाक अधिकृत कश्मीर के मुसलमानों की स्थिति देखनी चाहिए। क्या पीओके के किसी मुसलमान को हमारे कश्मीर की तरह अनुच्छेद 370 की सुविधाएं मिल रही हैं? अच्छा हो, अलगाववादी पाकिस्तान में बैठे भारत विरोधी कट्टरपंथियों के इशारों पर नाचने के बजाय पीओके में रह रहे मुसलमानों की स्थिति को सुधारने का अभियान चलाएं।
(एस.पी.मित्तल) (29-04-17)
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#2514
तो केजरीवाल ने कुमार विश्वास को दिया राज्यसभा सांसद का लॉलीपॉप।
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पिछले 2 दिनों से सभी न्यूज चैनलों पर देश के सुप्रसिद्ध कवि कुमार विश्वास छाए हुए हैं। चैनलों पर कुमार विश्वास के विशेष इंटरव्यू प्रसारित हो रहे हैं। कुमार विश्वास का मकसद दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की छवि को सुधारना है। जिस अंदाज में केजरीवाल का बचाव हो रहा है, उससे प्रतीत होता है कि कुमार विश्वास को राज्यसभा सांसद का लॉलीपॉप थमा दिया गया है। पहले पंजाब, गोवा और अब एमसीडी के चुनाव में करारी हार को केजरीवाल और उनकी पार्टी आप के नेताओं ने ईवीएम को जिम्मेदार बताया, वहीं कुमार ने कहा कि मतदाताओं ने हमें वोट ही नहीं दिए। कुमार ने यह भी कहा कि वे केजरीवाल की सहमति से ही इंटरव्यू दे रहे हैं। असल में चुनावी हार के बाद केजरीवाल को जो बात कहनी चाहिए थी, वह कुमार विश्वास के माध्यम से करवाई जा रही है। सब जानते हैं कि केजरीवाल ने न तो पंजाब और नई दिल्ली के पालिका चुनाव में कुमार से प्रचार करवाया। कई मौकों पर कुमार ने यह माना कि आम आदमी पार्टी अपने उद्देश्य से भटक गई है। ऐसे में अचानक न्यूज़ चैनलों पर आकर केजरीवाल की तरफदारी करना कुमार विश्वास पर अनेक सवाल उठाता है। सवाल उठता है कि जब केजरीवाल और उनकी पार्टी डूबता जहाज हो रही है तब कुमार विश्वास जैसा सुविख्यात कवि अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर क्यों लगा रहा है। जानकारों की माने तो इसी वर्ष होने वाले राज्यसभा के चुनाव में एक सांसद आप का भी चुना जाना है। केजरीवाल ने कुमार विश्वास को भरोसा दिलाया है कि राज्यसभा में उन्हें ही भेजा जाएगा। इस लॉलीपॉप को लेकर ही कुमार विश्वास केजरीवाल की वकालत कर रहे हैं। कुमार विश्वास को लगता है कि सांसद बनने के बाद वे राज्यसभा में भी अपना जलवा दिखाएंगे। कुमार विश्वास एक अच्छे कवि के साथ-साथ प्रभावी वक्ता भी हैं। अब देखना होगा कि क्या केजरीवाल अपने वायदे के मुताबिक कुमार विश्वास को राज्यसभा का सांसद बनवाते हैं या नहीं।
(एस.पी.मित्तल) (29-04-17)
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#2513
मंत्री देवनानी के लिए ब्राह्मणों ने किया सद्बुद्धि यज्ञ। पुष्कर में हुई फरसे की पूजा ।
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29 अप्रैल को ब्राह्मण संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने तीर्थ गुरु पुष्कर में राजस्थान के स्कूली शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी की सद्बुद्धि के लिए यज्ञ किया। साथ ही पुष्कर सरोवर पर भगवान परशुराम के फरसे की पूजा की। ब्राह्मणों के खिलाफ कथित तौर पर अपमानजनक टिप्पणी करने के विरोध में ब्राह्मण समुदाय देवनानी के खिलाफ  पिछले कई दिनों से आंदोलनरत है। इसी क्रम में 29 अप्रैल को संघर्ष समिति के योगेंद्र ओझा, सुदामा शर्मा, राजीव शर्मा, विवेक पाराशर आदि के नेतृत्व में बड़ी संख्या में ब्राह्मण समुदाय के लोग पुष्कर स्थित ब्रह्मा मंदिर पर एकत्रित हुए। मंदिर पर ही पदाधिकारियों ने घोषणा की कि जब तक देवनानी ब्राह्मण समुदाय से माफी नहीं मांगेंगे, तब तक विरोध जारी रहेगा। देवनानी की अपमानजनक टिप्पणी से ब्राह्मण समुदाय में भारी रोष व्याप्त है। पदाधिकारियों ने पवित्र सरोवर के घाट पर दुग्धाभिषेक भी किया। इस अवसर पर देवनानी के लिए सद्बुद्धि यज्ञ भी किया गया। ब्राह्मणों ने भगवान परशुराम के फरसे की पूजा कर प्रार्थना की कि देवनानी को जल्द से जल्द सद्बुद्धि आ जाए और वह माफी मांग लें। इस अवसर पर पूर्व मुख्य सचेतक और कांग्रेस के नेता रघु शर्मा भी उपस्थित थे। शर्मा ने भी कहा कि यदि देवनानी ने माफी नहीं मांगी तो प्रदेश भर में ब्राह्मण समुदाय की ओर से विरोध किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि जयपुर के एक समारोह में देवनानी ने कहा था कि जब ब्राह्मण समाज के लोग अपने नाम से पहले पंडित शब्द लगाते हैं तो कोई एतराज नहीं होता और मैंने एक शिक्षाविद् होने के नाते अपने नाम से पहले प्रोफेसर लगा लिया है तो विवाद किया जा रहा है । जबकि पंडित शब्द का अर्थ विद्वता से होता है। ब्राह्मणों का कहना है कि देवनानी ने पंडितों की विद्वता को चुनौती दी है। 
फूट डालने वालों को सिखाएंगे सबक:
एडवोकेट योगेन्द्र ओझा ने कहा कि समाज में फुट डालने की कुचेष्ठा करने वालों को समाज धरातल दिखा देगा। सभी जनप्रतिनिधियों से अपील की कि समाज का अनादर करने वालों को जड़ से उखाड़ फेंके। उन्होंने कहा कि देवनानी ने जो राजनीतिक चाल चलने का प्रयास किया है, वह बचकाना है। पाठ्यक्रम को तय करना माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की कमेटी द्वारा होता है, क्या जोडऩा है और क्या हटाना है। यह निर्णय कमेटी करती है, इसमे मंत्री की कोई भूमिका नहीं होती है। अत: उनकी यह घोषणा एक राजनीतिक जुमला है, इससे अधिक कुछ नहीं। उन्होंने कहा कि क्या देवनानी को भगवान परशुराम की जयंती पर ही याद आनी थी?
(एस.पी.मित्तल) (29-04-17)
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मंत्री देवनानी के लिए ब्राह्मणों ने किया सद्बुद्धि यज्ञ। पुष्कर में हुई फरसे की पूजा ।
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29 अप्रैल को ब्राह्मण संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने तीर्थ गुरु पुष्कर में राजस्थान के स्कूली शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी की सद्बुद्धि के लिए यज्ञ किया। साथ ही पुष्कर सरोवर पर भगवान परशुराम के फरसे की पूजा की। ब्राह्मणों के खिलाफ कथित तौर पर अपमानजनक टिप्पणी करने के विरोध में ब्राह्मण समुदाय देवनानी के खिलाफ  पिछले कई दिनों से आंदोलनरत है। इसी क्रम में 29 अप्रैल को संघर्ष समिति के योगेंद्र ओझा, सुदामा शर्मा, राजीव शर्मा, विवेक पाराशर आदि के नेतृत्व में बड़ी संख्या में ब्राह्मण समुदाय के लोग पुष्कर स्थित ब्रह्मा मंदिर पर एकत्रित हुए। मंदिर पर ही पदाधिकारियों ने घोषणा की कि जब तक देवनानी ब्राह्मण समुदाय से माफी नहीं मांगेंगे, तब तक विरोध जारी रहेगा। देवनानी की अपमानजनक टिप्पणी से ब्राह्मण समुदाय में भारी रोष व्याप्त है। पदाधिकारियों ने पवित्र सरोवर के घाट पर दुग्धाभिषेक भी किया। इस अवसर पर देवनानी के लिए सद्बुद्धि यज्ञ भी किया गया। ब्राह्मणों ने भगवान परशुराम के फरसे की पूजा कर प्रार्थना की कि देवनानी को जल्द से जल्द सद्बुद्धि आ जाए और वह माफी मांग लें। इस अवसर पर पूर्व मुख्य सचेतक और कांग्रेस के नेता रघु शर्मा भी उपस्थित थे। शर्मा ने भी कहा कि यदि देवनानी ने माफी नहीं मांगी तो प्रदेश भर में ब्राह्मण समुदाय की ओर से विरोध किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि जयपुर के एक समारोह में देवनानी ने कहा था कि जब ब्राह्मण समाज के लोग अपने नाम से पहले पंडित शब्द लगाते हैं तो कोई एतराज नहीं होता और मैंने एक शिक्षाविद् होने के नाते अपने नाम से पहले प्रोफेसर लगा लिया है तो विवाद किया जा रहा है । जबकि पंडित शब्द का अर्थ विद्वता से होता है। ब्राह्मणों का कहना है कि देवनानी ने पंडितों की विद्वता को चुनौती दी है। 
फूट डालने वालों को सिखाएंगे सबक:
एडवोकेट योगेन्द्र ओझा ने कहा कि समाज में फुट डालने की कुचेष्ठा करने वालों को समाज धरातल दिखा देगा। सभी जनप्रतिनिधियों से अपील की कि समाज का अनादर करने वालों को जड़ से उखाड़ फेंके। उन्होंने कहा कि देवनानी ने जो राजनीतिक चाल चलने का प्रयास किया है, वह बचकाना है। पाठ्यक्रम को तय करना माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की कमेटी द्वारा होता है, क्या जोडऩा है और क्या हटाना है। यह निर्णय कमेटी करती है, इसमे मंत्री की कोई भूमिका नहीं होती है। अत: उनकी यह घोषणा एक राजनीतिक जुमला है, इससे अधिक कुछ नहीं। उन्होंने कहा कि क्या देवनानी को भगवान परशुराम की जयंती पर ही याद आनी थी?
