Wednesday 19 April 2017

#2477
आडवाणी, जोशी, उमा आदि पर मुकदमा चलाने के आदेश के मायने। क्या अब मिल सकेगी राहत?
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19 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पी.सी.घोष और जस्टिस आर.एफ. नरीमन की पीठ ने आदेश दिया है कि बहुचर्चित बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराए जाने के प्रकरण में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह आदि पर स्पेशल कोर्ट में मुकदमा चलाया जाए। टीवी चैनलों पर दिनभर यह राग अलापा गया कि इस आदेश के बाद आडवाणी, जोशी आदि राष्ट्रपति के पद की दौड़ से बाहर हो गए हैं। यह भी कहा गया कि इस आदेश से भाजपा नेताओं की मुसीबतें बढ़ेंगी। लेकिन न्यायिक प्रक्रिया को गहराई से समझने वालों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश भाजपा के नेताओं को राहत प्रदान करेगा। भाजपा नेताओं पर मुकदमा चलाने की मांग और किसी ने नहीं बल्कि केन्द्र सरकार के अधीन काम करने वाली सीबीआई ने की है। सीबीआई ने बाकायदा एक प्रार्थना पत्र पेश कर कहा कि पहले स्पेशल कोर्ट और फिर हाई कोर्ट ने जोशी, आडवाणी आदि को मुकदमे से बाहर कर दिया, वह उचित नहीं है। दर्ज एफआईआर के अनुरूप इन नेताओं को भी ढांचे को गिराए जाने के षडय़न्त्र में शामिल किया जाना चाहिए। 19 अप्रेल को सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई के प्रार्थना पत्र को ही स्वीकार किया है। सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की इस प्रार्थना को भी स्वीकार कर लिया कि दो अलग-अलग मुकदमों की सुनवाई एक साथ होगी। सूत्रों के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के दोनों आदेश भाजपा नेताओं को कानूनी दृष्टि से राहत प्रदान करने वाले हैं। इसलिए सुप्रीम कोर्ट में न तो आडवाणी ने और न जोशी ने अपना कोई वकील खड़ा किया। सब जानते हैं कि वर्ष 1992 में जिस दिन कार सेवकों ने बाबरी मस्जिद के ढांचे को गिराया था, उस दिन आडवाणी, जोशी, उमा आदि कोई भी नेता मौके पर नहीं था। एफआईआर में भी यह माना गया है कि भाजपा के नेता दूर किसी स्थान पर आमसभा कर रहे थे। तब पुलिस का यह मानना रहा कि नेताओं ने जो भाषण दिए, उसी के बाद ढांचे को गिराया गया। लेकिन प्रत्यक्ष तौर पर ढांचे को गिराने में इन नेताओं की कोई भूमिका नहीं है। इस पूरे प्रकरण में स्पेशल कोर्ट में जो गवाह पेश हुए, उनके बयानों से भी भाजपा नेताओं पर कोई सीधा आरोप साबित नहीं होता। सूत्रों के अनुसार यदि स्पेशल कोर्ट भाजपा नेताओं को छोड़कर ढांचे को गिराए जाने का कोई फैसला देती तो दूसरा पक्ष बड़ी आसानी से हाईकोर्ट में चुनौती देकर इन नेताओं के लिए मुसीबत खड़ी कर सकता था। तब हाईकोर्ट में ऐसे बहुत से आधार होते जो स्पेशल कोर्ट के फैसले को गलत ठहरा सकते थे। इसलिए सीबीआई ने एक सूझ-बूझ वाला कदम उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट से मांग की कि जिन आरोपियों को स्पेशल कोर्ट ने तकनीकी आधार पर बाहर किया है, उन्हें पुन: मुकदमे में शामिल किया जाए। अब चूंकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से दोनों मुकदमों की सुनवाई एक ही स्पेशल कोर्ट में रोजाना होगी तो मुकदमे का फैसला भी दो वर्ष में आ ही जाएगा। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश भी मायने रखता है कि स्पेशल कोर्ट में मुकदमे की सुनवाई नए सिरे से नहीं होगी। यानि अब तक जो सुनवाई हो चुकी है, उसके आगे से ही सुनवाई होगी। आज कुछ लोगों को भले ही यह आदेश नेताओं के खिलाफ लग रहा हो, लेकिन इसके दूरगामी परिणाम इन्हीं नेताओं के पक्ष में होंगे। 
(एस.पी.मित्तल) (19-04-17)
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