Sunday 28 May 2017

#2623
तो क्या हमारे जवान मरते रहें? आतंकी सबजार अहमद की मौत पर बबेला क्यों। 
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कश्मीर घाटी में हमारे सुरक्षा बलों पर आए दिन हमला कर रहे हिजबुल के कमांडर सबजार अहमद और 10 आतंकियों को सेना ने 27 मई को मार गिराया। अब आतंकी सबजार की मौत पर बबेला हो रहा है। घाटी के 4 जिले फिर से अशान्त हो गए हैं। पाकिस्तान के विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अजीज ने मामले को संयुक्त राष्ट्र संघ में रखा है। जो कश्मीर के आतंकी सुरक्षा बलों के जवानों की हत्याएं कर रहे हैं, उन्हें पाकिस्तान असहाय कश्मीर युवक बता रहा है। पाकिस्तान के इशारे पर जब भी घाटी में आतंकी हमले में जवान मारे जाते हैं तो सरकार को जिम्मेदार ठहराया जाता है। हालांकि सुरक्षा बल अपनी रणनीति के तहत काम करते हैं। 27 मई को सेना ने अपनी रणनीति के तहत हिजबुल कमांडर और 10 आतंकियों को मार गिराया। यानि इस बार सेना ने पुख्ता कार्यवाही की है। सेना ने पाकिस्तान और आतंकवादियों को साफ-साफ संदेश दे दिया है कि हमारे सैनिक शहीद होने के लिए नहीं है। स्वभाविक है कि कमांडर की मौत के बाद कश्मीर घाटी में आतंकी और अलगाववादी विरोध तो करेंगे ही। ऐसे विरोध का सुरक्षा बलों को सख्ती के साथ जवाब देना चाहिए। जो लोग सुरक्षा बलों पर पत्थर फैंकते हैं और आतंकियों को मदद करते हैं, वे कभी भी असहाय नहीं हो सकते। बल्कि कई मौके पर तो सुरक्षा बल ही असहाय नजर आते हैं। यदि कोई आतंकी सेना पर गोली चलाएगा तो उसे परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए। सेना ने आतंकियों के खिलाफ जो कड़ी कार्यवाही शुरू की है, उसका समर्थन देश के विपक्षी दलों को भी करना चाहिए। आखिर हमारे सुरक्षा बल देश की सुरक्षा ही तो कर रहे हैं। जहां तक घाटी में अशांति का सवाल है तो यह लंबे समय से चली आ रही है। ताजा घटनाक्रम में भले ही स्कूल, कॉलेज लंबे समय तक बंद रहे, लेकिन सुरक्षा बलों और सरकार  को नरमी नहीं बरतनी चाहिए। वैसे भी वे तत्व देश के नागरिक नहीं हो सकते हैं, जो अपनी सेना पर पत्थर फैंकते हैं। 
(एस.पी.मित्तल) (28-05-17)
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