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Friday 28 April 2017

#2512
राजस्थान सेंट्रल यूनिवर्सिटी का घमासान केंद्र सरकार तक पहुंचा।
एबीवीपी ने लगाया कुलपति पुजारी पर दमन का आरोप।
अजमेर जिले के बांदरसिंदरी स्थित राजस्थान सेंट्रल यूनिवर्सिटी का घमासान अब केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर तक पहुंच गया है। पिछले एक पखवाड़े से कुलपति ए.के.पुजारी और यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी आमने-सामने हैं । एवीबीपी से जुड़े छात्र नेताओं ने आरोप लगाया है कि कुलपति पुजारी अपनी एक विचारधारा के चलते विद्यार्थियों पर दमन कर रहे हैं। पहले 9 विद्यार्थियों को बिना किसी ठोस कारण के निलंबित कर दिया और जब विद्यार्थियों ने विरोध किया तो उन्हें शांतिभंग के आरोप में गिरफ्तार करवा दिया। कुलपति पुजारी की मानसिकता का पता इसी से लगता है कि अनेक विद्यार्थियों को परीक्षा से भी वंचित कर दिया गया है। ऐसे में विद्यार्थियों का भविष्य अंधकार मय हो गया है। एबीवीपी के क्षेत्रीय संगठन मंत्री संजय पाचपौर ने यूनिवर्सिटी में चल रहे घमासान की ओर केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का ध्यान आकर्षित किया है। जावड़ेकर को बताया गया है की कुलपति की छात्र विरोधी मानसिकता के चलते यूनिवर्सिटी में अराजकता का माहौल है। यदि मंत्रालय ने जल्द दखल नहीं दिया तो हालात बिगड़ेंगे। यूनिवर्सिटी ऐसे लोगों का अड्डा बन गई है जो सरकार की भी छवि खराब करने पर तुले हुए हैं। यूनिवर्सिटी में एक खास विचारधारा के अध्यापक भी माहौल को बिगाड़ रहे हैं। 28 अप्रैल को भी विद्यार्थियों ने कुलपति पुजारी के खिलाफ प्रदर्शन किया। हालांकि प्रशासनिक अधिकारियों ने भी कुलपति पुजारी को समझाने का प्रयास किया है, लेकिन अभी तक भी वंचित विद्यार्थियों को वार्षिक परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं मिली है। कुलपति के निर्णय के खिलाफ पीडि़त विद्यार्थियों ने राजस्थान हाईकोर्ट में भी याचिका दायर की है, लेकिन इस याचिका पर भी 28 अप्रैल को सुनवाई टल गई। अब हाईकोर्ट में 2 मई को सुनवाई होगी। वहीं एबीवीपी के प्रदेश सहमंत्री मेघराज चौधरी, राजेश गुर्जर, नितेश, सुनील चौपड़ा, श्याम सुंदर शर्मा, महेंद्र, यादवेंद्र सिंह शेखावत आदि के नेतृत्व में 28 अप्रैल को भी विरोध प्रदर्शन जारी रहा। माहेश्वरी और देवनानी को भी बताई पीड़ा :
परेशान विद्यार्थियों ने राजस्थान की उच्च शिक्षा मंत्री श्रीमती किरण माहेश्वरी और स्कूली शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी को भी अपनी पीड़ा से अवगत कराया है। दोनों मंत्रियों ने उचित कार्यवाही का आश्वासन दिया है।
एस.पी.मित्तल) (28-04-17)
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#2511
परशुराम जयंती पर मंत्री देवनानी को पंडितों ने पूजा भी करवाई और प्रशंसा भी की। पाठ्यक्रम का हिस्सा बनेगी परशुराम की जीवनी।
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कत्थित टिप्पणी को लेकर अजमेर का ब्राह्मण समुदाय भले ही स्कूली शिक्षामंत्री वासुदेव देवनानी का विरोध कर रहा हो, लेकिन 28 अप्रैल को भगवान परशुराम जयंती पर पंडितों ने न केवल देवनानी को पूजा करवाई, बल्कि सार्वजनिक मंच से प्रशंसा भी की। देवनानी ने भी भगवान परशुराम की शिक्षा को आज भी समाज में प्रसंगिक बताया। यूं तो परशुराम जयंती पर ब्राह्मण समाज ने शहर भर में अनेक कार्यक्रम किए, इसी क्रम में दो महत्वपूर्ण कार्यक्रम अजमेर के तोपदड़ा स्थित शिक्षा संकुल के परिसर में शिक्षा विभाग की ओर से भी आयोजित हुए। इन दोनों कार्यक्रमों में देवनानी मुख्य अतिथि थे। देवनानी ने संस्कृत के संभाग स्तरीय भवन का शिलान्यास किया, भामाशाह नेमीचंद तोषनीवाल के सहयोग से बनने वाले भवन का भूमि पूजन पंडित गौरव शर्मा ने उत्साह के साथ करवाया। पंडित जी ने मंत्री देवनानी के माथे पर तिलक लगाया और हाथ में धागा भी बांधा। पंडित जी ने देवनानी के उज्ज्वल भविष्य के लिए मंत्रोच्चारण भी किया। समारोह के विशिष्ट अतिथि अजमेर के कड़क्का चौक स्थित लक्ष्मी मंदिर के प्रमुख श्याम सुंदर देवाचार्य ने कहा कि देवनानी समाज के सभी वर्गों का सम्मान करते हैं। देवनानी ने शिक्षा विभाग में आमूलचूल बदलाव किए हैं। यह अच्छी बात है कि संस्कृत के संभाग स्तरीय कार्यालय के भवन का शिलान्यास भगवान परशुराम की जयंती पर हो रहा है। देवाचार्य ने उम्मीद जताई कि भगवान परशुराम का आशीर्वाद देवनानी पर हमेशा बना रहेगा। शिक्षा संकुल के परिसर में ही दूसरा बड़ा कार्यक्रम भारतीय शिक्षण मंडल की ओर से आयोजित किया गया। इस समारोह के मुख्य अतिथि भी देवनानी ही रहे। समारोह में सुविख्यात शिक्षाविद् डॉक्टर बद्री प्रसाद पंचोली और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अजयमेरु महानगर के संघचालक सुनील दत्त जैन अतिथि के तौर पर उपस्थित थे। डॉक्टर पंचोली और जैन ने अपने संबोधन में कहा कि आज ऐसी शिक्षा की जरूरत है जो देश भक्ति से ओतप्रोत हो। राजस्थान में इस काम को शिक्षा मंत्री देवनानी बखूबी कर रहे हैं। समारोह में देवनानी ने घोषणा की कि स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम में भगवान परशुराम की जीवनी को शामिल किया जाएगा। देवनानी की इस घोषणा का उपस्थित लोगों ने स्वागत किया। 
युवा ब्राह्मणों ने किया स्वागत:
परशुराम जयंती पर विप्र फाउंडेशन युवा मंच के जिला अध्यक्ष श्याम कृष्ण पारीख के नेतृत्व में युवाओं ने मंत्री देवनानी का स्वागत किया। इस अवसर पर युवा मंच ने मांग की कि परशुराम की जीवनी को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा। जिला अध्यक्ष पारीख ने इस बात पर संतोष जताया कि हमने जो मांग की थी, उसे देवनानी ने पूरा कर दिया है। 
भदेल ने किया जुलूस का स्वागत :
परशुराम जयंती पर निकले जुलूस का स्वागत महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री श्रीमती अनिता भदेल ने सोनी जी की नसिया के निकट किया। इस अवसर पर भदेल ने भगवान परशुराम की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर पंडितों से आशीर्वाद ग्रहण किया। 
नाराज हैं ब्राह्मण समाज: 
पंडितों पर कथित तौर पर अपमानजनक टिप्पणी करने से ब्राह्मण समुदाय मंत्री देवनानी से नाराज चल रहा है। हालांकि देवनानी ने अपमानजनक टिप्पणी करने से इनकार किया है।
(एस.पी.मित्तल) (28-04-17)
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#2510
राजस्थान में भाजपा के विस्तारक बनाने की स्कीम कैसे सफल होगी?
सीएम राजे ने ही उठाए सवाल।
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27 अप्रैल को जयपुर में केशव विद्यापीठ में भाजपा के प्रदेश भर के विस्तारकोंं का दो दिवसीय शिविर शुरू हुआ। अगले वर्ष राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा ने विस्तारक बनाने की स्कीम शुरू की है। भाजपा यह चाहती है कि जिस प्रकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक काम करते हैं, उसी प्रकार भाजपा में भी विस्तारक काम करें। समझ में नहीं आता कि भाजपा अपने विस्तारक की तुलना संघ के प्रचारक से कैसे कर रही है। पहला सवाल तो यह है कि आखिर भाजपा विस्तारक लाएगी कहां से ? 27 अप्रैल को जयपुर के शिविर में जिन कथित विस्तारकों ने भाग लिया, वे सब भाजपा के सत्तालोलुप नेता हैं। प्रदेश संगठन ने जिला अध्यक्षों से विस्तारक बनने वाले भाजपा नेताओं के नाम मांगे थे, जिला अध्यक्षों के सामने विस्तारकों के नाम की सूची बनाने की समस्या थी, क्योंकि कोई भी भाजपा नेता संघ के प्रचारक की तरह भाजपा का विस्तारक बनना नहीं चाहता था। जिला अध्यक्ष ने बड़ी मुश्किलों से उन नेताओं के नाम भेजें जो उम्र दराज हैं या फिर कबाडख़ाने में पड़े हैं। यही वजह रही कि 27 अप्रैल को शिविर में जब विस्तारकों के रूप में बैठे भाजपा नेताओं को सीएम वसुंधरा राजे ने देखा तो, उन्हें हंसी आ गई। उन्हें इस बात पर हंसी आई कि क्या ये भाजपाई विस्तारक की भूमिका निभा पाएंगे। इसीलिए सीएम को अपने संबोधन में कहना पड़ा के विस्तारक स्वयं को विधानसभा चुनाव का टिकट बांटने वाला नेता न समझे। विस्तारक का काम तो अपने आवंटित विधानसभा क्षेत्र के मतदान केंद्रों पर जाकर कार्यकर्ताओं को सक्रिय करना है। विस्तारक स्वयं के मन में भी टिकट अथवा किसी पद की लालसा न रखे। सीएम ने यह भी कहा कि विस्तारक को पहले चरण में लगातार छह माह तक आवंटित क्षेत्र में ही रहना पड़ेगा। जयपुर में रहने वाले विस्तारक को बाड़मेर अथवा जैसलमेर का क्षेत्र दिया जा सकता है। यानी कोई विस्तारक अपने गृह जिले में नहीं रहेगा। सवाल उठता है कि आखिर भाजपा में ऐसे विस्तारक कहां से आएंगे ? मुख्यमंत्री का भाषण सुनने के बाद सम्मेलन में ही अनेक भाजपा नेताओं ने विस्तारक बनने का त्याग कर दिया। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अशोक प्रणामी और सीएम राजे माने या नहीं, लेकिन भाजपा में विस्तारक मिलना बहुत मुश्किल काम होगा। इसके लिए तो नई भर्ती करनी पड़ेगी। यानी सदस्यता के समय ही यह संकल्प करवाना होगा कि कार्यकर्ता को विस्तारक के रूप में ही काम करना होगा। 
यह रहा अजमेर का हाल :
जानकारों के अनुसार अजमेर से पूर्व सांसद रासा सिंह रावत, पूर्व मंत्री श्री किशन सोनगरा, धर्मेश जैन, सतीश बंसल, सोमरत्न आर्य, देवेंद्र सिंह शेखावत, तुलसी सोनी आदि भाजपा नेता के नाम भेजे गए थे, लेकिन शिविर में शेखावत और जैन ही नजर आए। 
एस.पी.मित्तल) (27-04-17)
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Thursday 27 April 2017

#2510
राजस्थान में भाजपा के विस्तारक बनाने की स्कीम कैसे सफल होगी?
