Wednesday 1 November 2017

#3210
तो अब राजस्थान पत्रिका में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से जुड़ी खबरें प्रकाशित नहीं होंगी। दो खम्बों में इतना टकराव लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं।
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राजस्थान के सबसे बड़े दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में 1 नवम्बर को जब तक कालाः तब तक ताला शीर्षक से एक अग्रलेख छपा है। यह लेख पत्रिका के प्रधान सम्पादक गुलाब कोठारी ने स्वयं लिखा है। इस लेख में भारतीय दंडसंहिता में बदलाव करने वाले राज्य सरकार के विधयेक को आधार बनाते हुए घोषणा की है कि अब राजस्थान पत्रिका में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से संबंधित कोई भी खबर प्रकाशित नहीं होगी। यह प्रतिबंध तब तक रहेगा, जब तक सरकार काला कानून वापस नहीं ले लेती। इस विधेयक को भ्रष्ट अफसरों को बचाने और मीडिया को फंसाने वाला बताया जा रहा है। गुलाब कोठारी पत्रिका के प्रधान सम्पादक और मालिक भी हैं इसलिए वे अपने अखबार में क्या छापे, क्या नहीं, यह अधिकार उनका है, लेकिन जब इस लोकतंत्र को चार खम्बों में खड़ा मानते हैं तब दो खम्बों में इतना टकराव लोकतंत्र के लिए उचित नहीं माना जा सकता। इस टकराव से राजस्थान में लोकतंत्र कमजोर ही होगा। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि आज राजस्थान में पत्रिका अखबार की घर-घर तक पहुंच है। ऐसे में पत्रिका में छपे समाचार का व्यापक असर होता है। जो लोग जनता के वोट से चुनकर सत्ता में आते हैं, उन्हें लोकतंत्र के चैथे स्तंभ का सम्मान करना चाहिए। यह भी सही है कि इस समय विधानसभा के 200 विधायकों में 162 वसुंधरा राजे की भाजपा के हंै, इसलिए विधायिका की ताकत भी अपनी है। और फिर जब मुख्यमंत्री की कुर्सी पर वसुंधरा राजे जैसी राजनेता विराजमान हो तो असर डबल हो जाता है। यह पहला मौका नहीं है, जब पत्रिका और वसुंधरा राजे की सरकार के बीच टकराव हुआ है। दो वर्ष पहले भी सरकारी विज्ञापनों को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा था, तब सरकार की ओर से कहा गया कि विज्ञापन देने में पत्रिका के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जा रहा है। हालांकि तब से ही पत्रिका में वसुंधरा राजे का नाम बतौर मुख्यमंत्री नहीं छप रहा है। गुलाब कोठारी की नई घोषणा वसुंधरा राजे पर कितना दबाव बनाएगी, यह आने वाला समय ही बताएगा। वैसे कोठारी ने मुद्दा जनहित का उठाया है। इससे पहले भी भूमि नियमन आदि के मामले पत्रिका के माध्यम से हाईकोर्ट में चल रहे हंैं। अच्छा हो कि लोकतंत्र के दो खम्बों का टकराव जल्द से जल्द खत्म हो। टकराव जितना लम्बा चलेगा, उतना लोकतंत्र को नुकसान होगा। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को भी यह देखना होता कि कहीं उनके आसपास के लोग तो इस टकराव को बढ़ा नहीं रहे। कई बार इर्दगिर्द जमा लोग अपने स्वार्थ के खातिर बातों को बढ़ा चढ़ा कर कहते हैं, जिससे विवाद और बढ़ जाता है। भले ही मुख्यमंत्री की ऐसी मंशा नहीं हो। ऐसे लोगों से सीएम को सावधान रहना होगा। एक समय था जब पत्रिका को स्व. भैरोसिंह शेखावत का अखबार माना जाता था। हालांकि यह मित्रता पत्रिका के प्रधान सम्पादक स्व. कर्पूरचंद कुलिश से ज्यादा थी। कुलिश और शेखावत की मित्रता का लाभ राजस्थान में भाजपा को भी मिला। महत्वपूर्ण बात यह है कि आज पत्रिका और वसुंधरा राजे अपनी-अपनी सफलता के शीर्ष पर खड़े हैं ऐसे में ऐसा कोई मुद्दा नहीं होगा, जो जिसका समाधान नहीं हो सकता। बस बात पहल करने की है। वसुंधरा राजे के घोर विरोधी घनश्याम तिवाड़ी कभी नहीं चाहेंगे कि टकराव जल्द खत्म हो जाए। यह बात वसुंधरा राजे को भी समझनी चाहिए। सीएम माने या नहीं, लेकिन उनके आसपास एक ऐसा गिरोह सक्रिय है जो तथ्यों को सही प्रकार से नहीं रखता है। 
एस.पी.मित्तल) (01-11-17)
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