Wednesday 10 May 2017

#2555
अजमेर में निकाय संस्थानों की छवि साफ-सुथरी रहनी चाहिए। 
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केन्द्र सरकार ने अजमेर को भी स्मार्ट सिटी घोषित कर रखा है। यही वजह है कि नगर निगम और अजमेर विकास प्राधिकरण के माध्यम से इन दिनों करोड़ों रुपए के विकास कार्य हो रहे हैं। इन दोनों ही निकाय संस्थानों पर सत्तारूढ़ भाजपा का कब्जा है। प्राधिकरण की कमान सरकार द्वारा मनोनीत शिवशंकर हेड़ा के पास है तो निगम में पार्षदों द्वारा चुने गए धर्मेन्द्र गहलोत मेयर के पद पर विराजमान हैं। लेकिन 9 मई को इन दोनों ही संस्थानों में जो हुआ, उसे अजमेर के हित मं नहीं माना जा सकता है। प्राधिकरण में काम करने वाले ठेकेदारों के शिष्टमंडल ने अध्यक्ष हेड़ा से मुलाकात की और आरोप लगाया कि उनके बिल स्वीकृत करने के लिए रिश्वत मांगी जाती है। यदि रिश्वत नहीं दी जाती है तो बिल स्वीकृत नहीं होता। ठेकेदारों ने मांग की कि प्राधिकरण के चीफ इंजीनियर सुभाष गुप्ता के पास पेंडिंग पड़े बिलों की जांच करवाई जाए। यह माना कि बिलों को पास करने की एवज में ठेकेदारों से जो रिश्वत ली जा रही है, उससे अध्यक्ष हेड़ा का कोई सरोकार नहीं है। हेड़ा की छवि साफ-सुथरी रही है, लेकिन प्राधिकरण की छवि भी साफ-सुथरी रहे, इसकी जिम्मेदारी हेड़ा की है। हेड़ा को यह भी देखना चाहिए कि कि प्राधिकरण में चीफ इंजीनियर की उपयोगिता कितनी है? हेड़ा भी यह जानते है कि प्राधिकरण में चीफ इंजीनियर का पद डीएलबी द्वारा थोपा गया है। यह तो अच्छा है कि एडीशनल चीफ इंजीनियर का पद खाली पड़ा है, नहीं तो ठेकेदारों को एक और हस्ताक्षर पर पैसे देने पड़ते। हेड़ा को चाहिए कि वह इंजीनियर की फौज को कम कराएं। 
9 मई को ही मेयर धर्मेन्द्र गहलोत ने नगर निगम में एक ऐसे गिरोह को पकड़ा, जो नक्शों पर निगम की फर्जी सील और अधिकारियों के फर्जी हस्ताक्षर कर रहा था। गिरोह को पकडऩे के लिए गहलोत को शाबासी तो मिलनी चाहिए, लेकिन साथ ही गहलोत को इस बात की जांच भी करवानी चाहिए कि इस गिरोह को निगम के किन अधिकारियों का संरक्षण मिला हुआ है। यदि गिरोह के सदस्य बिना किसी रूकावट के कर्मचारियों और अधिकारियों से मिलते रहे तो फिर ऐसे कार्मिकों की गतिविधियों की भी गहन जांच होनी चाहिए। यह दोनों निकाय आम जनता से सीधे जुड़े हुए हैं। ऐसे में जनता को यह भरोसा होना चाहिए कि इन संस्थानों में ईमानदारी के साथ काम होता है। 
(एस.पी.मित्तल) (10-05-17)
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