सीएम राजे ने ही उठाए सवाल।
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27 अप्रैल को जयपुर में केशव विद्यापीठ में भाजपा के प्रदेश भर के विस्तारकोंं का दो दिवसीय शिविर शुरू हुआ। अगले वर्ष राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा ने विस्तारक बनाने की स्कीम शुरू की है। भाजपा यह चाहती है कि जिस प्रकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक काम करते हैं, उसी प्रकार भाजपा में भी विस्तारक काम करें। समझ में नहीं आता कि भाजपा अपने विस्तारक की तुलना संघ के प्रचारक से कैसे कर रही है। पहला सवाल तो यह है कि आखिर भाजपा विस्तारक लाएगी कहां से ? 27 अप्रैल को जयपुर के शिविर में जिन कथित विस्तारकों ने भाग लिया, वे सब भाजपा के सत्तालोलुप नेता हैं। प्रदेश संगठन ने जिला अध्यक्षों से विस्तारक बनने वाले भाजपा नेताओं के नाम मांगे थे, जिला अध्यक्षों के सामने विस्तारकों के नाम की सूची बनाने की समस्या थी, क्योंकि कोई भी भाजपा नेता संघ के प्रचारक की तरह भाजपा का विस्तारक बनना नहीं चाहता था। जिला अध्यक्ष ने बड़ी मुश्किलों से उन नेताओं के नाम भेजें जो उम्र दराज हैं या फिर कबाडख़ाने में पड़े हैं। यही वजह रही कि 27 अप्रैल को शिविर में जब विस्तारकों के रूप में बैठे भाजपा नेताओं को सीएम वसुंधरा राजे ने देखा तो, उन्हें हंसी आ गई। उन्हें इस बात पर हंसी आई कि क्या ये भाजपाई विस्तारक की भूमिका निभा पाएंगे। इसीलिए सीएम को अपने संबोधन में कहना पड़ा के विस्तारक स्वयं को विधानसभा चुनाव का टिकट बांटने वाला नेता न समझे। विस्तारक का काम तो अपने आवंटित विधानसभा क्षेत्र के मतदान केंद्रों पर जाकर कार्यकर्ताओं को सक्रिय करना है। विस्तारक स्वयं के मन में भी टिकट अथवा किसी पद की लालसा न रखे। सीएम ने यह भी कहा कि विस्तारक को पहले चरण में लगातार छह माह तक आवंटित क्षेत्र में ही रहना पड़ेगा। जयपुर में रहने वाले विस्तारक को बाड़मेर अथवा जैसलमेर का क्षेत्र दिया जा सकता है। यानी कोई विस्तारक अपने गृह जिले में नहीं रहेगा। सवाल उठता है कि आखिर भाजपा में ऐसे विस्तारक कहां से आएंगे ? मुख्यमंत्री का भाषण सुनने के बाद सम्मेलन में ही अनेक भाजपा नेताओं ने विस्तारक बनने का त्याग कर दिया। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अशोक प्रणामी और सीएम राजे माने या नहीं, लेकिन भाजपा में विस्तारक मिलना बहुत मुश्किल काम होगा। इसके लिए तो नई भर्ती करनी पड़ेगी। यानी सदस्यता के समय ही यह संकल्प करवाना होगा कि कार्यकर्ता को विस्तारक के रूप में ही काम करना होगा। 
यह रहा अजमेर का हाल :
जानकारों के अनुसार अजमेर से पूर्व सांसद रासा सिंह रावत, पूर्व मंत्री श्री किशन सोनगरा, धर्मेश जैन, सतीश बंसल, सोमरत्न आर्य, देवेंद्र सिंह शेखावत, तुलसी सोनी आदि भाजपा नेता के नाम भेजे गए थे, लेकिन शिविर में शेखावत और जैन ही नजर आए। 
एस.पी.मित्तल) (27-04-17)
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#2509
किशनगढ़ एयरपोर्ट पर उतरा चार्टर प्लेन। भाजपा नेताओं ने कहा सपना पूरा हुआ। 
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अजमेर जिले के किशनगढ़ में निमार्णाधीन हवाई अडडे पर 27 अप्रेल को एक चार्टर प्लेन उतरा। हालांकि एयरपोर्ट अभी विधिवत रूप से शुरू नहीं हुआ है, लेकिन ट्रायल के लिए एक निजी कम्पनी ने अपना चार्टर प्लेन दिल्ली से किशनगढ़ भेजा और फिर वापस किशनगढ़ से दिल्ली लाया गया। चार्टर प्लेन के उतरने पर पुष्कर के भाजपा विधायक और संसदीय सचिव सुरेश सिंह रावत, किशनगढ़ के भाजपा विधायक भागीरथ चौधरी आदि ने यात्रियों का स्वागत किया।  इस अवसर पर रावत ने कहा कि किशनगढ़ एयरपोर्ट का जो सपना देखा था, वह आज पूरा हो गया है। उन्होंने कहा कि जल्द ही एयरपोर्ट से नियमित विमान सेवाएं शुरू होगीं। उन्होंने कहा कि यह संयोग है कि आज ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हिमाचल प्रदेश में सस्ती विमान सेवा की शुरूआत की है और आज ही हमारे किशनगढ़ एयरपोर्ट पर चार्टर प्लेन उतरा है। उन्होंने कहा कि यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की योजना ही है कि साधारण व्यक्ति को भी हवाई यात्रा करवाने का रास्ता खोला गया है। जहां कार टैक्सी वाले दस रुपए प्रति किलोमीटर किराया वसूलते हैं, वहीं पीएम मोदी मात्र 6 रुपए प्रति किलोमीटर किराए पर हवाई यात्रा करवा रहे हैं। उन्होंने कहा कि किशनगढ़ एयरपोर्ट को भी सस्ती हवाई सेवा से जोड़ा जाएगा ताकि अजमेर जिले का आम आदमी भी हवाई जहाज में दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता आदि बड़े शहरों का सफर कर सकें। 
व्यवसायिक उड़ान अगस्त से :
किशनगढ़ एयरपोर्ट के महाप्रबंधक संजीव जिंदल ने बताया कि इस एयरपोर्ट से व्यावसायिक उड़ानें अगस्त माह से शुरू हो सकेंगी। फिलहाल व्यावसायिक उड़ान की कोई बुकिंग नहीं की जा रही है। उन्होंने कहा कि किशनगढ़ का एयरपोर्ट आधुनिक सुविधा से सुसज्जित है। यहां सुरक्षा का भी पुरा ख्याल रखा गया है। 
एस.पी.मित्तल) (27-04-17)
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#2508
तो इसलिए ही कोटा में खुदकुशी करते हैं छात्र।आईआईटी और जेईई में कोटा फिर अव्वल। 
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27 अप्रैल को आईआईटी और जेईई मैन की परीक्षा के परिणाम घोषित हो गए। परिणाम की घोषणा के साथ ही इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में यह प्रचारित करवाया जा रहा है कि देशभर में राजस्थान के कोटा के विद्यार्थियों ने बाजी मारी है। इसके पीछे कोटा में कोचिंग सेंटर चलाने वाले मालिकों की व्यावसायिक भूमिका है। सवाल उठता है कि जिन विद्यार्थियों का चयन आईआईटी और जेईई की परीक्षा में हुआ है, क्या वे किसी सरकारी शिक्षण संस्थान में अध्ययनरत हैं। सब जानते हैं कि जो धंधेबाज कोटा में कोचिंग सेंटर चलाते हैं उन्हीं का यह षडय़ंत्र है। ताकि नए सत्र में देशभर से और अधिक बच्चों को कोटा लाया जा सके। एक अनुमान के मुताबिक कोटा में देशभर के कोई दो लाख बच्चे कोचिंग के लिए आते हैं। सवाल है कि क्या इन सभी बच्चों का चयन हो जाता है? मुश्किल से दो या तीन प्रतिशत बच्चों का चयन होता है, लेकिन कोचिंग सेंटरों के मालिकों ने ऐसा प्रचार कर रखा है कि जो बच्चा कोटा आकर पढ़ेगा, उसी का चयन होगा। जबकि अभिभावक जानते हैं कि कोटा के कोचिंग सेंटरों में किस तरह से लूट होती है। भ्रम जाल में फंसकर गरीब अभिभावक भी अपने बच्चों को कोचिंग के लिए कोटा भेजते हैं और जब मध्यमवर्गीय व गरीब परिवार का बच्चा कोचिंग सेंटरों के कड़े मापदंडों पर खरा नहीं उतरता है तो फिर वह खुदखुशी ही करता है। सरकार को भी पता है कि कोचिंग सेंटर वाले नाम मात्र की स्कूलों में बच्चों को प्रवेश दिलवा देते हैं, जबकि ऐसे बच्चे कोटा के कोचिंग सेंटरों में ही पढ़ते हैं। यानि बच्चे पर 12वीं कक्षा उत्तीर्ण करने का भी मानसिक दबाव होता है। अच्छा हो कि कोचिंग सेंटरों और मीडिया को यह बताना चाहिए कि कोटा के 2 लाख बच्चों में से मात्र कितने बच्चे परीक्षा में उत्तीर्ण हुए हैं। अभिवावकों को यह भी समझना चाहिए कि उनका बच्चा कोटा के बजाए अपने शहर में भी पढ़ाई कर उत्तीर्ण हो सकता है।
(एस.पी.मित्तल) (27-04-17)
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#2507
होटल अजमेर इन और रेलवे स्टेशन के सामने से अतिक्रमण हटा पाएगा नगर निगम।
30 अप्रैल को हाईकोर्ट में देना है शपथ पत्र।
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अजमेर शहर के प्रमुख मार्गो से अतिक्रमण और अवैध निर्माण हटा दिए गए हैं, इसको लेकर नगर निगम प्रशासन को 30 अप्रैल को एक शपथ पत्र हाईकोर्ट में प्रस्तुत करना है। निगम प्रशासन ने 24 अप्रैल को एक आदेश जारी कर अतिक्रमण हटाने के दो दल बनाए। दोनों दल शहर में किस तरह से अतिक्रमण हटा रहे हैं यह पूरा शहर देख रहा है। अतिक्रमण हटाने के नाम पर सिर्फ खाना पूर्ति की जा रही है। यूं तो शहर भर में और आनासागर के भराव क्षेत्र में धड़ल्ले से अवैध निर्माण और अतिक्रमण हो रहे हैं। निगम प्रशासन को भी पता है कि किस-किस स्थान पर अवैध निर्माण और अतिक्रमण हैं। यहां सिर्फ दो अतिक्रमणों का उल्लेख किया जा रहा है। एक अतिक्रमण नगर निगम कार्यालय से मुश्किल से 50 फीट की दूरी पर होटल अजमेर इन का है। पहले तो इस होटल को स्वीकृत नक्शे के विरुद्ध बनाया गया और जब होटल बन कर तैयार हो गया, तो होटल के वाहनों की पार्किंग के लिए 20 फीट चौड़े नाले को ही पाट दिया गया। क्या यह सब गैर कानूनी काम होटल अजमेर इन के मालिक ने अपने दम पर कर लिया? जाहिर है कि सभी सरकारी दफ्तरों की मिलीभगत के बिना यह संभव नहीं हुआ है। भ्रष्टाचारियों को पकडऩे वाला भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो भी चुप है। इस खुले भ्रष्टाचार की शिकायत ब्यूरो में भी की गई है, लेकिन ब्यूरो भी अब एक सरकारी महकमे की भूमिका ही निभा रहा है। दूसरा उदाहरण रेलवे स्टेशन के सामने फुट ओवर ब्रिज के नीचे मदार गेट की ओर बने बरामदों में अतिक्रमण का है। थोड़े दिन पहले तक यह खुले बरामदे लोगों के चलने के काम आते थे, लेकिन अब इन बरामदों में पक्की दुकानें बन गई है। बाटा कंपनी से लेकर स्टेशन रोड तक कोई 15-15 फीट का अतिक्रमण है, यह स्थिति दोनों ओर है। यदि हाईकोर्ट के निर्देशों के अनुरूप मदार गेट से ऐसे अतिक्रमण हटाए गए तो रेलवे स्टेशन के सामने से सुंदरता नजर आने लगेगी। इसी मार्ग से रोजाना हजारों जायरीन ख्वाजा साहब की दरगाह की ओर आते जाते हैं। अतिक्रमण की वजह से पैदल चलना भी मुश्किल होता है, यदि अतिक्रमण हट जाए तो मोटर वाहन भी आसानी से आ-जा सकते हैं। यदि निगम प्रशासन को वाकई शपथ पत्र हाईकोर्ट में प्रस्तुत करना है तो पहले इन दोनों अतिक्रमणों को हटाना चाहिए। छोट-मोटे दुकानदारों की रैम्प, सीढ़ी आदि तोड़ देने से हाईकोर्ट के आदेशों की पालना नहीं होगी। निगम प्रशासन माने या नहीं, लेकिन बाजारों में स्थाई और अस्थाई अतिक्रमणों की वजह से यातायात का बुरा हाल है। हालांकि इसके लिए ट्रैफिक पुलिस भी जिम्मेदार है, क्योंकि ट्रेफिक और संबंधित थाने की पुलिस के संक्षरण की वजह से ही ठेले आदि के अतिक्रमण बाजारों में होते हैं। दुकानों के बाहर छोटी दुकान भी निगम और पुलिस के संरक्षण में ही लगती हैं। अब जब अजमेर स्मार्ट सिटी बनाने जा रहा है तो निगम और पुलिस प्रशासन को ईमानदारी के साथ अतिक्रमण हटाने चाहिए।
(एस.पी.मित्तल) (27-04-17)
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Wednesday 26 April 2017

#2506
अशोक गहलोत को महासचिव बनाते ही गुरूदास कामथ ने दे दिया इस्तीफा। तो क्या महाराष्ट्र को लेकर हाई कमान को ब्लैकमेल कर रहे थे कामत? 
