Tuesday 22 August 2017

#2933
आखिर तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट को रोक क्यों लगानी पड़ी? 
मौलाना, मौलवी, मुफ्ती आदि इस पर सोचें।
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देश में मुस्लिम धर्म की परंपराओं का झंडा लेकर चल रहे मौलवी, मौलाना और मुफ्ती आदि विद्वानों को अब इस बात पर विचार करना चाहिए कि आखिर सुप्रीम कोर्ट को एक साथ तीन तलाक को असंवैधानिक करार क्यों देना पड़ा? सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगसत के अपने फैसले में शरीयत में कोई दखल नहीं किया है। सुप्रीम कोर्ट ने वो ही कहा है जो टीवी चैनलों की बहस में मौलाना, मौलवी, मुफ्ती आदि कहते रहे। यह मुस्लिम विद्वान भी मानते हैं कि एक साथ तीन तलाक शरीयत के अनुरूप नहीं है। कुरान और हदीस में तलाक की जो व्यवस्था दे रखी है, उसके विपरीत भारत में तीन तलाक का इस्तेमाल हो रहा था। सुप्रीम कोर्ट ने उसी शरीयत विरोधी एक मुश्त तीन तलाक पर रोक लगाई है। असल में शरीयत विरोधी तीन तलाक के खिलाफ जब पीडि़त मुस्लिम महिला भारतीय संविधान के अनुरूप अदालत में जाती थी, तो एक साथ तीन तलाक कहने वाला पति किसी मौलाना, मौलवी, मुफ्ती का तलाकनामा प्रस्तुत कर देता था। भारतीय कानून के अनुसार देश की कोई भी अदालत शरीयत के कानून में दखल नहीं कर सकती। इसलिए मुस्लिम महिला को न्याय नहीं मिल पाता था। लेकिन 22 अगस्त के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब अदालत में किसी मुफ्ती, मौलाना आदि के तलाकनामे के आधार पर सुनवाई बंद नहीं होगी। यानि मुस्लिम पीडि़त महिला को अदालत से न्याय मिल सकेगा। सरकार को अपनी ओर से कोईकानून बनाने की जरुरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने जब एक मुश्त तीन तलाक को असंवैधानिक करार दे दिया है तो फिर यह मुद्दा अपने आप संविधान के दायरे में आ गया है। इससे उन हजारों पीडि़त मुस्लिम औरतों को राहत मिलेगी जो एक मुश्त तीन तलाक के दर्द को भोग रही थी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश के सभी टीवी चैनलों पर जो बहस हुई उसमें मस्लिम विद्वानों ने माना कि एक साथ तीन तलाक का दुरुपयोग हुआ है। लेकिन मुस्लिम विद्वानों ने इसे एक सामाजिक बुराई माना। बहस में ऐसे मुस्लिम विद्वान भी शामिल हुए जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को भी राजनीति से जोड़ कर देख रहे थे। अच्छा हो कि ऐसे पैरोकार पीडि़त महिला के दर्द को समझें। हालात इतने खराब रहे कि वाट्सएप पर तलाक, तलाक, तलाक लिख कर भेज देने को भी शरीयत के अनुरूप मान लिया गया। जिन मौलाना, मुफ्ती आदि ने तलाकनामा जारी किया, उनके सामने मुस्लिम महिला गिड़गिड़ाई, लेकिन उसकी एक नहीं सुनी गई।  ऐसे भी मामले सामने आए जिसमें पति ने मुफ्ती के सामने जाकर कहा कि उसने रात को शराब के नशे में तलाक, तलाक, तलाक कह दिया। लेकिन सुबह उसे जब होश आया तो गलती का अहसास हुआ। ऐसे मामलों में भी निर्दोष मुस्लिम औरत को हलाला की प्रक्रिया अपनाने की सलाह दी गई। जबकि शरीयत के मुताबिक नशे में दिया गया तलाक जायज नहीं है। इसलिए अब मुस्लिम विद्वानों की जिम्मेदारी है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर तीन तलाक पर आवश्यक और प्रभारी कार्यवाही की जाए। यानि किसी भी मुस्लिम औरत को इस मुद्दे पर अदालत में जाना ही न पड़े। यदि शरीयत के अनुरूप मुस्लिम औरतों को न्याय मिलता तो उन्हें सुप्रीम कोर्ट नहीं जाना पड़ता। मुस्लिम औरते ज्यादती की वजह से ही सुप्रीम कोर्ट पहुंची है। 
एस.पी.मित्तल) (22-08-17)
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