Thursday 11 May 2017

#2558
यानि पांचों धर्मो के जज करेंगे तीन तलाक पर फैसला। 
मुस्लिम धर्म का हिस्सा होगा तो सुनवाई नहीं।
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देश के न्यायिक इतिहास में संभवत: यह पहला अवसर होगा, जब सुप्रीम कोर्ट में किसी मुकदमे की सुनवाई पांच धर्मों से जुड़े जज करेंगे। 11 मई को चीफ जस्टिस जे.एस.खेहर की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने सबसे पहले यही दर्शाया कि अति संवेदनशील तीन तलाक के मुद्दे पर निष्पक्षता के साथ सुनवाई होगी। साथ ही पहले दिन ही यह स्पष्ट कर दिया कि यदि तीन तलाक मुस्लिम धर्म का हिस्सा होगा तो यह खंडपीठ सुनवाई नहीं करेगी। इस पीठ में खेहर के अलावा जस्टिस अब्दुल नजीर, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस आर.एफ. नरीमन और जस्टिस उदय उमेश ललित रोहिंग्टन शामिल हैं। यानि सिक्ख, ईसाई, पारसी, हिन्दू और मुस्लिम की पीठ बनाई गई है। चीफ जस्टिस खेहर इस मुद्दे को कितनी गंभीरता से ले रहे हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ग्रीष्म अवकाश में यह पीठ लगातार 19 मई तक सुनवाई करेगी। पीठ के सामने याचिका कर्ता के पक्ष में अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी खड़े हैं तो कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे कपिल सिब्बल और सलमान खुर्शीद का कहना है कि इस मुद्दे पर सरकार को कोई दखल देने की जरुरत नहीं है। याचिका में मुस्लिम पीडि़ता की और से कहा गया है कि एक साथ तीन तलाक कहना धर्म से जुड़ा हुआ नहीं है। पवित्र कुरान शरीफ में भी इसकी इजाजत नहीं दी गई है, लेकिन फिर भी मौलाना मौलवी, मुफ्ती आदि तलाकनामा जारी कर रहे हैं, जिससे मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि यदि तीन तलाक मुस्लिम धर्म का हिस्सा होगा तो यह पीठ सुनवाई नहीं करेगी।
तो फिर विवाद क्यों:
11 मई को सलमान खुर्शीद ने भी पीठ के सामने कहा कि एक बार में तीन तलाक कह देने से तलाक वैध नहीं है। मुस्लिम धर्म में तलाक की प्रक्रिया तीन महीने की है और इसमें सुलह की कोशिशे भी शामिल हैं। सवाल उठता है कि जब तलाक की तीन माह की प्रक्रिया है तो फिर मुस्लिम महिलाओं की पीड़ा सामने क्यों आ रही है? हजारों पीडि़ताओं का कहना है कि एक साथ तीन बार तलाक कहा, इसलिए निकाह टूट गया। अब तो मोबाइल और वाट्सएप पर भी ऐसे तलाक हो रहे हैं। पीडि़त महिलाओं का कहना है कि एक बार भी सुलह की कोशिश नहीं की गई। यदि मुस्लिम धर्म के अनुरूप तलाक की प्रक्रिया अपनाई जा रही होती, तो शायद विवाद नहीं होता। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी विगत दिनों कहा कि इस मुद्दे को मुस्लिम विद्वानों और धर्मगुरुओं को आपस में बैठकर ही निपटाना चाहिए। चूंकि धर्म के अनुरूप प्रक्रिया को नहीं अपनाया जा रहा है, इसलिए पीडि़त महिलाएं सामने आ रही हैं। 
(एस.पी.मित्तल) (11-05-17)
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