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26 अप्रैल को जैसे ही राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत को कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव और गुजरात का प्रभारी नियुक्त किया, वैसे ही गुरुदास कामत ने राष्ट्रीय महासचिव और राजस्थान व गुजरात के प्रभारी पद से इस्तीफा दे दिया। बताया जा रहा है कि कामत अपने गृह प्रदेश महाराष्ट्र को लेकर कांग्रेस हाईकमान को ब्लैकमेल कर रहे थे। गुजरात का प्रभारी पद छोडऩे की लगातार धमकी दे रहे थे। कामत की ब्लैकमेलिंग को देखते हुए ही हाईकमान ने 26 अपे्रल को सुबह ही गहलोत से सम्पर्क साधा और महासचिव पद के साथ-साथ गुजरात का प्रभारी बनने पर भी सहमति मांगी। गहलोत तो पहले से ही मौके की तलाश में थे, इसलिए तत्काल सहमति दे दी। सब जानते हैं कि राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट ने कामत के दम पर ही गहलोत समर्थकों की उपेक्षा की। कामत ने राजस्थान में गहलोत के मुकाबले पायलट को स्थापित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कामत ने यहां तक कह दिया कि अगला विधानसभा का चुनाव पायलट के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। यानि कांग्रेस को बहुमत मिलने पर पायलट ही सीएम होंगे। कामत के इस बयान पर गहलोत ने यह कहकर पानी फेर दिया कि कांग्रेस में हाईकमान ही सीएम की घोषणा करता है। कई मौके पर गहलोत और कामत आमने-सामने नजर आए। जानकारों का मानना है कि हाईकमान ने कामत को सबक सिखाने के लिए ही गहलोत को एक साथ दो महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी है। हाईकमान का यह भी आंकलन है कि कामत तो कभी भी भाजपा में शामिल हो सकते हैं, लेकिन गहलोत बुरी से बुरी दशा में भी गांधी परिवार के वफादार बने रहेंगे। महासचिव के पद पर नियुक्ति होने के बाद गहलोत ने उदयपुर में कहा भी कि विपरीत परिस्थिति में जो नेता और कार्यकर्ता साथ रहेगा, वो ही आगे चलकर विधायक, सांसद, मंत्री और मुख्यमंत्री बनेगा। उन्होंने कहा कि आने वाला समय कांग्रेस का ही होगा।
पायलट को झटका : 
गहलोत के महासचिव बनने और कामत के हटने से राजस्थान में प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट को झटका माना जा रहा है। पायलट ने कामत के दम पर ही प्रदेश में संगठन पर मजबूत पकड़ बनाई, चुन-चुनकर गहलोत के समर्थकों को हटाया और अपने समर्थकों को जिला अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद सौंपे। पायलट के इस रवैए से गहलोत के समर्थक स्वयं को उपेक्षित मान रहे थे। लेकिन अब जहां गहलोत समर्थकों में हर्ष देखा जा रहा है, वहीं पायलट के समर्थक मायूस है। 
(एस.पी.मित्तल) (26-04-17)
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#2505
सोनिया-राहुल वाली कांग्रेस की लगातार हार।
कपिल सिंबल ने कराया सबकी कांग्रेस पार्टी का रजिस्ट्रेशन। 
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26 अप्रैल को दिल्ली महानगर पालिका के चुनाव में भी सोनिया राहुल गांधी वाली कांग्रेस की बुरी हार हो गई है। हार भी इतनी बुरी कि उसे 270 वार्ड में से मात्र 35 वार्डों में ही जीत मिली। इस चुनाव में कांग्रेस आम आदमी पार्टी के बाद तीसरे स्थान पर रही है। हाल ही में यूपी में भी कांग्रेस को बुरी हार का सामना करना पड़ा। 400 सदस्यों वाले सदन में 10 सदस्य भी कांग्रेस के नहीं हैं। जहां एक और सोनिया राहुल की कांग्रेस लगातार हार रही है, वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने चुनाव आयोग में एक नई पार्टी का रजिस्ट्रेशन करवाया है। सबकी कांग्रेस नाम से रजिस्ट्रेशन करवा कर सिब्बल ने सोनिया-राहुल की कांग्रेस में खलबली मचा दी है। यूपी चुनाव से पहले और बाद में भी अनेक कांग्रेसी पार्टी छोड़ कर भाजपा में शामिल हो रहे हैं। कांग्रेस छोडऩे वाले हर नेता ने कहा है कि पार्टी में सुनवाई नहीं हो रही है और पार्टी दिशाहीन है। एक समय था जब यूपीए की सरकार में सिब्बल की तूती बोलती थी 2जी घोटाले के बाद संचार मंत्रालय का जिम्मा भी सिब्बल को ही दिया गया था, लेकिन आज सोनिया-राहुल की पार्टी में सिब्बल का कोई महत्त्व नहीं रहा है। राहुल गांधी के इर्द-गिर्द जो चौकड़ी जमा है वह सिब्बल को कोई सम्मान नहीं देती है। ऐसे में सबकी कांग्रेस का रजिस्ट्रेशन करवा कर सिब्बल ने दूरगामी संकेत दिए हैं। क्या जो कांग्रेसी उपेक्षित होकर सोनिया-राहुल का साथ छोड़ रहे हैं, उन्हें सबकी कांग्रेस में शामिल करवाया जाएगा। सवाल यह भी है कि क्या सिब्बल समानांतर कांग्रेस को तैयार कर रहे हैं, देखना है कि सिब्बल की कांग्रेस का क्या स्वरूप होता है?
(एस.पी.मित्तल) (26-04-17)
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#2503
तो पत्रिका की इस खबर को भी आयोग अध्यक्ष पवार अपने कक्ष में फ्रेम करवाकर लगाएं। हाई कोर्ट ने कहा कि परीक्षा करवाने लायक नहीं है आरपीएएसी।
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गत माह पत्रिका के अजमेर संस्करण में राजस्थान लोक सेवा आयोग के उल्लेखनीय कामकाज को लेकर एक खबर प्रकाशित हुई। पत्रिका की इस खबर को आयोग के अध्यक्ष ललित के.पंवार ने फ्रेम करवाकर अपने कक्ष में लगा लिया। इस खबर में यह बताया गया कि अध्यक्ष पंवार ने जिस तेजी से परीक्षाओं का काम संपन्न करवाया उससे आयोग में अब कोई भी परीक्षा लंबित नहीं है। इसमें कोई दो राय नहीं कि पंवार ने फटाफट परीक्षाओं को करवाने में आयोग को देशभर में पहले नंबर पर खड़ा कर दिया। लेकिन पंवार के इस आयोग पर 25 अप्रैल को राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस कमलजीत सिंह अहलूवालिया ने ही गंभीर टिप्पणी की है। आयोग अध्यक्ष पंवार परीक्षा को संपन्न करवाने के लिए भले ही अपनी पीठ थपथपाए, लेकिन हाई कोर्ट ने कहा है कि आरपीएससी किसी भी परीक्षा को कराने लायक नहीं है। जूनियर अकाउंटेंट भर्ती परीक्षा 2013 के परीक्षार्थी देवेश शर्मा की याचिका पर हाई कोर्ट ने यह माना कि परीक्षा में सवाल ही गलत पूछे गए, जब प्रार्थी ने सवाल पर आपत्ति की तो आयोग के अध्यक्ष ने कमेटी बैठा कर परिणाम आयोग के पक्ष में हासिल कर लिए। इस प्रक्रिया पर भी हाई कोर्ट ने आयोग को कड़ी फटकार लगाई है। असल में सब जानते हैं कि आपत्ति आने पर आयोग अध्यक्ष के द्वारा ही जांच कमेटी के सदस्य नियुक्त होते हैं, यह अधिक गंभीर बात है कि पहले तो परीक्षार्थी से सवाल ही गलत पूछा और फिर दादागिरी करते हुए अपने सवाल को जांच कमेटी के माध्यम से सही बताया। सवाल उठता है कि देवेश शर्मा जैसे कितने परीक्षार्थी होंगे जो हाईकोर्ट में आयोग के निर्णय को चुनौती दे पाते हैं? जाहिर है कि हजारों परीक्षार्थी आयोग की दोषपूर्ण प्रणाली से अपने अधिकारों से वंचित हो जाते हैं। आयोग की शायद ही कोई परीक्षा होगी जिसे किसी न किसी कारण से अदालत में चुनौती न दी गई हो। यदि आयोग का कामकाज सही होता तो जस्टिस अहलूवालिया को यह नहीं कहना पड़ता की आरपीएससी परीक्षा करवाने लायक नहीं है। आयोग अध्यक्ष को चाहिए कि पत्रिका की 26 अप्रैल वाली खबर को भी फ्रेम करवाकर अपने कक्ष में लगाएं ताकि उन्हें हमेशा अपनी जिम्मेदारी का एहसास होता रहे। हाईकोर्ट की टिप्पणी को पत्रिका ने 26 अप्रैल को प्रथम पृष्ठ पर प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया है।
(एस.पी.मित्तल) (26-04-17)
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#2502
तो अब दिल्ली के मतदाताओं का अपमान कर रही है केजरीवाल की टोली।
एमसीडी चुनाव में कांग्रेस तीसरे नंबर पर। 
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26 अप्रैल को देश की राजधानी दिल्ली में महानगर पालिका के चुनाव परिणाम घोषित हो गए। 270 वार्डों में से 180 में बीजेपी के उम्मीदवार जीते, जबकि आम आदमी पार्टी को 45, कांग्रेस को 35 तथा अन्य को 10 वार्डों में जीत हासिल हुई। हालांकि परिणाम पर प्रतिक्रिया देने के लिए दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल सामने नहीं आए, लेकिन उनकी टोली के मनीष सिसोदिया, आशुतोष आदि ने मोर्चा संभाला और कहा कि यह भाजपा की लहर नहीं, बल्कि ईवीएम की लहर है। यानी दिल्ली के मतदाताओं ने आप के उम्मीदवारों को वोट दिए, लेकिन ईवीएम में गड़बड़ी की वजह से वोट भाजपा को चले गए। केजरीवाल की टोली ने वहीं किया जो यूपी चुनाव के बाद बसपा प्रमुख मायावती ने किया था। चुनाव आयोग ने आप को खुली चुनौती दी है कि वह किसी भी ईवीएम में गड़बड़ी साबित करके दिखाएं। असल में मतदान से पहले ही आप को यह एहसास हो गया था कि परिणाम खिलाफ आएंगे। इसीलिए मतपत्र से चुनाव करवाने की मांग की गई थी। केजरीवाल की टोली अब सीधे तौर पर दिल्ली के मतदाताओं का अपमान कर रही है। मतदान के बाद जो भी सर्वे आए उनमें भाजपा को ही विजयी बताया गया था। किसी भी सर्वे में केजरीवाल की जीत नहीं बताई गई। असल में केजरीवाल ने अपने ढाई वर्ष के शासन में दिल्ली के मतदाताओं को प्रभावित करने वाला कोई काम नहीं किया, जबकि मतदाताओं ने उन्हें विधानसभा चुनाव में 70 में से 67 सीट दी थी, जिस पार्टी को 67 सीटें मिली हो उसका पालिका चुनाव में सूपड़ा साफ हो जाना यह बताता है कि मतदाता केजरीवाल से खुश नहीं है। अच्छा होता कि केजरीवाल पालिका चुनाव की हार को स्वीकार करते और अगले ढाई साल में मतदाताओं की समस्याओं को दूर करने का संकल्प लेते। केजरीवाल माने या नहीं लेकिन मतपत्र से चुनाव होने पर भी यही परिणाम सामने आते। केजरीवाल स्वीकार करें या नहीं लेकिन दिल्ली के मतदाताओं को यह लगता है कि केजरीवाल ने पिछले ढाई साल में केंद्र की सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लडऩे के अलावा कोई काम नहीं किया। केजरीवाल ने जब विधानसभा का चुनाव लड़ा, तब उन्हें यह पता होना चाहिए था कि दिल्ली देश की राजधानी है और यहां के सीएम के अधिकार सीमित हैं। इस सीमित अधिकार में ही केजरीवाल को अपनी सरकार की कार्यकुशलता दिखानी चाहिए थी, लेकिन केजरीवाल लगातार अपने अधिकारों को लेकर ही लड़ते रहे। यही वजह है कि मतदाताओं को यह लगता है कि केजरीवाल की वजह से दिल्ली को नुकसान हो रहा है। केजरीवाल यदि अपनी स्थिति को सुधारना चाहते हैं तो उन्हें सीमित अधिकारों में काम करके दिखाना होगा। राजनीति में प्रतिद्वंदी की आलोचना की जाती है, लेकिन यदि स्वयं की विफलता की जिम्मेदारी भी प्रतिद्वंदी पर डाल दी जाए तो फिर केजरीवाल को हार का ही मुंह देखना पड़ेगा। क्या आप के पार्षद इस्तीफा देंगे? केजरीवाल की टोली ने आरोप लगाया है कि चुनाव में ईवीएम में गड़बड़ी की वजह से भाजपा की जीत हुई है। यानी चुनाव में आप के जो 45 उम्मीदवार जीते हैं। वह भी गड़बड़ी की वजह से ही जीते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या आप के नवनिर्वाचित 43 पार्षद इस्तीफा देंगे?
