Tuesday 7 November 2017

#3239
तो सीएम वसुंधरा राजे ने क्यों नहीं की डाॅक्टरों से बात? अब राजस्थान भर में मरीज मर रहे हैं, उसका जिम्मेदार कौन? कार्यवाही करने से भी डर रही है सरकार।
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उम्मीद की जानी चाहिए कि 7 नवम्बर की शाम को प्रस्तावित वार्ता में सरकार और हड़ताली डाॅक्टरों के बीच समझौता हो जाए। 7 नवम्बर को राजस्थान में दूसरा दिन रहा, जब 10 हजार सेवारत चिकित्सकों ने सरकारी अस्पतालों और ग्रामीण क्षेत्रों के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर अपनी सेवाएं नहीं दी। स्वाइन फ्लू, डेंगू और मौसमी बीमारियों से पहले ही त्रस्त प्रदेश की जनता का हाल क्या हुआ होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। पहले दिन तीन मरीजों की मौत हो जाने से भयावह स्थिति समझी जा सकती है। सवाल उठता है कि अब तक भी प्रदेश की सीएम वसुंधरा राजे ने डाॅक्टरों से वार्ता क्यों नहीं की? सेवारत चिकित्सक संघ के प्रतिनिधि बार-बार मांग करते रहे कि एक बार सीएम भी वार्ता में शामिल हों। असल में डाॅक्टरों को पता था कि चिकित्सामंत्री कालीचरण सराफ के पास कोई अधिकार नहीं है। सराफ तो वार्ता के नाम पर सिर्फ टाइम पास कर रहे हैं। अधिकांश मांगों पर सराफ सहमत थे, लेकिन सराफ की सहमति कोई मायने नहीं रखती थी, इसलिए डाॅक्टर सीएम राजे से वायदा चाह रहे थे, लेकिन किसी भी वार्ता में सीएम शामिल नहीं हुई। यूं तो सीएम बार-बार कहती हैं कि वे प्रदेश की जनता की समस्याओं के समाधान के लिए बेहद संवेदनशील हैं। जब उन्हें किसी सभा में चुनरी ओढ़ाई जाती है तो वे हाथों की बलाइयां लेते हुए यह दर्शाने की कोशिश करती हैं कि सबसे बड़ी हमदर्द वे ही हैं। लेकिन वो ही सीएम प्रदेश की जनता के प्रति संवेदनशील होती तो डाॅक्टरों से वार्ता करतीं। वार्ता न कर सीएम ने अब बिगड़े हालातों की गेंद अपने पाले में डाल ली है। जब हम जनता के वोट से सीएम बनते है। तो फिर हमें जनता का सेवक बनकर कर काम करना चाहिए। पढ़े लिखे वर्ग से भी वार्ता न कर सत्ता ने अपने घमंड का परिचय ही दिया है। यदि लोगों की परेशानी के लिए डाॅक्टर जिम्मेदार हैं तो सरकार भी कम जिम्मेदार नहीं है।
सरकार का दोहरा चरित्रः
एक ओर घमंड इतना है कि अपने ही डाॅक्टरों से संवाद नहीं, दूसरी ओर डर इतना कि रेस्मा लगाने के बाद भी किसी डाॅक्टर के खिलाफ अभी तक कार्यवाही ही नहीं की गई। सवाल उठता है कि जिन डाॅक्टरों को सीएम वार्ता के लायक भी नहीं समझती, उन डाॅक्टरों के खिलाफ कार्यवाही करने में देरी क्यों? सेवारत चिकित्सकों के काम छोड़ देने से प्रदेशभर में जो स्वास्थ्य सेवाएं बिगड़ी हैं क्या उसे देखते हुए डाॅक्टरों के खिलाफ कार्यवाही नहीं होनी चाहिए? सीएम राजे को भी पता है कि सेवारत चिकित्सकों के खिलाफ कार्यवाही की गई तो रेजीडेंट और मेडिकल काॅलेजों से जुड़े डाॅक्टर भी काम बंद कर देंगे तथा हालात और बिगड़ जाएंगे? इसी डर से कोई कार्यवाही ही नहीं की जा रही है। जब सरकार इतनी डरती है तो फिर सीएम ने वार्ता क्यों नहीं की? यही सरकार का दोहरा चरित्र है।
वैकल्पिक इंतजाम नाकाफीः
10 हजार डाॅक्टरों के काम छोड़ देने के बाद सरकार ने सेना, रेलवे, आयुर्वेद के वैद्य आदि को लगाया है, लेकिन इनकी संख्या बेहद ही कम है। प्रदेश भर के हालात बेहद खराब हैं। ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति तो बद से बदतर हो गई है। यदि सेवारत चिकित्सक काम पर नहीं लौटे तो फिर सरकार के लिए हालात संभालना मुश्किल होगा। अच्छा हो कि 7 नवम्बर की शाम को होने वाली वार्ता में सीएम राजे शामिल हों और आंदोलन को खत्म करावें। सीएम और उनके इर्द-गिर्द जमा चाटूकार यह समझलें कि स्वास्थ्य मंत्री सराफ पूरी तरह विफल हैं। सराफ के माध्यम से वार्ता सफल नहीं हो सकती।
एस.पी.मित्तल) (07-11-17)
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