Tuesday 23 May 2017

#2604
अजमेर नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष रहे नरेन शाहनी और दलाल मनोज गिदवानी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट।
पर बहुत कमजोर है एसीबी की चार्जशीट।
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23 मई को अजमेर स्थित एसीबी कोर्ट के न्यायाधीश आलोक सरोलिया ने नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष रहे नरेन शाहनी और दलाल मनोज गिदवानी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दियाहै। इससे पहले एसीबी ने जमीन के बदले जमीन के एक भ्रष्टाचार के मामले में शाहनी और गिदवानी को आरोपी मानते हुए अदालत में चार्जशीट पेश की। एसीबी की ओर से कहा गया कि दोनों आरोपियों को नोटिस देकर 23 मई को अदालत में उपस्थित रहने के लिए पाबंद कर दिया गया था, लेकिन दोनों उपस्थित नहीं हुए। न्याय प्रक्रिया के अंतर्गत अदालत ने दोनों आरोपियों को गिरफ्तारी वारंट से तलब करने के आदेश दिए। अब इस मामले में आगामी 5 जून को सुनवाई होगी। एसीबी का आरोप है कि शिकायत कर्ता अजमत खां से शाहनी ने चार भूखंड और 12 लाख रुपए नकद देने की मांग की थी। चार्जशीट में मोबाइल फोन से हुई वार्तालाप भी दी गई है। 
कमजोर है चार्जशीट:
भले ही शाहनी और गिदवानी के गिरफ्तारी वारंट जारी हो गए हो,लेकिन माना जा रहा है कि एसीबी की चार्जशीट बहुत कमजोर है। चार्जशीट पेश होते ही दलाल मनोज गिदवानी की ओर से एडवोकेट पी.एस.सोनी ने एसीबी कोर्ट में ही अग्रिम जमानत का प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर दिया। इस पर 24 मई को सुनवाई होगी। प्रार्थना पत्र में कहा गया कि शिकायतकर्ता अजमत खां ने अपने बयानों में यह माना है कि गिदवानी ने शाहनी के लिए रिश्वत की कोई मांग नहीं की। 8 जून 2013 को भी घटना वाले दिन मैंने ही गिदवानी के घर जाकर जबरजस्ती नोट रखे थे। अदालत को यह भी बताया गया कि अजमत के नाम के पट्टे 7 मार्च 2012 को ही जारी हो गए। ऐसे में भ्रष्टाचार का मामला बनता ही नहीं है। इस मामले में न्यास की पूर्व सचिव पुष्पा सत्यानी, सहायक अभियन्ता साहेबराम जोशी और भू कारोबारी महेश अग्रवाल को पहले ही दोषमुक्त  कर दिया गया है। प्रार्थना पत्र में कहा गया है कि एसीबी कोर्ट को ही इस मामले में जमानत लेने का पूरा अधिकार है। 
पूर्व जांच अधिकारी ने दी थी क्लीन चिट:
अजमेर नगर सुधार न्यास के बहुचर्चित प्रकरण में पूर्व जांच अधिकारी निर्मल शर्मा ने अपनी जांच रिपार्ट में नरेन शाहनी और मनोज गिदवानी को भी आरोप मुक्त माना था। हालांकि बाद में हाईकोर्ट ने इस रिपोर्ट को रद्द करते हुए दुबारा से जांच के आदेश दिए। हाईकोर्ट के आदेश पर ही जोधपुर एसीबी के पुलिस अधीक्षक अजयपाल लांबा ने जांच की और शाहनी व गिदवानी को दोषी माना। इस बीच यह प्रकरण सुप्र्रीम कोर्ट में भी पहुंच गया। हाईकोर्ट ने जांच अधिकारी निर्मल शर्मा को लेकर जो टिप्पणी की उसे शर्मा ने सु्रप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रखी है। यह मामला अभी भी सुप्रीम कोर्टमें विचाराधीन है। गंभीर बात यह है कि वर्तमान में अजमेर में एसीबी के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक राममूर्ति जोशी ने सुप्रीमकोर्ट एक शपथ पत्र देकर निर्मल शर्मा की जांच को तथ्यों पर आधारित माना है। 
खन्ना की रिपोर्ट में शिकायतकर्ता को ही दोषी माना था:
भ्रष्टाचार के इस मामले का एक दिलचस्प पहलू यह है कि वर्ष 2012 में जब यह मामला सुर्खियों में आया तो तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पूर्व आईएएस इंदरजीत खन्ना से विशेष जांच करवाई। अपनी जांच में खन्ना ने शिकायतकर्ता अजमत खां को ही दोषी माना। इस रिपोर्ट में कहा गया कि खां ने जो 5585 वर्गगज भूमि न्यास को सम्पत्ति सौंपी थी उसकी एवज में पहले ही भूखंड प्राप्त कर लिए। यानि गलत तथ्य पेश कर अजमत दुबारा से भूखंड प्राप्त करने का प्रयास कर रहा था। एसीबी की सारी कार्यवाही दूसरी बार के भूखंडों को लेकर है। शाहनी भी अपने बचाव में खन्ना की रिपोर्ट को ही प्रस्तुत करेंगे। 
इस्तीफा देना पड़ा था:
भ्रष्टाचार के इस मामले के उजागर होने के बाद शाहनी को अजमेर नगर सुधार न्यास के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा था। तब राजनीति के गलीयारों में यह चर्चा रही कि अजमेर के सांसद और केन्द्रीय मंत्री सचिन पायलट की सिफारिश से ही शाहनी की नियुक्ति हुई थी। यही वजह रही कि मामला उजागर होते ही सबसे पहले पायलट ने शाहनी को हटाने का दबाव गहलोत सरकार पर बनाया। हालांकि तब भी शाहनी ने कहा था कि मुझे राजनीतिक द्वेषता की वजह से फंसाया गया है। चूंकि अध्यक्ष पद से हटवाने में पायलट का दबाव रहा, इसलिए शाहनी ने वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में पायलट को हरवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। चुनाव के दौरान ही कांग्रेस से इस्तीफा देते हुए शाहनी ने पायलट पर गंभीर आरोप लगाए थे। शाहनी को अब भी भरोसा है कि वे अदालत से बाइज्जत बरी होंगे।
एस.पी.मित्तल) (23-05-17)
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