(एस.पी.मित्तल) (26-04-17)
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Tuesday 25 April 2017

#2500
2500वें ब्लॉग पर 2500 वाट्सएप ग्रुप का उत्साह।
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इसे ईश्वर की कृपा ही कहा जाएगा कि आज जब वर्ष 2017 के 25 अप्रैल की तारीख है, तब मेरा 2500वां ब्लॉग भी पाठकों के सामने प्रस्तुत है। मेरे लिए यह उत्साह की बात है कि 2500वें ब्लॉग के साथ 2500 वाट्सएप ग्रुप से भी मैं जुड़ा हुआ हंू। यानि मैं जो ब्लॉग लिखता हंू वह देशभर के खासकर हिन्दी भाषाी राज्यों के 2500 वाट्सएप ग्रुप में पोस्ट होता है। एक वाट्सएप ग्रुप में 200 सदस्य भी माने जाए तो 2500 ग्रुपों में मेरे पाठकों की गणित लगाई जा सकती है। रोजाना  दो-चार नए वाट्सएप ग्रुप मुझेे जोड़ते हैं। जो एडमिन मुझे जोड़ रहे हैं मैं उन सबका आभारी हंू। यह सही है कि 2500 वाट्सएप ग्रुप में रोजाना तीन-चार ब्लॉग पोस्ट करना बेहद कठिन काम है, लेकिन पाठकों के स्नेह और प्यार की वजह से यह काम सरलता के साथ हो जाता है। इस काम में मेरी पत्नी श्रीमती अचला मित्तल का भी सहयोग रहता है। मैं अब एक ऐसे सॉफ्टवेयर की तलाश कररहा हंू जिसमें मेरे पांच फोनों के 2500 वाट्सएप ग्रुप एक साथ आ जाएं और फिर में नई तकनीक से पाठकों तक ब्लॉग पहुंचा सकंू। ऐसे सॉफ्टवेयर की जानकारी मुझे मेरे मोबाइल नम्बर 9829071511 पर दी जा सकती है। इस मौके पर मेरा वाट्सएप के मालिकों से भी आग्रह है कि इस तकनीक में मुझे सहयोग करावें। हालांकि मेरी वेबसाइट, फेसबुक पेज, ब्लॉग स्पॉट, एप आदि सभी बने हुए हैं। लेकिन इन सब में वाट्सएप नम्बर वन पर है। अनेक पाठकों को शिकायत रहती है कि चार में से दो ब्लॉग ही मिलते हैं। हालांकि शेष दो ब्लॉग अगले दिन मिल जाते हैं। लेकिन जो पाठक नियमित तौर पर प्रतिदिन मेरे ब्लॉग पढऩा चाहते हैं वे मेरा फेसबुक पेज लाइक कर सकते हैं। इस पेज पर पाठकों को फोटों भी देखने को मिल जाएंगे। मुझे उम्मीद है कि पाठकों का स्नेह मेरे प्रति हमेशा ऐसा ही बना रहेगा। 
(एस.पी.मित्तल) (25-04-17)
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#2501
अब और भी धार्मिक चिह्न हटाए जा सकते हैं।
तभी बनेगा अजमेर स्मार्ट। कलेक्टर गोयल कर सकते हैं पहल।
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अजमेर के नागफणी मोड़ से एक धार्मिक चिह्न को हटाने के लिए मुस्लिम समाज के जिन लोगों ने पहल की वे सब शाबाशी और बधाई के पात्र हैं। इससे पहले पुष्कर रोड पर करंट वाले बालाजी के मंदिर को भी आम सहमति से हटाया गया। नगर निगम और जिला प्रशासन अजमेर को इन दिनों स्मार्ट सिटी बनाने का काम युद्ध स्तर पर कर रहा है। इसी के अंतर्गत लव कुश उद्यान से लेकर आना सागर पुलिस चौकी तक के एक किलोमीटर लंबे मार्ग को 60 फीट चौड़ा किया जा रहा है। अजमेर शहर में ऐसे अनेक मार्ग हैं जिन पर हिंदू और मुस्लिम धर्म के चिह्न बने हुए हैं। कई चिह्न तो बीच सड़क पर हैं। ऐसे धार्मिक चिह्नों की वजह से दिन में कई बार जाम लग जाता है, साथ ही धार्मिक चिह्नों को जो सम्मान मिलना चाहिए, वह भी नहीं मिलता। कई स्थानों पर तो इन धार्मिक चिह्नों की वजह से दुर्घटनाएं भी हो रही हैं। अब चूंकि पुष्कर रोड पर धार्मिक चिह्नों को हटाने का काम हो चुका है। इसलिए इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाना चाहिए। इसे अजमेर का सौभाग्य ही कहा जाएगा कि यहां एक ओर पुष्कर तीर्थ है, तो दूसरी ओर सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह। जब पुष्कर में कार्तिक स्नान और दरगाह में सालाना उर्स होता है तो लाखों श्रद्धालु और जायरीन आते हैं। यानी स्मार्ट सिटी का लाभ श्रद्धालुओं के साथ-साथ जायरीन लोगों को भी मिलेगा। धार्मिक चिह्नों को हटाने की पहल दोनों समुदायों के प्रतिनिधियों के साथ-साथ राजनीतिक दलों के पदाधिकारियों को भी करनी चाहिए। कई बार देखा गया है कि दो पक्षों में समझौता हो जाने के बाद भी राजनेता मामले को बिगाड़ देते हैं। राजनीतिक स्वार्थों की वजह से बना बनाया मामला बिगड़ जाता है। यह माना कि इस समय प्रदेश में भाजपा का शासन है, इसलिए अजमेर में भी विकास योजनाओं में भाजपा के नेता ही सक्रिय हैं। लेकिन विकास के कार्यों में कांग्रेस और अन्य दलों को भी सहयोग करना चाहिए। पिछले दिनों ही ख्वाजा साहब का 805वां सालाना उर्स संपन्न हुआ है। कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ने उसमें अपनी ओर से चादर पेश करवाई। सभी नेताओं ने अपने संदेशों में कहा की ख्वाजा साहब ने भाईचारे का जो पैगाम दिया, उस पर अमल होना चाहिए। सवाल उठता है कि जब सभी नेता ख्वाजा साहब के पैगाम को वर्तमान परिस्थितियों में उपयोगी मानते हैं तो फिर अजमेर में धार्मिक चिह्नों को क्यों नहीं हटाया जा सकता? अजमेर के जागरुक लोग धार्मिक चिह्नों को बीच रास्तों से हटाकर पूरे देश में मिशाल प्रस्तुत कर सकते हैं। जिला प्रशासन और भाजपा के जो नेता सत्ता की कुर्सी पर बैठे हैं, उनकी यह जिम्मेदारी है कि धार्मिक चिह्नों को हटाने में कोई भेदभाव नहीं हो। यह माना कि हिंदू धर्म के चिह्न आसानी से हटाए जा सकते हैं, लेकिन मुस्लिम धर्म के चिह्न भी सहमति से ही हटाए जाएं। 
कलेक्टर गोयल कर सकते हैं पहल:
अजमेर शहर के यातायात में बाधक बने धार्मिक चिह्नों को हटाने में जिला कलेक्टर गौरव गोयल सकारात्मक पहल कर सकते हैं। पिछले एक वर्ष में कलेक्टर गोयल ने समाज के सभी वर्गों का भरोसा जीता है। गत वर्ष पुष्कर मेले में अच्छे इंतजाम कर ब्रह्मा जी का आशीर्वाद और हाल ही में उर्स में बेहतरीन इंतजाम कर ख्वाजा साहब का करम कलेक्टर ने हासिल किया है। भाजपा नेताओं का भी कलेक्टर पर भरोसा है। भाजपा के विधायकों में भले ही आपसी सहमति न हो, लेकिन कलेक्ट गोयल के नाम पर विधायकों के बीच सहमति बनी हुई है। ऐसे माहौल में कलेक्टर गोयल सभी पक्षों की एक संयुक्त बैठक बुला कर धार्मिक चिह्नों को हटाने पर सहमति बनवा सकते हैं।
एस.पी.मित्तल) (25-04-17)
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#2499
तो संघ प्रमुख मोहन भागवत ने दिखाई आमिर खान के प्रति सहिष्णुता।
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24 अप्रैल को मुंबई में एक समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने फिल्म स्टार आमिर खान को दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार से सम्मानित किया। यह पुरस्कार प्रतिवर्ष भारत रत्न लता मंगेशकर द्वारा दिया जाता है। लता मंगेशकर के आग्रह पर ही इस समारोह में मोहन भागवत ने उपस्थित होना स्वीकार किया। स्वभाविक है कि अपनी उपस्थिति से पूर्व भागवत ने यह जाना होगा कि वह किन लोगों को अवार्ड से सम्मानित करेंगे। यानी भागवत को पहले से ही यह पता था कि उन्हें फिल्म स्टार आमिर खान को भी सम्मानित करना पड़ेगा। आमिर खान को अपने हाथों से सम्मानित कर संघ प्रमुख ने सहिष्णुता का परिचय दिया है। सब जानते हैं कि जब कुछ लोगों ने देश में असहिष्णुता का मुद्दा उछाला था तो उसमें आमिर खान भी शामिल हो गए थे। उस समय आमिर खान को अपना ही देश सुरक्षित नजर नहीं आ रहा था। तब यह आरोप लगा की आमिर खान ने राजनीतिक नजरिए से असहिष्णुता वाला बयान दिया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि आमिर खान एक अच्छे कलाकार हैं, उन्हें दीनानाथ मंगेशकर अवार्ड मिलना ही चाहिए। भारत रत्न लता मंगेशकर अपने पिता दीनानाथ मंगेशकर की स्मृति में ही पुरस्कार देती हैं। सब जानते हैं कि दीनानाथ मंगेशकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य भी रहे। यह पुरस्कार संघ प्रमुख भागवत के हाथों से लेने पर आमिर खान को भी अब देश में असहिष्णुता नजर नहीं आ रही होगी।
एस.पी.मित्तल) (25-04-17)
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अवार्ड लौटाने वाली गैंग अब पहलू खान की मौत पर सक्रिय।
क्या सुकमा में 25 जवानों की शहादत पर भी मुंह खुलेगा? 
