Tuesday 16 May 2017

#2578
तीन तलाक का मुद्दा अब भगवान राम के प्रति आस्था से भी जुड़ा। 
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16 मई को भी सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक की प्रथा पर सुनवाई का दौर जारी रहा। रोजना हो रही यह सुनवाई 19 मई तक जारी रहेगी। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्य संविधान पीठ अभी यह जानने में लगी हुई है कि क्या तीन तलाक मुस्लिम धर्म से संबंध रखता है? यदि सुनवाई के दौरान मुस्लिम धर्म से संबंध रखने की बात साबित हो जाती है तो फिर सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर अपना कोई निर्णय नहीं देगा। 16 मई को ऑल इंडिया प्रसर्नल लॉ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि यह प्रथा 1400 साल से चली आ रही है। मान लीजिए की मेरी आस्था राम में हैं और मेरा यह मानना है कि राम अयोध्या में पैदा हुए, जब राम को लेकर आस्था पर सवाल नहीं उाठए जा सकते तो तीन तलाक पर क्यों? पर्सनल लॉ कुरान और हदीस से आया है। क्या कोर्ट कुरान में लिखे लाखों शब्दों की व्याख्या करेगा? 
संवैधानिक नैतिकता और समानता का सिद्धांत तीन तलाक पर लागू नहीं हो सकता क्योंकि यह आस्था का विषय है। सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने हिन्दुओं से तुलना की। संविधान सभी धर्मों के पर्सनल लॉ को पहचान देता है। हिंदुओं में दहेज के खिलाफ दहेज उन्मूलन एक्ट लेकर आए, लेकिन प्रथा के तौर पर दहेज लिया जा सकता है। इस तरह हिंदुओं में इस प्रथा को सरंक्षण दिया गया है तो, वहीं मुस्लिम के मामले में इसे अंसवैधानिक करार दिया जा रहा है। कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए नहीं तो सवाल उठेगा कि इस मामले को क्यों सुना जा रहा है, क्यों संज्ञान लिया गया। शरियत पर्सनल लॉ है। इसकी तुलना मौलिक अधिकारों के आधार पर नहीं की जा सकती। हमें हर धर्म की संस्कृति को सरंक्षण देना चाहिए। अगर वह खराब भी है तो लोगों को इसके विषय में शिक्षित करना चाहिए। महसूस कराया जाना चाहिए कि वे गलत हैं और कानून बनाना चाहिए। हर मुस्लिम बहुसंख्यक देश में हिन्दुओं को सरंक्षण मिलना चाहिए और उसी तरह हिन्दू बहुसंख्यक देश में मुस्लिमों को सरंक्षण मिले।
जस्टिस कूरियन ने कपिल सिब्बल से कई बार पूछा पवित्र कुरान में पहले से ही तलाक की प्रक्रिया बताई गई है तो फिर तीन तलाक की क्या जरुरत। जब कुरान में तीन तलाक का कोई जिक्र नहीं तो यह कहां से आया। इस पर कपिल सिब्बल ने कहा कि कुरान में तीन तलाक का जिक्र नहीं है, लेकिन कहा गया है कि अल्लाह के मैसेंजर की बात मानो। अल्लाह के मैसेंजर और उनके साथियों से तीन तलाक की प्रथा शुरू हुई। यह आस्था का मामला है। कोर्ट इसकी व्याख्या नहीं कर सकता। जस्टिस कूरियन ने कहा कि कम से कम हम यह तो पता लगा ही सकते हैं कि तीन तलाक आस्था का हिस्सा है या नहीं। 
(एस.पी.मित्तल) (16-05-17)
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