Wednesday 12 April 2017

#2450
पत्रकारिता की जमीन से जुड़े हुए थे भास्कर समूह के चेयरमैन रमेशचंद अग्रवाल। 
मुझे भी मिला साथ कार्य करने का अवसर।
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देश के सबसे बड़े मीडिया घराने भास्कर के चैयरमेन रमेशचंद अग्रवाल का 12 अप्रेल को अहमदाबाद में निधन हो गया। 71 वर्षीय अग्रवाल अपने पीछे भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं। यह सही है कि आज भास्कर का जो विशाल स्वरूप हम देख रहे हैं, उसके पीछे स्वर्गीय अग्रवाल का पत्रकारिता की जमीन से जुड़ा होना था। भले ही उनके पुत्र सुधीर अग्रवाल, गिरीश अग्रवाल और पवन अग्रवाल ने नई तकनीक और विचार के जरिए भास्कर को आसमान की ऊंचाईयों पर पहुंचाया हो, लेकिन भास्कर का बीज स्वर्गीय अग्रवाल ने ही रौंपा था। एमपी के बाद वर्ष 1996 में जब भास्कर का प्रकाशन राजस्थान के जयपुर से शुरू किया गया तो सबसे पहले उनकी नजर अजमेर पर टिकी। अग्रवाल को यह अच्छी तरह पता था कि अजमेर में भास्कर का प्रकाशन आसान नहीं होगा, क्योंकि जयपुर की सफलता के बाद राजस्थान के अखबार जगत में खलबली मची हुई है, इसलिए अग्रवाल स्वयं अजमेर आए और भाजपा नेता औंकार सिंह लखावत, कांग्रेस नेता राजेश टंडन, मुंशी राधेश्याम अग्रवाल आदि से यह जाना कि अजमेर में भास्कर का झंडा कौन गाड़ सकता है। कई नामों पर विचार हुआ और अंत में मुझे नियुक्त करने का फैसला लिया। चूंकि उस समय मैं अजमेर से बाहर था, इसलिए संदेश करवाया कि मैं जयपुर आ जाऊं। मैंने पहली बार अग्रवाल से जयपुर के भास्कर दफ्तर में मुलाकात की। मुझे इस बात की खुशी हुई कि अग्रवाल साहब ने मुझे भास्कर के अभियान के बारे में विस्तार से बताया और कहा कि मित्तल जी आपको ही अजमेर में भास्कर का झंडा गाडऩा है। सपाट से पूछा कि कितनी सैलेरी लोगे। चूंकि मैंने कभी भी पत्रकारिता को सैलेरी से नहीं जोड़ा, इसलिए सादगी के साथ कहा कि जो आप देंगे। तब मुझे 8 हजार रुपए सैलेरी और अजमेर का प्रभारी बनाया गया। उस समय यह तय हुआ कि अजमेर में सिर्फ 4 पृष्ठ छपेंगे। शेष 12 पृष्ठ का अखबार जयपुर से छपकर आएगा। मैं इसे स्वर्गीय अग्रवाल की रणनीति ही मानता हूं कि उन्होंने जिस अंदाज में अजमेर में अखबार की मार्केटिंग करवाई, उससे बड़े-बड़े अखबारों के खम्बे हिल गए। भास्कर को फेल करने के लिए सर्वेयर की हड़ताल से लेकर गोलियां तक चलाई गई। सुधीर अग्रवाल, गिरीश अग्रवाल और पवन अग्रवाल को अच्छी तरह पता है कि अजमेर में किन मुसीबतों का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्हें यह भी पता था कि अजमेर में भास्कर का झंडा मजबूत हाथों में है। अजमेर से जो फीडबैक मिला, उसके बाद अग्रवाल ने 4 पृष्ठ के बजाए 16 पृष्ठ ही निकालने का फैसला किया। मुझे याद है कि इस दौरान कई बार चेयरमैन साहब और उनके पुत्र अजमेर आए और तैयारियों का जायजा लिया। मैंने यह देखा कि अग्रवाल को अखबार लाइन की छोटी से छोटी जानकारी भी थी। पत्रकारों की डेस्क कहां लगेगी, कॉमसेट कहां होगा, इस तक का अनुभव था। आज भले ही भास्कर में बड़े-बड़े प्रशासक हों, लेकिन तब मुझे अग्रवाल ने कहा कि मित्तलजी हमें सरकारी दफ्तर का रिटायर अधिकारी चाहिए। अग्रवाल के सुझाव पर मैंने माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के रिटायर अधिकारी बी.एस.चौहान का नाम प्रस्तावित किया, जिसे तत्काल स्वीकार कर लिया गया। उस समय हमने 100 से भी ज्यादा सर्वेयर रखे थे। इसे अग्रवाल की सोच ही कहा जाएगा की उन्हीं सर्वेयरों में से भास्कर में स्थाई भर्ती की गई। इसमें कोई दो राय नहीं कि स्वर्गीय अग्रवाल के विजन को ही उनके पुत्रों ने आगे बढ़ाया। अजमेर की अपार सफलता के बाद ही राजस्थान में भास्कर के जोधपुर, उदयपुर, बीकानेर आदि के संस्करण शुरू हुए। अजमेर के बाद भास्कर ने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मुझे इस बात का सन्तोष है कि भास्कर के चैयरमेन ने मुझ पर जो भरोसा जताया था, उस पर मैं खरा उतरा। मैंने वर्ष 2000 तक भास्कर के अजमेर संस्करण में पूरी निष्ठा के साथ काम किया। वर्ष 2000 में ही मैंने पूरे उत्तर भारत में सबसे पहले अजमेर से केबल पर न्यूज चैनल शुरू किया। उस समय दर्शकों को यह चमत्कार लगा कि अपने शहर की घटना शाम को टीवी पर देखी गई। अजमेर अब तक के नाम से शुरू किया गया टीवी चैनल जिले भर में केबल तकनीक से प्रसारित हुआ। भास्कर के अजमेर में संघर्ष की कहानी प्रताप सनकत और अरविन्द गर्ग से समझी जा सकती है। प्रताप आज अजमेर संस्करण में उप मुख्य सम्पादक हैं तो अरविन्द वरिष्ठ संवाददाता। इसमें कोई दो राय नहीं कि अजमेर संस्करण के शुरू होने के बाद भास्कर को मजबूती देने में डॉ. रमेश अग्रवाल ने भी मेहनत की। इसे संयोग ही कहा जाएगा कि डॉ. अग्रवाल आज भी अजमेर संस्करण के सम्पादक है। हालांकि वर्ष 2000 से लेकर वर्ष 2012 तक डॉ. अग्रवाल ने जयपुर में अपनी सेवाएं दी। 
एस.पी.मित्तल) (12-04-17)
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