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25 अप्रैल को जिन लोगों ने न्यूज चैनलों को देखा, उनकी आंखें नम जरूर हुई होंगी, क्योंकि चैनलों पर दिन भर रोती बिलखती महिलाओं और छोटे बच्चों को दिखाया गया। यह उन परिवारों के दृश्य थे जिनके परिवार का एक सदस्य 24 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के जंगलों में नक्सलियों के हाथों मारा गया। आदिवासियों की आड़ में नक्सलियों ने सीआरपीएफ के 25 जवानों की हत्या कर दी। जिन घरों में जवानों के शव पहुंचे, उन घरों का हाल बेहाल रहा। देश की आंतरिक सुरक्षा की खातिर शहादत देने वालों में जवान शेर मोहम्मद भी शामिल है। सवाल उठता है कि देश में असहिष्णुता का मुद्दा उछालने वाले कितने लोग हमारे जवान की शहादत पर मुंह खोल रहे हैं? क्या सुरक्षाबलों के जवान इंसान नहीं है? लेकिन वही अवार्ड लौटाने वाली गैंग से जुड़े कुछ लोगों ने 24 अप्रैल को राजस्थान के जयपुर में विधानसभा के बाहर धरना दिया। धरने का कारण अलवर जिले के बहरोड में पहलू खां की मौत था। गैंग के सदस्यों का कहना रहा की पहलू खां को सड़क पर पीट-पीटकर मार डाला गया, लेकिन राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार कोई कार्यवाही नहीं कर रही है। यह सही है कि जिन लोगों की पिटाई की वजह से पहलू खां की मृत्यु हुई, उन्हें सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए। राजस्थान के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने कहा भी है की आरोपियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया गया है।  साथ ही कटारिया का कहना है कि पहलू खां पर गायों की तस्करी करने के तीन मुकदमे पहले से ही दर्ज हैं। पिछले दिनों भी पहलू खां को कुछ युवकों ने गौवंश की तस्करी करते हुए पकड़े। सवाल उठता है कि जितनी सक्रियता पहलू खां की मृत्यु पर दिखाई जा रही है उतनी सक्रियता हमारे 25 जवानों की शहादत पर क्यों नहीं दिखाई जाती? 24 अप्रैल को जिन लोगों ने जयपुर में धरना दिया, क्या वे छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के जंगलों में जाकर नक्सलियों के खिलाफ मुंह खोलेंगे? सब जानते हैं कि अवार्ड लौटाने वाली गैंग का क्या मकसद है। अफसोस तो यह है कि जिन लोगों ने वर्षों तक सत्ता का सुख भोगा, उन्हें अब 26 जवानों की शहादत नजर नहीं आ रही है। धरना देने बालों में पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष वजाहत हबीबुल्ला, मैग्सेसे पुरस्कार विजेता अरुणा राय, आंध्र के पूर्व सीएस मोहन कांडा, कर्नाटक के पूर्व सीएम वासुदेवन, पूर्व केंद्रीय वित्त सचिव एम.एस.सिसोदिया, पूर्व आईएएस हर्ष मंदर सहित 21 पूर्व आईएएस अधिकारी शामिल थे।

(एस.पी.मित्तल) (25-04-17)

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Monday 24 April 2017

#2497
आखिर नागफणी मोड़ से हट गया मुस्लिम धार्मिक चिह्न अजमेर के सिटी मजिस्ट्रेट अरविंद सेंगवा की समझाइश काम आई
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24 अप्रेल की शाम को अजमेर के पुष्कर रोड के नागफणी मोड़ पर मुस्लिम धार्मिक चिन्ह को हटा ही दिया गया। इस मामले में मुस्लिम समुदाय के जागरुक लोगों की सकारात्मक पहल रही। धार्मिक चिह्न को लेकर 22 अप्रेल को तब तनावपूर्ण हालात हो गए थे, जब नगर निगम ने अतिक्रमण हटाए। उस समय कुछ उत्साही मुस्लिम युवकों ने हाथों-हाथ एक धार्मिक चिन्ह अंकित कर दिया। इन युवाओं का कहना था कि जो अतिक्रमण तोड़े गए हैं, उसके एक कमरे में हमारा धार्मिक चिन्ह भी था। इन युवकों ने प्रशासन के सामने यह भी मांग रखी कि धार्मिक चिन्ह के लिए वैकल्पिक भूमि उपलब्ध करवाई जाए। 
24 अप्रैल को सिटी मजिस्ट्रेट अरविंद सेंगवा ने मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधियों को वार्ता के लिए बुलाया। इस वार्ता में सैयद गोहर चिश्ती, सलीम बेग, कय्यूम, मोइनुउद्दीन, मोहम्मद यासीन, अस्मत बीबी, तनवीर बीबी, शहाबुद्दीन आदि शामिल हुए। दो घंटे तक चली वार्ता में सेंगवा ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए, जिसकी वजह से धार्मिक नगरी अजमेर का माहौल खराब होता हो। उन्होंने यह भी कहा कि धार्मिक चिन्ह को लेकर कोई विवाद नहीं होना चाहिए। इस पर मुस्लिम प्रतिनिधियों का कहना था कि हमारे धार्मिक चिह्न को हटाने से पहले हमें विश्वास में लेना चाहिए था। हम स्वयं ही अपने चिह्न को सम्मानपूर्वक हटा लेते, लेकिन नगर निगम ने ऐसा नहीं किया। जनप्रतिनिधियों का कहना रहा कि वह भी शहर के विकास में सहयोग करना चाहते हैं। सेंगवा ने मुस्लिम प्रतिनिधियों के विचारों का स्वागत करते हुए कहा कि वह स्वयं मौके पर चलते हें और सम्मानपूर्वक धार्मिक चिन्ह को हटाने की प्रक्रिया करते हैं। इस पर मुस्लिम प्रतिनिधि सहमत हुए और उन्होंने मौके पर जाकर उस चिह्न को हटा लिया, जिसको लेकर दो दिन से शहर में हालात तनावपूर्ण थे। धार्मिक चिन्ह को हटाए जाने के बाद सेंगवा ने कहा कि अब इस मुद्दे पर कोई विवाद नहीं रहा है। इसके लिए सेंगवा ने मुस्लिम प्रतिनिधियों का आभार जताया।   
एस.पी.मित्तल) (24-04-17)
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#2496
बिजली के निजीकरण पर क्या अजमेर के विधायक कोटा के भाजपा विधायकों की तरह विरोध कर सकेंगे।
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24 अप्रैल को राजस्थान विधानसभा में कोटा के भाजपा विधायक भवानी सिंह राजावत और प्रह्लाद गुंजल ने कोटा में बिजली के निजीकरण का पुरजोर विरोध किया। इन भाजपा विधायकों का कहना रहा कि निजी कंपनी कोटा वासियों को जमकर लूट रही है और बेवजह बिजली के कनेक्शन काटे जा रहे हैं। विधायकों ने सरकार से मांग की कि कोटा में पुन: विद्युत वितरण निगम को ही बिजली सप्लाई का काम सौंपा जाए। विधायकों का यह भी कहना रहा की निजी करण की वजह से सरकार की छवि पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है। सवाल उठता है कि कोटा के भाजपा विधायकों ने जिस तरह बिजली के निजीकरण का विरोध किया है, क्या उसी तरह अजमेर के भाजपा विधायक भी निजीकरण का विरोध करेंगे? सरकार ने अजमेर शहर की बिजली सप्लाई का काम भी टाटा पावर कंपनी को दे दिया है। कंपनी के कार्मिकों ने काम भी शुरू कर दिया है। अजमेर में भी यह आशंका जताई जा रही है कि टाटा पावर कंपनी के अधिकारी और कर्मचारी उपभोक्ताओं का शोषण करेंगे। अजमेर शहर में भाजपा के दो विधायक हैं, एक वासुदेव देवनानी तथा दूसरी अनिता भदेल। यह दोनों ही स्वतंत्र प्रभार के राज्यमंत्री हैं। हालांकि अजमेर में निजी करण को लेकर बहुत विरोध हुआ है, लेकिन इन दोनों विधायकों ने अभी तक भी निजीकरण पर अपनी कोई राय प्रकट नहीं की है। जानकारों के अनुसार अजमेर डिस्कॉम में टाटा पावर के साथ जो समझौता किया है, वह निगम और शहर वासियों के लिए नुकसान देय है इसमें विद्युत निगम के अधिकारियों को भ्रष्टाचार करने का और अवसर मिल जाएगा।
(एस.पी.मित्तल) (24-04-17)
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#2495
तीन तलाक की शिकार राष्ट्रीय खिलाड़ी शुमायला की कोई मदद कर पाएंगे मोदी और योगी। 
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देश के 10 बड़े अखबारों में शामिल पत्रिका के 24 अप्रैल के अंक में प्रथम पृष्ठ पर एक खबर प्रकाशित हुई है। इस खबर में यह बताया गया है कि नेट बॉल की राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी शुमायला जावेद ने पीएम नरेंद्र मोदी और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में कहा गया है कि लड़की का जन्म हो जाने की वजह से उसके पति आजम अब्बास ने तलाक दे दिया। अब वह दर-दर की ठोकर खाने को मजबूर है। अमरोहा निवासी पीडि़ता ने मोदी और योगी से कहा है कि देश में उनकी जैसी अनेक मुस्लिम महिलाएं हैं जो तीन तलाक की प्रथा से बेहद दु:खी हंै। ऐसी सभी महिलाओं की मदद मोदी और योगी को करनी चाहिए। पत्र में यह भी बताया गया है कि वह नेट बॉल की सात बार की चैम्पियन हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि इन दिनों तीन तलाक की प्रथा से पीडि़त सैकड़ों मुस्लिम महिलाएं अपने दर्द को लेकर सामने आ रही हैं। अखबारों और न्यूज चैनलों पर ऐसी खबरों की बाढ़ सी आ गई है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या मुस्लिम समाज को तीन तलाक जैसे गंभीर मुद्दे पर विचार मंथन नहीं करना चाहिए? यह माना कि तीन तलाक मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं से जुड़ा हुआ है, लेकिन जिस तरह से मुस्लिम महिलाओं की पीड़ा सामने आ रही है, उसमें मुस्लिम विद्वानों और धर्म गुरुओं को भी पहल करनी चाहिए। महिला किसी भी समाज अथवा धर्म की हो, लेकिन यदि वह परेशान होती है तो ऐसे समाज पर प्रतिकूल असर पड़ता है। हालांकि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र पेश कर तीन तलाक को संविधान के अनुकूल नहीं माना है। इसको लेकर अनेक मुस्लिम संगठन केंद्र सरकार की आलोचना भी कर रहे हैं। लेकिन जिस तरह से पीडि़त मुस्लिम महिलाएं अब भारतीय संविधान के अनुरूप अदालतों में जा रही हैं, उससे भी मामले की गंभीरता का पता चलता है। मुस्लिम महिलाओं की यह भी शिकायत है कि जब वे अदालत में जाती हैं तो उनके पति किसी मौलाना अथवा मौलवी का तलाकनामा प्रस्तुत कर देते हैं, क्योंकि अदालतें भी ऐसे तलाकनामे को सही मान लेती हैं। इसलिए उन्हें भारतीय संविधान के मुताबिक अपने अधिकार नहीं मिलते हैं।
(एस.पी.मित्तल) (24-04-17)
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#2494
इधर दिल्ली में मोदी महबूबा की मुलाकात, उधर कश्मीर में सुरक्षाबलों पर जमकर पत्थरबाजी। कैसे सुधरेंगे हालात ?
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 24 अप्रैल को दिल्ली में जब जम्मू-कश्मीर की सीएम महबूबा मुफ्ती ने पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात की, तभी कश्मीर के श्रीनगर में स्कूल-कॉलेजों के छात्रों ने सुरक्षाबलों पर जमकर पत्थर फेंके। 24 अप्रैल को एक सप्ताह बाद घाटी में स्कूल-कॉलेज खुले थे, लेकिन छात्रों ने पढ़ाई करने के बजाय सुरक्षाबलों पर पत्थर फेंकने का काम किया है। यानी इन युवाओं ने साफ  कर दिया कि अब वे पढ़ाई करने के बजाय सुरक्षाबलों पर पत्थर फेंकने का ही काम करेंगे। यदि इन युवाओं में पढ़ाई का जज्बा होता तो वे एक सप्ताह बाद खुले स्कूल-कॉलेजों में जाकर पढ़ाई करते। इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि जब दिल्ली में सीएम महबूबा प्रदेश के हालात सुधारने के लिए पीएम मोदी से मिल रही थीं, तभी श्रीनगर में पत्थर फेंके जा रहे थे। पीएम से मुलाकात के बाद महबूबा ने कहा गुमराह युवक पत्थरबाजी कर रहे हैं। महबूबा का कहना रहा कि बातचीत और पत्थरबाजी साथ-साथ नहीं हो सकती। इस मुलाकात के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि फिलहाल जम्मू कश्मीर में भाजपा की मदद से महबूबा की सरकार चलती रहेगी। प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की अटकलें भी खत्म हो गई हैं। पीएम मोदी ने भी इस बात के संकेत दिए हैं कि महबूबा के माध्यम से ही कश्मीर के हालात सुधारे जाएंगे। 
कैसे सुधरेंगे हालात: 
अब भले ही कश्मीर में महबूबा की सरकार बनी रहेगी, लेकिन सवाल उठता है कि आखिर घाटी के हालात कैसे सुधरेंगे। केंद्र सरकार की पूरी मदद के बाद महबूबा गत 2 वर्षों से हालात सुधारने का काम ही कर रही हैं। कई मौकों पर महबूबा ने अलगाववादियों के खिलाफ सख्त प्रतिक्रिया भी दी है। लेकिन  घाटी के हालात बद से बदतर ही हुए हैं। असल में घाटी से चार लाख हिंदुओं को पीट-पीट कर भगा दिए जाने के बाद अब अलगाववादियों ने अपनी ताकत के बल पर कब्जा कर लिया है। अब वही होता है जो अलगाववादी चाहते हैं। सरकार ने भले ही अलगाववादियों के नेताओं पर अनेक पाबंदी लगा रखी हों, लेकिन फिर भी अलगाववादियों का प्रभावी असर है। अलगाववादी चाहते हैं कि भारत कश्मीर घाटी को आजाद मुल्क घोषित कर दे। अब देखना है अलगाववादियों की ताजा चुनौतियों से मोदी और महबूबा की सरकार कैसे निपटती है।
पीडीपी के जिला अध्यक्ष की हत्या:
पीएम मोदी ने भले ही सीएम महबूबा को हालात सुधारने का एक और अवसर दिया हो, लेकिन 24 अप्रैल को ही आतंकवादियों ने पुलवामा के पीडीपी के जिला अध्यक्ष अब्दुल गनी की गोली मार कर हत्या कर दी। यानि अब महबूबा की पार्टी पीडीपी के नेता भी घाटी में सुरक्षित नहीं है। 
(एस.पी.मित्तल) (24-04-17)
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Sunday 23 April 2017

#2493
धौलपुर उप-चुनाव की समीक्षा की मांग रखकर पूर्व सीएम गहलोत ने सचिन पायलट पर साधा निशाना
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23 अप्रेल को राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने अजमेर के सर्किट हाऊस में पत्रकारों से संवाद किया। एक सवाल के जवाब में गहलोत ने कहा कि हाल ही में धौलपुर में हुए उप-चुनाव में कांग्रेस की हार की समीक्षा संगठन स्तर पर होनी चाहिए। गहलोत ने यह भी कहा कि धौलपुर में हार का कारण ओवर कॉन्फिडेन्स भी रहा है। गहलोत ने जिस अंदाज में अपनी बात कही, उससे प्रतीत हो रहा था कि वे प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट पर राजनीतिक निशाना साध रहे हैं। असल में पूरे चुनाव की बागडोर पायलट के हाथों में ही थी। मतदान से दो दिन पहले पायलट ने अति-उत्साह में कहा था कि चुनाव का परिणाम प्रदेश की भाजपा सरकार के काम का परिणाम भी होगा। यानि पायलट को भरोसा था कि चुनाव में कांग्रेस की ही जीत होगी। यही वजह है कि अब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी, पायलट के इसी बयान को सरकार के अच्छे काम से जोड़ रहे हैं। 23 अप्रेल को पूर्व सीएम गहलोत ने पायलट पर तंज भी कसा। कांग्रेस में नेताओं के बगावती तेवर के सवाल पर गहलोत ने अजमेर के पत्रकारों से कहा कि इस सवाल का जवाब आप अपने जिले के सांसद रहे पायलट साहब से पूछो। पायलट तो आप सबके बहुत प्रिय है। 
एस.पी.मित्तल) (23-04-17)
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#2492
मंत्री और ब्राहमण समुदाय के विवाद में क्यों उलझ रही है निम्बार्क पीठ। आचार्यश्री की उपस्थिति के बाद भी नहीं बनी बात। 
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राजस्थान के शिक्षा राज्य मंत्री वासुदेव देवनानी और ब्राहमण समुदाय के बीच जो विवाद चल रहा है, उसे निपटाने के लिए 22 अप्रेल को सलेमाबाद (अजमेर) स्थित निम्बार्क पीठ के परिसर में एक समझौता वार्ता हुई। इस वार्ता में पीठ के आचार्य जगदगुरू श्यामशरण महाराज भी उपस्थित रहे। दोनों पक्षों को सुनने के बाद आचार्यश्री ने कहा कि अब इस मामले को यहीं समाप्त कर दिया जाना चाहिए। उम्मीद थी कि आचार्यश्री के निर्देंश के बाद दोनों पक्ष विवाद को खत्म करने की घोषणा कर देंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वार्ता में मौजूद ब्राहमण संघर्ष समिति के योगेन्द्र ओझा, सुदामा शर्मा, राजीव शर्मा, लोकेश भिंडा, के.जी.जोशी, विवेक पाराशर, ओम प्रकाश जोशी आदि ने दो टुक शब्दों में कहा कि ब्राहमणों के अपमान के लिए जब तक मंत्री देवनानी लिखित में माफी नहीं मांगेगे, तब तक आन्दोलन चलता रहेगा। हालांकि निम्बार्क पीठ में वार्ता पर मंत्री देवनानी ने चुप्पी साध रखी है। देवनानी ने यह तो माना है कि वे आचार्यश्री के बुलावे पर निम्बार्क पीठ में गए थे। लेकिन यह नहीं बताया कि वार्ता का क्या निष्कर्ष निकला। देवनानी ने कहा कि वे निम्बार्क पीठ और उसके आचार्य श्यामशरण महाराज का बेहद सम्मान करते हैं। वे ऐसी कोई बात नहीं कहना चाहते, जिससे विवाद को बढ़ावा मिले। मैंने अपना पक्ष आचार्यश्री के समक्ष रखा है। सवाल उठता है कि जब दोनों ही पक्ष खासकर ब्राहमण समुदाय अपनी मांग पर अड़ा हुआ है तो फिर निम्बार्क पीठ को मध्यस्थता करने की क्या जरूरत है? निम्बार्क पीठ से देश के करोड़ों श्रद्धालुओं की श्रद्धा जुड़ी हुई है। निम्बार्क सम्प्रदाय में इस पीठ को बहुत ही सम्मान के साथ देखा जाता है। देश के कोने-कोने से श्रद्धालु आचार्यश्री के दर्शन करने आते हैं। श्रद्धालु दर्शन मात्र से स्वयं को भाग्यशाली मानते हैं। ऐसे श्रद्धा और भावपूर्ण माहौल में यदि झगड़ालु पक्ष अपनी-अपनी जिद पर अड़े रहते हैं तो फिर पीठ को विचार करना चाहिए। 
माफी से इंकार :
शिक्षा राज्य मंत्री देवनानी पहले ही माफी मांगने से इंकार कर चुके हैं। देवनानी का कहना है कि उन पर उस जुर्म का आरोप लगाया जा रहा है, जो उन्होंने किया ही नहीं। उन्होंने कभी भी ब्राहमण समाज को अपमानित करने वाला बयान नहीं दिया। उन्होंने हमेशा ब्राहमण समाज का सम्मान ही किया है। 
एस.पी.मित्तल) (23-04-17)
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#2491
मुस्लिम धार्मिक चिन्ह सब पर भारी। अजमेर प्रशासन से लेकर क्षेत्रवासी तक लाचार।
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अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त धार्मिक नगरी अजमेर में पुष्कर रोड पर बीच सड़क पर बनाया गया एक मुस्लिम धार्मिक चिन्ह अब सब पर भारी पड़ रहा है। 22 अप्रेल को पुष्कर रोड के नागफणी मोड़ पर कुछ उत्साही लोगों ने सड़क पर जो धार्मिक चिन्ह बनाया, उसे अब न तो जिला प्रशासन और न सड़क चौड़ा होने की खुशी मनाने वाले क्षेत्रवासियों में हटाने की हिम्मत है। ऐसा नहीं कि मुस्लिम समुदाय के लोग अपने धार्मिक चिन्ह की हिफाजत के लिए मौके पर मौजूद हो। चिलचिलाती धूप में धार्मिक चिन्ह यूं ही रखा हुआ है। 19 अप्रेल को जब पुष्कर रोड से करंट वाले बालाजी के मंंदिर को हटाया था तो जिला कलेक्टर गौरव गोयल, मेयर धर्मेन्द्र गहलोत, क्षेत्रीय विधायक और स्कूली शिक्षा राज्य मंत्री वासुदेव देवनानी आदि ने खुशी का इजहार किया था। सभी का यह कहना था कि बीच रास्ते से मन्दिर को शिफ्ट कर विकास का रास्ता खोला गया है। अब जब यह मार्ग 60 फीट चौड़ा हो जाएगा तो इस मार्ग पर रोज-रोज जाम नहीं लगेंगे। इसके लिए कलेक्टर, मंत्री, मेयर आदि सभी ने क्षेत्रवासियों को बधाई दी। इसी मार्ग के नागफणी मोड़ पर मुस्लिम समुदाय का एक धार्मिक चिन्ह भी था। यह धार्मिक चिन्ह अवैध रूप से निर्मित एक कमरे में बनाया गया था। यही वजह थी कि मुस्लिम समुदाय के लोगों ने मेयर गहलोत के समक्ष यह प्रस्ताव किया कि जब मन्दिर को हटाया जाए, तब इस धार्मिक चिन्ह को भी हटा दिया जाएगा। मेयर गहलोत ने अपना वायदा दिखाते हुए 21 अप्रेल को करंट वाले बालाजी के मंदिर का ढांचा पूरी तरह से हटा दिया। अगले दिन 22 अप्रेल को सुबह-सुबह नागफणी मोड़ के अतिक्रमणों को भी हटा दिया। अतिक्रमण हटाते समय निगम के दल को विरोध का कोई सामना नहीं करना पड़ा। लेकिन एक-दो घंटे बाद कुछ उत्साही युवक आए और उन्होंने विवादित स्थल पर पहले से बड़े धार्मिक चिन्ह का निर्माण कर दिया। अब यह धार्मिक चिन्ह सब पर भारी पड़ रहा है। 23 अप्रेल की शाम को भी कुछ लोगों की एक बैठक हुई, जिसमें धार्मिक चिन्ह को हटाने से पहले वैकल्पिक भूमि की मांग रखी गई। इस बैठक में यह कहा गया कि अब नागफणी मोड़ का धार्मिक चिन्ह तभी हटेगा, जब प्रशासन वैकल्पिक स्थान उपलब्ध करवाएगा। हालांकि अजयमेरू सजग नागरिक समिति ने 22 अप्रेल को ही प्रशासन को एक ज्ञापन सौंपकर वैकल्पिक स्थल देने का विरोध किया है। समिति के प्रतिनिधि मण्डल में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के महानगर संघ चालक सुनील दत्त जैन, भाजपा के शहर जिला अध्यक्ष, अरविन्द यादव सहित 10 से भी ज्यादा पार्षद शामिल थे। मेयर धर्मेन्द्र गहलोत का कहना है कि सभी पक्षों की सहमति से ही धार्मिक चिन्ह को हटाया जाएगा। जिस स्थान से अतिक्रमण हटाए गए हैं, वह नगर निगम की सम्पत्ति है। 
कैसे बनेगा स्मार्ट सिटी :
केन्द्र सरकार ने अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा की है। केन्द्र की अनेक योजनाओं में करोड़ों रुपए के विकास कार्य हो भी रहे हैं।  लेकिन अजमेर को तभी स्मार्ट बनाया जा सकता है, जब मुख्य मार्गों से अतिक्रमण हटाए जाएं। अतिक्रमण हटाने की शुरूआत पुष्कर रोड से ही की गई थी, लेकिन प्रशासन पहले ही मोड़ पर उलझता प्रतीत हो रहा है। 
24 अप्रेल को होनी है वार्ता :
नागफणी के मोड़ पर धार्मिक चिन्ह के पक्षधर मुस्लिम प्रतिनिधियों से 24 अप्रेल को प्रशासन की वार्ता होनी है। शहर के अतिरिक्त कलेक्टर अरविन्द सेंगवा ने इस विवाद से जुड़े सभी पक्षों को वार्ता के लिए बुलाया है। मेयर गहलोत भी अपने स्तर पर मामले को निपटाने में लगे हुए हैं। 
(एस.पी.मित्तल) (23-04-17)
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Saturday 22 April 2017

#2490
ख्वाजा साहब की दरगाह में रात्रि को इबादत के लिए अनुमति लेने वाला आदेश नाजिम को एक ही दिन में वापस लेना पड़ा। दरगाह कमेटी की हुई फजीहत।
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अजमेर स्थित विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा साहब की दरगाह में आंतरिक इंतजाम करने वाली दरगाह कमेटी के नाजिम लेफ्टिनेंट कर्नल मंसूर अली ने 21 अप्रैल को एक आदेश जारी किया। इस आदेश में खादिमों की संस्था अंजुमन मोनिया फखरिया चिश्तिया और अंजुमन यादगार को निर्देशित किया गया कि दरगाह के मामूल यानी बंद होने के बाद रात के समय यदि कोई जायरीन इबादत के लिए रुकता है तो उसे पूर्व में दरगाह कमेटी की अनुमति लेनी होगी इसके लिए नाजिम ने बाकायदा एक आवेदन पत्र भी जारी किया। अपने इस आदेश में नाजिम ने बताया कि ख्वाजा साहब की दरगाह सुरक्षा मानकों में ए ग्रेड की है। आदेश में स्पष्ट का गया कि दरगाह कमेटी की अनुमति के बिना कोई भी व्यक्ति दरगाह परिसर में रात्रि के समय नहीं रुक सकता है। नाजिम के इस आदेश का खादिम समुदाय ने कड़ा विरोध किया खादिमों के संस्था अंजुमन सैय्यद यादगार के सचिव वाहिद हुसैन अंगारा का कहना था कि दरगाह कमेटी को इस तरह के आदेश जारी करने का कोई अधिकार नहीं है। रात्रि के समय दरगाह परिसर में जायरीन ही नहीं, बल्कि खुद भी इबादत करते हैं और यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है। नाजिम को इस परंपरा को तोडऩे का कोई अधिकार नहीं है। खादिम समुदाय ने नाजिम के इस आदेश को मानने से साफ इनकार कर दिया। खादिमों के विरोध को देखते हुए 22 अप्रैल को ही नाजिम लेफ्टीनेंट कर्नल मंसूर अली को अपना आदेश वापस लेना पड़ा। अपने नए आदेश में नाजिम ने कहा है कि अब किसी भी आदमी अथवा जायरीन को रात्रि के समय रुकने के लिए किसी भी प्रकार की अनुमति नहीं लेनी होगी। अलबत्ता नशेडिय़ों और संदिग्ध व्यक्तियों को रात्रि के समय दरगाह परिसर में रहने नहीं दिया जाएगा। नाजिम मंसूर अली ने जिस तरह से अपना आदेश एक ही दिन में वापस लिया, उसमें यह माना जा रहा है कि दरगाह कमेटी की वजह से फजीहत हुई है। दरगाह परिसर के अंदर कोई भी निर्णय खादिम समुदाय की सहमति से ही लागू किया जा सकता है, लेकिन 21 अप्रैल को आदेश जारी करने से पहले नाजिम ने खादिम समुदाय को भरोसे में नहीं लिया।
एस.पी.मित्तल) (22-04-17)
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#2489
धार्मिक चिन्ह को हटाने पर अजमेर में हिन्दू और मुसलमान आमने-सामने। वैकल्पिक स्थान देने पर जताया विरोध।
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अजमेर के पुष्कर रोड स्थित नागफणी मोड़ पर एक धार्मिक चिन्ह को हटाने पर हिन्दू और मुस्लिम समुदाय आमने-सामने हो गया। हालात को देखते हुए विवादित स्थल पर भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया है। अजमेर के पुष्कर रोड के ऋषि घाटी से लेकर आनासागर पुलिस चौकी तक के एक किलोमीटर मार्ग को 60 फीट चौड़ा करने की कवायद चल रही है। नगर निगम ने इस मार्ग के बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हटाए है। इसी के अंतर्गत गत 19 अप्रैल को करंट वाले बालाजी के मंदिर को भी हटा दिया गया। मंदिर की तरह ही नागफणी के मोड़ पर मुस्लिम समुदाय का भी एक धार्मिक चिन्ह था। इस संबंध में नगर निगम प्रशासन से हुए समझौते के अनुसार जब बालाजी का मंदिर हटा दिया जाएगा तब नागफणी मोड़ के धार्मिक चिन्ह को भी हटा दिया जाए। इस मौखिक समझौते के अनुरुप ही नगर निगम ने 22 अप्रैल की सुबह नागफणी मोड़ के धार्मिक चिन्ह और आसपास के अतिक्रमणों को भी हटा दिया। निगम के दस्ते ने जब अतिक्रमण हटाया तब मौके पर कोई विवाद नहीं हुआ। इसलिए निगम का दस्ता शांतिपूर्ण कार्यवाही कर लौट गया,लेकिन थोड़ी ही देर बाद मुस्लिम समुदाय की अनेक महिलाएं मौके पर आई और धार्मिक चिन्ह को हटाने का विरोध किया। इसके साथ ही कुछ पुरुषभी आए और विवादित स्थल पर धार्मिक चिन्ह का निर्माण कर लिया। इतना ही नहीं मौके पर टेन्ट लगाकर धरना प्रदर्शन शुरू हो गया। इस घटना की जानकारी मिलते ही बड़ी मात्रा में पुलिस बल मौके तैनात कर दिया गया। इसी दौरान मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधि यासिर चिश्ती ने शर्त रखी कि वैकल्पिक भूमि उपलब्ध करवाई जाए ताकि धार्मिक स्थान का निर्माण किया जा सके। भूमि उपलब्ध करवाने के लिए तहसीलदार और अन्य राजस्व कर्मियों को भी मौके पर बुलाया गया। अभी धार्मिक चिन्ह के लिए वैकल्पिक भूमि देने की मांग चल ही रही थी कि अजयमेरू सजग नागरिक समिति के तत्वावधान में बड़ी संख्या में हिन्दू समुदाय के लोगों ने भी एकत्रित होकर अतिरिक्त कलेक्टर अरविन्द सेंगवा से मुलाकात की। सेंगवा को दिए गए ज्ञापन में कहा गया कि अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाने की योजना के अंतर्गत ही पुष्कर रोड के मार्ग को चौड़ा किया जा रहा है। प्रशासन को सहयोग करने के लिए ही आपसी सहमति से मंदिर भी हटाया गया है। समिति की ओर से कहा गया कि नागफणी के मोड़ पर अनाधिकृत तौर पर मुस्लिम धार्मिक चिन्ह बनाया गया है। अब कहा जा रहा है कि 23 अप्रैल को विवादित स्थल पर बड़ी संख्या में लोग एकत्रित होंगे। यदि ऐसा होता है तो अजमेर का साम्प्रदायिक सौहार्द बिगड़ेगा। समिति की ओर से चेताया गया कि धार्मिक चिन्ह के लिए वैकल्पिक भूमि नहीं दी जाए। यदि अनाधिकृत निर्माण के लिए सरकारी स्तर पर भूमि दी जाती है तो यह गलत परम्परा होगी। सुप्रीम कोर्ट ने भी निर्देश दे रखे है कि शहर के विकास के लिए धार्मिक स्थलों को हटाया जा सकता है। इस प्रतिनिधि मंडल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के महानगर संघचालक सुनील दत्त जैन, भाजपा के शहर अध्यक्ष अरविन्द यादव, पार्षद ज्ञान सारस्वत, चन्द्रेश सांखला, धर्मेन्द्र शर्मा, राजेन्द्र सिंह पंवार, वीरेन्द्र वालिया, संपत सांखला, नीरज जैन, रमेश सोनी, भारती श्रीवास्तव, महेन्द्र जादम आदि शामिल थे। 
एस.पी.मित्तल) (22-04-17)
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तो योगी के यूपी में साधु-संतों के भेष में आतंकी करेंगे हमला। 
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22 अप्रैल को खुफिया रिपोर्टो में कहा गया है कि आतंकी संगठन आईएस ने नेपाल के रास्ते से 25 आतंकवादियों को भारत में प्रवेश करवाया है। अब यह आतंकी साधु संतों के भेष में उत्तर प्रदेश में आतंकी हमले करेंगे। रिपोर्ट में कहा गया है कि भीड़ वाले स्थानों में घुसकर आतंकी बड़ी वारदात कर सकते हैं, क्योंकि उत्तर प्रदेश में अनेक धार्मिक स्थल है और यहां साधु संतों का जमावड़ा लगा रहता है। ऐसे में आतंकियों को साधु-संतों के भेष में वारदात करने में आसानी होगी। खुफिया रिपोर्टों के बाद पूरे उत्तर प्रदेश में धार्मिक स्थलों की सुरक्षा को बढ़ा दिया गया है। खासकर गोरखनाथ मंदिर की सुरक्षा और कड़ी की गई है। यहां यह उल्लेखनीय है कि गोरखनाथ मंदिर यूपी के सीएम आदित्यनाथ योगी से जुड़ा हुआ है। योगी इसी मंदिर के प्रमुख हैं। माना जा रहा है कि भारत में जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी को चुनावों में सफलता मिल रही हैं। उससे कट्टरपंथी आईएस जैसे संगठन खुश नहीं है। देश के हालात बिगाडऩे के लिए ही आतंक की वारदातें करवाई जा रही हैं।
(एस.पी.मित्तल) (22-04-17)
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तो योगी के यूपी में साधु-संतों के भेष में आतंकी करेंगे हमला। 
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22 अप्रैल को खुफिया रिपोर्टो में कहा गया है कि आतंकी संगठन आईएस ने नेपाल के रास्ते से 25 आतंकवादियों को भारत में प्रवेश करवाया है। अब यह आतंकी साधु संतों के भेष में उत्तर प्रदेश में आतंकी हमले करेंगे। रिपोर्ट में कहा गया है कि भीड़ वाले स्थानों में घुसकर आतंकी बड़ी वारदात कर सकते हैं, क्योंकि उत्तर प्रदेश में अनेक धार्मिक स्थल है और यहां साधु संतों का जमावड़ा लगा रहता है। ऐसे में आतंकियों को साधु-संतों के भेष में वारदात करने में आसानी होगी। खुफिया रिपोर्टों के बाद पूरे उत्तर प्रदेश में धार्मिक स्थलों की सुरक्षा को बढ़ा दिया गया है। खासकर गोरखनाथ मंदिर की सुरक्षा और कड़ी की गई है। यहां यह उल्लेखनीय है कि गोरखनाथ मंदिर यूपी के सीएम आदित्यनाथ योगी से जुड़ा हुआ है। योगी इसी मंदिर के प्रमुख हैं। माना जा रहा है कि भारत में जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी को चुनावों में सफलता मिल रही हैं। उससे कट्टरपंथी आईएस जैसे संगठन खुश नहीं है। देश के हालात बिगाडऩे के लिए ही आतंक की वारदातें करवाई जा रही हैं।
(एस.पी.मित्तल) (22-04-17)
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सीएम की भामाशाह योजना में अजमेर के मित्तल अस्पताल में हो रहा है गरीबों का मुफ्त इलाज। 
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राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना जब शुरू की थी, तब उनके मन में एक सपना था किस योजना के अंतर्गत बड़े प्राइवेट अस्पतालों में भी गरीबों का मुफ्त इलाज हो। हालांकि शुरू में तो अनेक प्राइवेट अस्पतालों ने रुचि नहीं दिखाई, लेकिन बाद में जब सरकार ने वादे के मुताबिक पुनर्भुगतान किया तो प्राइवेट अस्पतालों ने भी भामाशाह योजना में गरीबों का मुफ्त इलाज शुरू कर दिया। अजमेर के पुष्कर रोड स्थित मित्तल अस्पताल में भी अब तक कोई 1000 मरीजों का मुफ्त इलाज हो चुका है। मरीज के इलाज पर 30 हजार से लेकर 3 लाख रुपए तक की राशि खर्च हुई है। किसी भी मरीज को एक रुपए का भी भुगतान नहीं करना पड़ा है, क्योंकि सभी मरीजों के इलाज का भुगतान राज्य सरकार के द्वारा किया गया है। मित्तल अस्पताल के निदेशक मनोज मित्तल ने बताया की पार्षद से लेकर सांसद तक कोई भी जनप्रतिनिधि गरीब मरीज की सिफारिश कर सकता है। हम जनप्रतिनिधियों की सिफारिश के आधार पर भी भामाशाह योजना में मरीजों का इलाज करते हैं। उन्होंने बताया की पाली के भाजपा विधायक ज्ञानचंद पारख ने अब तक कोई 50 मरीजों का इलाज अजमेर में हमारे अस्पताल में करवाया है। पारख पूरी जागरुकता के साथ मरीजों का ख्याल रखते हैं। उन्होंने बताया कि हमारे अस्पताल में सुपर स्पेशलिटी स्वास्थ्य सेवाएं भी उपलब्ध हंै। जिस प्रकार पारख इन सेवाओं का लाभ दिलवा रहे हैं, उसी प्रकार अजमेर जिले के जनप्रतिनिधियों को भी जागरुकता दिखानी चाहिए। हालांकि भाजपा के विधायक वासुदेव देवनानी और श्रीमती अनिता भदेल मरीजों को अस्पताल में इलाज के लिए भेजती हैं, लेकिन यह संख्या अपेक्षाकृत कम है। मित्तल ने बताया कि सुपर स्पेशलिटी स्वास्थ्य सेवा के 119 पैकेजों में उपचार उपलब्ध है। यानी हर बीमारी का इलाज अस्पताल में हो रहा है। उन्होंने कहा की कोई गरीब मरीज भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना का कार्ड लेकर भी सीधे हमारे अस्पताल में आ सकता है। इस संबंध में और अधिक जानकारी अस्पताल के जनसम्पर्क अधिकारी संतोष गुप्ता से मोबाइल नम्बर 9116049809 पर ली जा सकती है। 
एस.पी.मित्तल) (22-04-17)
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